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अपनी ही बात पर अमल नहीं करते राज ठाकरे

खुद को मराठी हितों के रक्षक बताने वाले जहां जरूरी होता है, अपनी जुबान से पलट भी जाते हैं. महाराष्ट्र में उत्तर भारत के कई मज़दूर ऐसे भी हैं, जिन्हें रोज़गार का कोई खतरा नहीं. ठाकरे जैसे लोग इन्हें भगाएंगे तो खुद मुश्किल में पड़ जाएंगे.

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खुद को मराठी हितों के रक्षक बताने वाले जहां जरूरी होता है, अपनी जुबान से पलट भी जाते हैं. महाराष्ट्र में उत्तर भारत के कई मज़दूर ऐसे भी हैं, जिन्हें रोज़गार का कोई खतरा नहीं. ठाकरे जैसे लोग इन्हें भगाएंगे तो खुद मुश्किल में पड़ जाएंगे.

उत्तर प्रदेश के बस्‍ती जिले का रहने वाला बशीर खान ऐसा ही एक शख्‍स है. बशीर खान किंग खान की तरह बड़ा तो नहीं, लेकिन मराठी का झंडा उठाए फिर रहे एक ठाकरे के मुंह पर खड़ा कहता है- यस, माई नेम इज़ ख़ान. ये खान छोटे ठाकरे के पोस्टर बनाता है. ये खान पूरे महाराष्ट्र में छोटे ठाकरे के कटआउट लगाता है. हिम्मत हो तो मराठी वाले इस खान का रास्ता रोक दें. ऐसा ही एक और मजदूर है मुहम्‍मद खान. ये भी उत्तर प्रदेश का ही रहने वाला है.

परदेस में काम करना बशीर खान और मुहम्मद खान की मजबूरी है और राज ठाकरे जैसों की मजबूरी है उत्तर भारत से आने के बावजूद इन्हें बर्दाश्त करना. बशीर खान में कोई ग्लैमर भी नहीं, जो इनके विरोध से किसी की राजनीति चमके और इन्हें भगाएंगे तो राज ठाकरे के कट-आउट कौन खड़े करेगा. तो मजबूरी में ही सही स्वीकार कीजिए कि महाराष्ट्र सिर्फ आपका नहीं पूरे राष्ट्र का है या फिर बशीर खान को कह दीजिए कि आपके कट-आउट न लगाएं और यूपी लौट जाएं. वैसे एक विकल्प ये भी है कि आपलोग खुद को दोहरा चरित्र वाला घोषित कर दें.

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