वर्तमान राजनीति में जब ‘मतभेद’ और ‘मनभेद’ के बीच का फासला मिटता जा रहा है, ऐसे में राजनीतिज्ञों को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से यह सीखने की जरूरत है कि राजनीतिक मतभेद को किस तरह रिश्तों से अलग रखा जाये.
वरिष्ठ लेखक और पत्रकार नरेश मिश्र ने नेहरू के पैतृक शहर इलाहाबाद से बताया, ‘पंडित नेहरू के दौर के राजनेता वैचारिक मतभेद होने के बावजूद व्यक्तिगत मित्रता और सहिष्णुता को बरकरार रखते थे. वहीं आजकल के राजनेता राजनीतिक मतभेद और मनभेद में अंतर नहीं रख पाते हैं.’ जवाहर लाल नेहरू विवि के प्रोफेसर कमल मित्र चिनॉय ने कहा, ‘नेहरू का जमाना आजादी की लड़ाई और उसके तुरंत बाद का दौर था. यह भारतीय राजनीति में ऐतिहासिक वक्त था और उसका माहौल ही एकदम अलग था.’
उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों के लोगों ने आजादी के आंदोलन में एक साथ मिलकर भाग लिया था और वैचारिक मतभेद के बावजूद उस वक्त के राजनेता एक दूसरे का पूरा सम्मान करते थे. ऐसे माहौल में राजनीतिक मुद्दे खुलकर सामने आते थे और उन पर स्वस्थ विचार विमर्श किया जाता था.
मिश्र ने एक उदाहरण देते हुए बताया, ‘कांग्रेस से अलग होने के बाद नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की और इस दौरान उनके एवं नेहरू के बीच के राजनीतिक मतभेद किसी से छिपे नहीं है.’ इसी दौरान 40 के दशक की शुरूआत में वह अपनी पार्टी के शहर कार्यालय के उद्घाटन के लिए इलाहाबाद आये.{mospagebreak}
उन्होंने बताया, ‘पंडित नेहरू को जब पता चला कि सुभाष बाबू इलाहाबाद आ रहे हैं तो उन्होंने अपने सचिव को कहा कि नेताजी आनंद भवन (नेहरू का पैतृक आवास) के मेहमान होंगे.’ मिश्र ने बताया सुभाष बाबू ने फारवर्ड ब्लाक के शहर अध्यक्ष पद्मकांत मालवीय से पूछा, ‘मुझे आनंद भवन में रूकने में कोई दिक्कत नहीं हैं आपको तो कोई परेशानी नहीं होगी.’
मिश्र ने बताया कि मालवीय ने तुरंत कहा, ‘आनंद भवन मेरा घर है और मैंने उसे कभी छोड़ा नहीं है.’ आजादी के बाद की एक घटना बताते हुए मिश्र ने बताया, ‘आचार्य कृपलानी कांग्रेस के धुर विरोधियों में से एक थे और इसी वक्त में उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश में राज्य की कांग्रेस सरकार की मुख्यमंत्री थीं.’
चिनॉय ने कहा कि केवल नेहरू ही नहीं बल्कि उस दौर की राजनीति में महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, राम मनोहर लोहिया जैसे कद्दावर नेताओं की राजनीति में लंबी फेहरिस्त थी, जिनके करीब तक वर्तमान राजनीति की किसी भी पार्टी का कोई भी नेता पहुंच ही नहीं सकता है.