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भारत में इंटरनेट के 25 साल, 9.6kbps के लिए देने होते थे लाखों रुपये, देखें रेट कार्ड

15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के साथ ही भारत में इंटरनेट के 25 साल भी पूरे हो जाएंगे. लेकिन तब का इंटरनेट अभी के इंटरनेट से कई मायनों में अलग था. आइए नजर डालते हैं इंटरनेट के रेट्स पर.

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Representational Image
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भारत में 15 अगस्त 1995 को इंटरनेट सर्विस लॉन्च की गई थी. हालांकि इससे पहले यानी 1986 से ही भारत में इंटरनेट है, लेकिन तब सिर्फ रिसर्च और एजुकेशनल ज़रूरतों के लिए इसे यूज किया जाता था. पब्लिक के लिए ये 1995 में आया.

25 साल हो चुके हैं और तब से अब तक इंटरनेट में काफ़ी बदलाव हो चुका है. भारत में सबसे पहले विदेश संचार निगम लिमिटेड (VSNL) इंटरनेट लेकर आई थी. अब लगभग भारत की आधी आबादी इंटरनेट यूज करती है.

हालांकि तब भी इंटरनेट प्राइवेट कंपनियों द्वारा डिस्ट्रिब्यूट नहीं किया जाता था. 1998 में सरकार ने प्राइवेट इंटरनेट कंपनियों को डिस्ट्रिब्यूशन के लिए दिया गया.

पहली प्राइवेट आईएसपी कंपनी के तौर पर सत्यम इनफोवे भारत में लॉन्च हुई

1996 में रेडिफ की शुरुआत हुई और आगे चल कर इसने भारत में याहू को टक्कर दी. नोकिया ने इसी साल इंटरनेट ऐक्सेस वाला फ़ोन पेश किया जिसका नाम Nokia 9000 कम्यूनिकेटर रखा गया.

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1998 में सत्यम इनफोनवे भारत की पहली प्राइवेट इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर के तौर पर लॉन्च की गई. गूगल की बात करें तो इसकी शुरुआत भी 1998 में ही हुई थी और तब इस स्पेस में याहू का क़ब्ज़ा हुआ करता था.

9.6kbps से शुरु होते थे इंटरनेट के प्लान्स, लीज्ड लाइन के लिए लाखों का सब्सक्रिप्शन

शुरुआत में इंटरनेट काफ़ी महंगा था और अब के तुलना में स्पीड भी काफ़ी कम थी. उदाहरण के तौर पर 1995 में कमर्शियल यूज के लिए 9.6kbps लीज़ लाइन लगाने के लिए 2.40 लाख रुपये देने होते थे.

इसी तरह सर्विस प्रोवाइडर्स को VSNL की तरफ़ से 128kbps लीज़ लाइन 30 लाख रुपये सालाना में दी जाती थी. कमर्शियल यूज के लिए 128kbps लेने के लिए 25 लाख रुपये एक साल के लिए देने होते थे.

नॉन कमर्शियल के लिए लीज्ड लाइन..

नॉन कमर्शियल यूज की बात करें तो 15,000 रुपये में एक साल तक के लिए 9.6kbps स्पीड के साथ इंटरनेट दिया जाता था. लीज्ड लाइन ज़्यादा महंगे होते थे. लीज्ड लाइन में प्योर बैंडविथ दिया जाता है और ये किसी के साथ शेयर्ड नहीं होता है.

नॉन कमर्शियल लीज्ड लाइन का जहां तक सवाल है तो 9.6kbps के लिए 2.40 लाख रुपये सालाना देने होते थे, जबकि 128kbps के लिए 10 लाख देने होते थे.

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लीज्‍ड लाइन के मुकाबले डायल अप कनेक्शन होते थे सस्ते...

लीज्ड लाइन के मुक़ाबले तब डायलअप कनेक्शन सस्ते हुआ करते थे. प्रोफेशनल यूज के लिए 9.6kbps डायल अप कनेक्शन के लिए 5,000 रुपये का सालाना चार्ज था.

नॉन कमर्शियल के लिए 15,000 रुपये, जबकि कमर्शियल और एक्सपोर्ट्स के लिए क्रमशः 25,000 रुपये और 30,000 रुपये था.

डायल अप कनेक्शन में थी 250 घंटे की लिमिट...

डायल अप कनेक्शन यूज करने की लिमिट हुआ करती थी. एक साल में सिर्फ़ 250 घंटे ही इंटरनेट यूज किया जा सकता था. इतना ही नहीं सिर्फ़ 512kb डिस्क स्पेस तक ही यूज किया जा सकता था.

सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए 128kbps की मैक्सिमम स्पीड थी जिसके लिए उन्हें 30 लाख रुपये सालाना चार्ज देना होता था. इसके अलावा सेटअप के लिए अलग से चार्ज देने होते थे, ये कीमतें सिर्फ बैंडविथ की थीं.

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