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1000 साल पुराना ये मठ, कई आक्रमण झेलकर भी अडिग, सुंदरता देख थम जाती हैं टूरिस्ट्स की सांसें!

हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी मोनेस्ट्री पर अतीत में कई आक्रमण हुए हैं, फिर भी ये मठ आज भी अपना वजूद बचाए हुए है. इस मठ की सुंदरता देखकर पर्यटकों की सांसें थम जाती हैं.

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की मोनेस्ट्री का अद्भुत नजारा (Photo: Ravi Prashant)
की मोनेस्ट्री का अद्भुत नजारा (Photo: Ravi Prashant)

हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति जिले में स्पीति घाटी है. इस वैली में ‘की मोनेस्ट्री’ नाम का एक मठ है. लगभग 1000 साल पुराना ये प्राचीन मठ न सिर्फ इतिहास का खजाना है, बल्कि कई ऐसी कहानियां छुपाए हुए हैं, जो ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं. इनमें से एक है कि इस मोनेस्ट्री पर अतीत में कई आक्रमण हुए हैं, फिर भी ये मठ आज भी अपना वजूद बचाए हुए है. इस मठ की सुंदरता देखकर पर्यटकों की सांसें थम जाती हैं.

कब, किसने, क्यों स्थापित की ये मोनेस्ट्री

‘की मोनेस्ट्री’ का नाता तिब्बती बौद्ध मठ संस्कृति है. 11वीं शताब्दी में ड्रोमटन (Dromtön) ने इसकी स्थापना की थी. वे तिब्बती बौद्ध धर्म के महान गुरु अतीशा दीपंकर के शिष्य थे. उन्होंने इस जगह को अत्यधिक शांत और प्रकृति के करीब होने के चलते आध्यात्मिक ध्यान के लिए बहुत ही सटीक पाया, इसलिए उन्होंने मोनेस्ट्री को यहां बनाया. कुछ अन्य कारण जैसे- हिमालयी क्षेत्रों में बौद्ध धर्म का प्रसार, स्पीति वैली को बौद्ध संस्कृति का केंद्र बनाना और नए लोगों को उससे जोड़ना भी बताए जाते हैं.

‘की मोनेस्ट्री’ पर कब-कब आक्रमण किए

keymonasteryspiti.org की रिपोर्ट से पता चलता है कि 17वीं शताब्दी में मंगोलों ने इस मठ पर आक्रमण किया और इसे लूटा. बाद में, 1820 में लद्दाख-कुल्लू संघर्ष के दौरान ये मठ में क्षतिग्रस्त हुआ. 1841 में डोगरा-सिख सेनाओं की लड़ाई में इस मठ को आग लगा दी गई. डोगरा सेना ने इस मठ को भारी नुकसान पहुंचाया. उसी वर्ष सिख सेनाओं ने भी मठ को तहस-नहस कर दिया. 1975 में आए एक भीषण भूकंप ने इसे और भी क्षतिग्रस्त कर दिया. इन तमाम घटनाओं को झेलने के बाद भी आज भी ये मठ अपनी सुंदरता और उससे जुड़ी अपनी संस्कृति को जीवंत बनाए हुए है.

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‘की मोनेस्ट्री’ घूमने के लिए कैसी?

‘की मोनेस्ट्री’ घूमने के लिए कैसी है. सवाल का जवाब हमने हाल ही में की मोनेस्ट्री घूमकर आए रवि प्रशांत से जाना. रवि प्रशांत बताते हैं कि स्पीति वैली स्थित ‘की मोनेस्ट्री’ देखते ही पहली नजर रोमांच से भर जाती है. प्राकृतिक सुंदरता, बौद्ध संस्कृति का रहस्य और शांति का संगम यहां देखने को मिलता है. काफी ऊंचाई पर स्थित इस मठ की सुंदरता देखते ही उनकी सांसें थम गईं.

की मोनेस्ट्री (Photo: Ravi Prashant)

रवि प्रशांत कहते हैं कि अगर कोई दिल्ली से हिमाचल स्थित की मोनेस्ट्री घूमने के लिए जाता है, तो 10 से 15 हजार रुपये का खर्चा आता है. वे सैलानियों के लिए उन जरूरी बातों का जिक्र भी करते हैं, जिनको उन्होंने खुद महसूस किया. जो इस प्रकार हैं- 

  • ‘की मोनेस्ट्री’ क्षेत्र में तापमान अक्सर माइनस में रहता है, इसलिए सैलानियों के लिए गर्म कपड़े साथ रखना ज़रूरी है.  
  • अत्यधिक ऊंचाई के कारण वहां ऑक्सीजन का स्तर थोड़ा कम हो जाता है, जिससे हल्का सिरदर्द या सांस फूलने जैसी परेशानी महसूस हो सकती है. 
  • सांस या हार्ट संबंधी समस्याओं वाले लोगों को यहां जाने से परहेज करना चाहिए.

रवि प्रशांत बताते हैं कि इन सब के बावजूद ‘की मोनेस्ट्री’ एक परफेक्ट टूरिस्ट डेस्टिनेशन है. पहाड़ों के बीच की मोनेस्ट्री का अद्भुत नजारा, सर्द हवाओं के बीच सूर्य की धूम भी गर्माहाट का अहसास करता है. स्पीति वैली में सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा किसी तरह से न भुलाए जाना वाला अनुभव है. की मोनेस्ट्री से कुछ ही दूरी पर काजा गांव है, जहां ठहर कर चाय की चुस्कियों का आनंद उठाया जा सकता है और वहां के लोगों से बातें करके अपनी यात्रा को यादगार बनाया जा सकता है.

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