scorecardresearch
 

...पंजाब को पसंद नहीं 'दिल्ली कंट्रोल्ड' सीएम!

बीजेपी तमाम कोशिशों के बावजूद पंजाब में पैठ नहीं बना पाई. पार्टी वहां सत्ता में भी रही तो एसएडी के साथ गठबंधन करके. इसके पीछे मुख्य वजह पंजाब की जनता का दिल्ली नियंत्रित सीएम के खिलाफ टेस्ट ही बताया जाता है.

Advertisement
X
कैप्टन अमरिंदर सिंह (फाइल फोटो)
कैप्टन अमरिंदर सिंह (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कैप्टन के जाने से हो सकता है सियासी नुकसान
  • सिख और क्षेत्रीय अस्मिता हैं सियासत की धुरी

नवजोत सिंह सिद्धू के साथ महीनों चली सियासी खींचतान के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह को आखिरकार पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. कैप्टन ने सीएम की कुर्सी छोड़ी तो इसके बाद विधायक दल की बैठक और नए मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह से भी दूरी बना ली. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने न पार्टी छोड़ी और ना ही भविष्य की राजनीति को लेकर अब तक कोई नया ऐलान ही किया. हां, वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू पर लगातार हमलावर हैं. उन्होंने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को अनुभवहीन बता दिया तो साथ ही ये ऐलान भी कर दिया कि अगर पार्टी सिद्धू को सीएम कैंडिडेट बनाती है तो हम उनके खिलाफ मजबूत उम्मीदवार उतारेंगे.

कोई कह सकता है कि सीएम की कुर्सी से हटाए जाने के बाद ये सब कैप्टन की भड़ास है, हो भी सकता है. नए सीएम और सिद्धू पर कैप्टन लगातार हमलावर हैं. स्टेट लीडरशिप से शुरू हुए कैप्टन के तीखे हमले की जद में अब गांधी भाई-बहन भी आ गए हैं. सवाल ये भी उठता है कि राजीव गांधी से भी सीनियर, पंजाब में कांग्रेस का पर्याय रहा 80 साल के कैप्टन अमरिंदर जैसा अनुभवी नेता ऐसा कर कैसे ले रहा? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें पंजाब की सियासत का अतीत जानना होगा, उसका मिजाज समझना होगा.

कैसा रहा है पंजाब का सियासी टेस्ट

पंजाब का सियासी टेस्ट स्थानीयता का रहा है. सिखिस्तान स्टेट की मांग चली आ रही थी. सिखिस्तान स्टेट की मांग ही साल 1920 में अस्तित्व में आए शिरोमणि अकाली दल की राजनीति की धुरी भी रही. साल 1958 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने भाषायी आधार पर सिखिस्तान राज्य की मांग ठुकराई तो इंदिरा गांधी की सरकार ने 1966 में ये मांग मान ली और वर्तमान पंजाब राज्य अस्तित्व में आया. राज्य के पुनर्गठन, वर्तमान पंजाब राज्य के अस्तित्व में आने के साथ ही हिंदू बहुल सूबे में सिख की बहुलता हो गई. पंजाबी भाषा, सिख अस्मिता, क्षेत्रीय अस्मिता सूबे की सियासत की धुरी बन गए.

Advertisement

प्रदेश में अकाली दल की पकड़ मजबूत होती चली गई. ये बात हम नहीं आंकड़े कह रहे हैं. पंजाब में साल 1977 से अब तक कुल नौ दफे विधानसभा चुनाव हुए हैं जिनमें से पांच बार शिरोमणि अकाली दल ने सरकार बनाई. चार बार सूबे में गैर अकाली सरकार बनी. हालांकि, चारो ही दफे साल 1980, 1992, 2002 और 2017 में सत्ता कांग्रेस को मिली. 1992 के चुनाव में कांग्रेस जीती लेकिन तब शिरोमणि अकाली दल ने इसका बहिष्कार किया था. इसके बाद 2002 और 2017 में कांग्रेस की चुनावी जीत का श्रेय कैप्टन अमरिंदर सिंह को दिया गया.

पंजाब में समानांतर कांग्रेस चलाते दिखे कैप्टन

पंजाब में ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार के कारण उत्पन्न नाराजगी, दिल्ली के दलों के खिलाफ सियासत के मिजाज के बावजूद यदि सत्ता मिली तो उसका श्रेय कैप्टन अमरिंदर सिंह की सियासी समझ को जाता है. कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में एक तरह से समानांतर कांग्रेस चलाते नजर आए हैं. वे कई मौकों पर पार्टी आलाकमान, पार्टी के नेतीओं की लाइन से अलग अपनी अलग लाइन पर खड़े नजर आए हैं. कैप्टन अमरिंदर कांग्रेस में रहते हुए मजबूत रीजनल नेता की छवि बनाने में सफल रहे हैं. कैप्टन पंजाब के लोगों के मन में ये विश्वास भरने में सफल रहे कि वे किसी की नहीं सुनते, आलाकमान की भी नहीं. वे वही करेंगे जो इनका मन करेगा.

Advertisement

कांग्रेस के लिए कई दफे कैप्टन के इस अक्खड़ स्वभाव की वजह से परिस्थितियां असहज करने वाली हो जाती थीं लेकिन यही पंजाब तमाम विरोधी हालात में भी पार्टी की मजबूती भी साबित हुआ. साल 1984 में ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार के बाद कैप्टन ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी और वे भी शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए थे. केवल तब ही नहीं, उसके बाद जब वे कांग्रेस में वापस आ गए तब भी कई मौकों पर वे अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े नजर आए.

