दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में आपसी रजामंदी से समलैंगिक संबंध को जायज ठहराया है. कोर्ट ने अपने फैसले में आईपीसी की धारा 377 के उस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया है जिसमें समलैंगिकता को आपराधिक माना गया है.
कोर्ट की राय है कि ये प्रावधान जीने की आजादी से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है. कोर्ट के इस फैसले से समलैंगिकों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठनों की जीत हुई है वहीं उन क्रिश्चियन चर्च से लेकर कई दूसरे वर्गों को मायूसी हाथ लगी है जो समलैंगिकता को कानूनी जामा दिए जाने का विरोध कर रहे थे.
कोर्ट ने यह फैसला नाज़ फाउंडेशन नाम के एनजीओ की अर्जी पर सुनाया है. नाज़ फांउडेशन ने आईपीसी की धारा 377 में समलैंगिंकता को आपराधिक करार देने संबंधी प्रावधान को चुनौती दी थी. अदालत के फ़ैसले के बाद फाउंडेशन की डायरेक्टर अंजलि गोपालन ने इस पर ख़ुशी जताई और कहा कि ये 21वीं सदी में पहला क़दम है.
कोर्ट के फैसले के बाद अब सबकी नजर सरकार के कदम पर होगी. दरअसल समलैंगिकता के मसले पर सरकार काफी दिनों से पसोपेश में है.
दुनिया के कई देशों में समलैंगिकता को क़ानूनी मान्यता मिली हुई है. जबकि भारत में क़ानूनी और सामाजिक तौर पर समलैंगिकता को ग़लत माना जाता था. बताया जाता है कि गृहमंत्री पी चिदंबरम भी इस प्रावधान को खत्म करने के पक्ष में हैं. लेकिन ऐसा करने से पहले केंद्र सरकार आमराय बनाने के हक में है. ऐसे में कोर्ट के फैसले के बाद इस मुद्दे पर सरकार को कोई ना कोई कदम जल्द ही लेना होगा.