रविवार, 14 दिसंबर 2025 को ऑस्ट्रेलिया के सिडनी स्थित बोंडी बीच पर ताबड़तोड़ फायरिंग की घटना सामने आई है. यह वारदात उस समय हुई, जब बीच पर यहूदी समुदाय के लोग हनुक्का पर्व मना रहे थे. न्यू साउथ वेल्स पुलिस के अनुसार, घटना के बाद दो लोगों को हिरासत में लिया गया है. फिलहाल मामले की जांच जारी है. पुलिस ने एहतियात के तौर पर लोगों से बोंडी बीच से दूर रहने की अपील की है. घटनास्थल से सामने आए वीडियो में कई हथियारबंद हमलावर दिखाई दे रहे हैं. शुरुआती रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस गोलीबारी में कम से कम 10 लोगों के मारे जाने की खबर है. जबकि कई अन्य घायल बताए जा रहे हैं. इस घटना के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर हनुक्का उत्सव क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है. आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
हनुक्का: यहूदी समुदाय का रोशनी का त्योहार
यहूदी धर्म में हनुक्का (Hanukkah या Chanukah) को रोशनी का पर्व कहा जाता है. यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश, अत्याचार पर आस्था और निराशा पर उम्मीद की जीत का प्रतीक माना जाता है. हर साल यह पर्व नवंबर या दिसंबर में आता है और आठ दिनों तक मनाया जाता है. इस साल हनुक्का की शुरुआत रविवार, 14 दिसंबर की शाम से हुई, जिसका समापन 22 दिसंबर को होगा. हनुक्का एक हिब्रू शब्द है, जिसका अर्थ है ‘समर्पण’. यह पर्व यहूदी इतिहास के सबसे बड़े चमत्कारों में से एक की याद दिलाता है.
हनुक्का से जुड़ा ऐतिहासिक चमत्कार क्या है?
हनुक्का का इतिहास करीब 2,000 साल पुराना है. उस समय यहूदी क्षेत्र पर यूनानी शासकों का शासन था. यूनानी सत्ता ने यहूदियों की धार्मिक परंपराओं पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे. यहूदियों को अपने रीति-रिवाजों और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करने से रोका गया.
यूनानी राजा एंटियोकस चतुर्थ ने हालात और भी गंभीर कर दिए. उसने यरूशलम स्थित यहूदी के पवित्र स्थल में अपनी मूर्ति स्थापित करवाई और यहूदियों को यूनानी देवताओं की पूजा करने के लिए मजबूर किया. यहूदी समुदाय ने इस आदेश को मानने से साफ इनकार कर दिया.
मक्कबी विद्रोह और जीत
इस अत्याचार के विरोध में यहूदियों के एक छोटे से समूह ने विद्रोह किया, जिन्हें मक्कबी कहा जाता है. संख्या में कम होने के बावजूद मक्कबी योद्धाओं ने साहस के साथ यूनानी सेना का सामना किया. यह संघर्ष करीब तीन साल तक चला, जिसके बाद मक्कबी योद्धाओं ने जीत हासिल की. हालांकि, इस युद्ध के दौरान यहूदियों का पवित्र स्थल बुरी तरह नष्ट हो चुका था.
तेल का दीपक और आठ दिनों का चमत्कार
जीत के बाद मक्कबी योद्धाओं ने पवित्र स्थल की सफाई की और उसकी मरम्मत करवाई. विजय के उपलक्ष्य में पवित्र स्थल (सिनेगॉग) में तेल का दीपक जलाया गया. लेकिन समस्या यह थी कि वहां मौजूद पवित्र तेल सिर्फ एक दिन के लिए ही पर्याप्त था. कहते हैं कि वो दीपक लगातार आठ दिन तक जलता रहा, जब तक कि तेल की व्यवस्था नहीं हो गई. यहूदियों के लिए यही घटना सबसे बड़ा चमत्कार मानी जाती है. यही कारण है कि यह पर्व आठ दिनों तक मनाया जाता है.
हनुक्का कैसे मनाया जाता है?
हनुक्का हर साल हिब्रू कैलेंडर के नौवें महीने किसलेव की 25 तारीख से शुरू होता है. चूंकि हिब्रू कैलेंडर चंद्र-सौर प्रणाली पर आधारित है, इसलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर में इसकी तारीखें बदलती रहती हैं. इस दौरान सबसे अहम परंपरा है मेनोरा या हनुकिया जलाना. इसमें हर शाम एक नया दीप जलाया जाता है, जो अंधकार पर रोशनी की जीत का संदेश देता है.
बच्चों के लिए खास होता है हनुक्का
हनुक्का के दौरान परिवार और समुदाय के लोग एक साथ इकट्ठा होते हैं. धार्मिक गीत गाए जाते हैं और ड्रेडल नाम का पारंपरिक खेल खेला जाता है. यह त्योहार बच्चों के लिए बेहद खास होता है. उन्हें उपहार दिए जाते हैं और ‘गेल्ट’ यानी हनुक्का मनी भी दी जाती है. कई परिवारों में परंपरा है कि आठों रात बच्चों को छोटे-छोटे तोहफे दिए जाते हैं.
खाने-पीने की भी खास परंपरा
हनुक्का के दौरान तेल में बने व्यंजनों का विशेष महत्व होता है. ये पकवान उस चमत्कार की याद दिलाते हैं, जब तेल आठ दिनों तक जलता रहा. इस खास मौके पर परिवार के लोग साथ बैठकर भोजन करते हैं. इस तरह इस खास मौके पर आपसी प्रेम और एकता का संदेश दिया जाता है.