जहां एक तरफ मेंटल हेल्थ और इमोशनल केयर की बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, वहीं मुंबई की एक मेंटल हेल्थ NGO की यह कहानी चौंका देने वाली है. यहां एक महिला ने पीरियड्स के असहनीय दर्द के चलते रविवार की ड्यूटी से छुट्टी मांगी, लेकिन उसे साफ इनकार कर दिया गया. यह मामला न सिर्फ महिलाओं के शारीरिक दर्द को नजरअंदाज करने की सोच दिखाता है, बल्कि उस सिस्टम पर भी सवाल उठाता है जो दूसरों की मानसिक सेहत की बात तो करता है, लेकिन अपने ही कर्मचारियों की तकलीफ समझने में नाकाम रहता है.
महिला ने रेडिट पर शेयर की पोस्ट
मुंबई की एक महिला ने अपने साथ हुई एक ऐसी घटना शेयर की है, जिसने कामकाजी जगहों पर संवेदनशीलता को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. महिला का कहना है कि वह एक मेंटल हेल्थ से जुड़ी एनजीओ में काम करती हैं, लेकिन जब उन्होंने तेज पीरियड दर्द के कारण रविवार की ड्यूटी से छुट्टी मांगी, तो उनकी बात को सख्ती से ठुकरा दिया गया.

महिला ने रेडिट पर बताया कि वह सोमवार से शुक्रवार तक रोज सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक काम करती हैं. इसके बावजूद, हर रविवार को उनकी एनजीओ एक दूसरी संस्था के साथ ऑनलाइन वर्कशॉप कराती है. हाल ही में उन्हें शुक्रवार और शनिवार को भी पूरे दिन एक ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल होना पड़ा, जबकि वे असहनीय पीरियड पेन से जूझ रही थीं. फिर भी उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियां निभाईं.
लोगों ने दिखाई नाराजगी
दर्द बढ़ने पर उन्होंने रविवार की एक घंटे की वर्कशॉप किसी और से कराने की की. इसके जवाब में एनजीओ की प्रमुख ने न तो उनकी तबीयत के बारे में पूछा और न ही सहानुभूति दिखाई. उल्टा कहा गया कि 'हर हफ्ते वर्कशॉप कैंसिल मत किया करें, इससे हमारी छवि खराब होती है'. महिला ने साफ किया कि उन्होंने कभी वर्कशॉप कैंसिल नहीं की थी. कुछ वर्कशॉप दूसरी तरफ की दिक्कतों या टीम की अनुपलब्धता की वजह से टली थीं, न कि उनकी वजह से.
इस पोस्ट के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर कई लोगों ने नाराज़गी और दुख जताया. लोगों ने इसे विडंबना बताया कि जो संस्था मानसिक स्वास्थ्य के लिए काम करती है, वही अपने कर्मचारी की तकलीफ को नहीं समझ पाई. कई यूजर्स ने कहा कि भारत में कई एनजीओ में काम और निजी जीवन के बीच संतुलन की भारी कमी है और ऐसे माहौल से बाहर निकलना ही बेहतर होता है.