सियासत के मंझे खिलाड़ी 80 साल के कैप्टन पंजाब की जनता का टेस्ट बखूबी जानते हैं. कैप्टन ने सिद्धू को ड्रामा मास्टर बताया और यहां तक कह दिया कि उनके नेतृत्व में पार्टी डबल डिजिट में नहीं पहुंच पाएगी. कैप्टन जानते हैं कि सिद्धू की इमेज दिल्ली के नेताओं यानी पार्टी आलाकमान के प्रति लॉयलिस्ट की रही है और पंजाब की जनता को पसंद नहीं. कैप्टन जानते हैं कि पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को ये पद पार्टी आलाकमान की कृपा से मिला है. ऐसे में वे आलाकमान के खिलाफ सामने खड़े होकर पंजाब में समानांतर कांग्रेस चलाने का साहस शायद ही दिखा पाएं.

तो इसलिए बीजेपी नहीं बना पाई पैठ

बीजेपी तमाम कोशिशों के बावजूद पंजाब में पैठ नहीं बना पाई. पार्टी वहां सत्ता में भी रही तो एसएडी के साथ गठबंधन करके. इसके पीछे मुख्य वजह पंजाब की जनता का दिल्ली नियंत्रित सीएम के खिलाफ टेस्ट ही बताया जाता है. कैप्टन अमरिंदर सिंह जब पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटे तब चर्चा थी कि वे बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. कहा तो यहां तक जा रहा था कि कैप्टन पंजाब का सियासी टेस्ट देखते हुए अपनी पार्टी बना सकते हैं लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है. कैप्टन को पंजाब की जनता का मिजाज अच्छे से पता है. शायद यही वजह है कि सीएम की कुर्सी से इस्तीफा देने के बाद कैप्टन ने भले ही स्थानीय से लेकर शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल रखा हो लेकिन उन्होंने इस तरह के किसी कदम का ऐलान नहीं किया.

Advertisement

2017 में जब पंजाब ने चौंकाया था

हम जिस बिंदु पर चर्चा करने जा रहे हैं उसका कांग्रेस, कैप्टन या सिद्धू से तो कोई सीधा नाता नहीं है लेकिन पंजाब की सियात का मिजाज समझने के लिए उसका जिक्र जरूरी है. साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले तमाम एग्जिट पोल, ओपिनियन पोल में आम आदमी पार्टी (एएपी) की जीत के अनुमान थे. एएपी के खेमे में खुशी भी थी लेकिन जब चुनाव नतीजे आए तो सियासी पंडित भी चकरा गए. कैप्टन अमरिंदर के नेतृत्व में कांग्रेस ने 117 सदस्यीय विधानसभा में 77 सीटें जीतकर बहुमत के आंकड़े को पार कर लिया था जबकि एएपी 20 सीट के साथ दूसरे नंबर पर ही रह गई थी. इसके पीछे भी जनता को दिल्ली कंट्रोल्ड सीएम का मंजूर न होना ही मुख्य वजह था. एएपी ने सीएम कैंडिडेट तो घोषित नहीं किया था लेकिन बार-बार दिल्ली की तर्ज पर सरकार बनाने की बात, दिल्ली के सीटिंग विधायक जरनैल सिंह को प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा जाना, इन सबके मायने यही निकाले गए कि एएपी के सत्ता में आने पर जो भी सीएम बनेगा उसके कंट्रोल का रिमोट दिल्ली में रहेगा.

'कैप्टन डैमेज' के कंट्रोल की कोशिश हैं चन्नी?

कैप्टन की नाराजगी के कारण होने वाले संभावित डैमेज का अनुमान कांग्रेस को भी है. तभी तो पार्टी ने गांधी परिवार के करीबियों में गिने जाने वाले सुनील जाखड़ और अंबिका सोनी तक के नाम पर चर्चा हुई लेकिन पार्टी गैर सिख सीएम का रिस्क उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. कैप्टन की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए कांग्रेस ने सुखजिंदर सिंह रंधावा के नाम पर भी विचार किया लेकिन अंत में कमान चरणजीत सिंह चन्नी को दी जो पंजाब में प्रभावशाली दलित बिरादरी से भी आते हैं. कैप्टन अमरिंदर की सरकार में मंत्री रहे चन्नी की गिनती उनके विरोधियों में होती है.

Advertisement

कांग्रेस ने चन्नी को सीएम बनाकर एक तीर से तीन शिकार करने की कोशिश की है. 'कैप्टन डैमेज' को कंट्रोल करने की कोशिश की है. प्रभावशाली दलित आबादी से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाकर कैप्टन की नाराजगी के कारण होने वाले डैमेज की भरपाई का प्रयास किया है. दूसरे चरणजीत सिंह चन्नी की गिनती कैप्टन के विरोधी नेताओं में होती है. तीसरा चरणजीत सिंह चन्नी गैर सिख भी नहीं हैं. कांग्रेस ने चन्नी की ताजपोशी के जरिए सिख और दलित को तो साधा ही, कैप्टन को कुर्सी से हटाए जाने के बाद पनपी नाराजगी से पार पाने का प्रयास भी किया है.

गौरतलब है कि नवजोत सिंह सिद्धू ने काफी समय से कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. ऐसे में जब विधानसभा चुनाव में महज कुछ महीने का समय बचा है, कांग्रेस ने सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है तो सत्ता परिवर्तन की उनकी मांग भी पूरी कर दी है. ताजा हालात में विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को लेकर पूरी जवाबदेही सिद्धू की ही होगी और उनके पास सरकार या संगठन को लेकर कैप्टन का बहाना भी नहीं होगा. नवजोत सिंह सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी के सामने विधानसभा चुनाव में खुद को साबित करने की चुनौती है.

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement