
कोरोना काल के बीच जब हिन्दुस्तान संघर्ष से जूझ रहा था, उसी दौर में एक इतिहास भी रचा गया था. टोक्यो में हुए ओलंपिक में भारत ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और कुल 7 मेडल जीते. सबसे खास रहा जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा का गोल्ड मेडल जीतना. जो एकल प्रतिस्पर्धा में भारत के लिए ओलंपिक इतिहास का दूसरा ही गोल्ड था.
ओलंपिक के उस ऐतिहासिक पल के बाद से ही नीरज चोपड़ा को हिन्दुस्तान के घर-घर में जाना जाता है. सिर्फ 23 साल की उम्र में इतिहास रचना और देश के एक बड़े वर्ग के लिए रोल मॉडल बन जाना आसान नहीं है, इसके पीछे संघर्ष की कहानी भी है. इसी कहानी को नीरज चोपड़ा पर लिखी हुई एक किताब में बताया गया है.
‘Neeraj Chopra: From Panipat to the podium’ में नीरज चोपड़ा के बनने की कहानी बताई गई है. इस किताब को अर्जुन सिंह कादियान ने लिखा है और रूपा पब्लिकेशन ने छापा है. हरियाणा के पानीपत के एक गांव से निकलकर टोक्यो में दुनिया के सामने इतिहास रचने के बीच नीरज चोपड़ा कहां थे और कहां से आए इस किताब में जानने को मिलता है.
किताब के लेखक अर्जुन सिंह कादियान खुद पॉलिसी प्रोफेशनल के तौर पर हरियाणा में काम कर चुके हैं, ऐसे में किताब में वो छाप नज़र भी आती है. किताब की खासियत भी यही है, जो आपको नीरज चोपड़ा के संघर्ष और सफलता की जानकारी तो देती ही है, लेकिन उसके साथ-साथ हरियाणा के स्पोर्ट्स कल्चर को भी बताती हुई चलती है. ताकि आप समझ पाएं कि हरियाणा में किस तरह खेल पनपता है, खेल किस तरह आगे बढ़ता हुआ इतिहास का हिस्सा बन जाता है.

किताब की दिलचस्पी इससे जाहिर होती है, जब लेखक किताब के सिलसिले में अलग-अलग लोगों से मिल रहे हैं और उनमें से ही एक शख्स शुरुआत में ही कहता है, ‘सर इस सफर में सबसे ज्यादा मज़ा आपको आने वाला है.’
अपने घर का सबसे बड़ा बेटा होने की वजह से नीरज चोपड़ा को मिला लाड उन्हें ‘सरपंच जी’ बनाता है, जिसके बाद 12 साल की उम्र से ही मोटापा ऐसा आता है कि फिटनेस को लेकर जागरुकता बढ़ने लगती है. और फिर ये जागरुकता धीरे-धीरे पैशन बन जाती है और इसी के साथ खेल जीवन का हिस्सा बनता है. जैवलीन थ्रोअर किस तरह प्यार बनता है, कैसे कोच-परिवार, दोस्त और बाकी लोग नीरज चोपड़ा के इस सपने को सच करने में साथ आते हैं इस सबका पता किताब में ही पता चलता है.
नीरज चोपड़ा ने एक मुकाम हासिल करने के बाद कई देशी और विदेशी कोच से तकनीक सीखी है, लेकिन एक वक्त पर वह यू-ट्यूब के वीडियो देखकर ही जैवलीन थ्रोअर के बारे में अपनी जानकारी बढ़ा रहे थे. कभी स्लो-मोशन में वीडियो देखकर तो कभी नए-नए स्टाइल को पहचानकर. 2021 में ओलंपिक में रचे गए इतिहास से पहले 2019 में एक वक्त ऐसा था, जब नीरज चोपड़ा चोट के कारण अपना जैवलिन तक नहीं उठा पा रहे थे. ऐसे हालात से निकलकर अलग-अलग देशों, जगहों पर जाकर ट्रेनिंग करना और फिर अंत में टोक्यो में इतिहास रचना. ये किताब इसी सपने को पूरा होते हुए दिखाती है.
किताब: Neeraj Chopra: From Panipat to the podium
लेखक: अर्जुन सिंह कादियान
कुल पेज: 192
दाम: 295
प्रकाशक: रूपा पब्लिकेशन्स