पाकिस्तान की लाहौर हाईकोर्ट ने मंगलवार को 2014 वाघा बॉर्डर आत्मघाती हमले के मामले में बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने इस हमले के तीन दोषियों को बरी कर दिया. इन तीनों आरोपियों हसीनुल्लाह हसीना, हबीबुल्लाह और सैयद जान उर्फ गजनी को निचली अदालत ने मौत की सजा और 300 साल कैद की सजा सुनाई थी. यह सजा 2020 में दी गई थी.
वाघा बॉर्डर पर 2014 में हुए आत्मघाती हमले में 60 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. इस हमले की जिम्मेदारी प्रतिबंधित संगठनों जिंदुल्लाह और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के गुट जमात-उल-अहरार ने ली थी. आरोप था कि ये तीनों आरोपी हमलावरों को मदद कर रहे थे.
लाहौर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
राज्य पक्ष ने कोर्ट में कहा कि दोषियों को किसी भी तरह की राहत नहीं मिलनी चाहिए और उनकी सजा को बरकरार रखा जाना चाहिए. वहीं बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है और एफआईआर में इनके नाम घटना के नौ महीने बाद जोड़े गए. उन्होंने कहा कि सरकार गवाह और साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रही.
आत्मघाती हमले के मामले तीन बरी
मामले की सुनवाई पांच साल से ज्यादा चली और इस दौरान अभियोजन पक्ष ने सौ से अधिक गवाह पेश किए. हालांकि कोर्ट ने कहा कि सबूत पर्याप्त नहीं हैं और गवाहों के बयान आरोप साबित नहीं कर पाए. इसके बाद हाईकोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया और निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया.