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तलाक-ए-हसन केस में बीवी पहुंची सुप्रीम कोर्ट, CJI ने बच्चे के हक में दिया बड़ा फैसला, कहा- कमाकर मेंटेनेंस दो

सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए तलाक-ए-हसन के बाद बच्चे के हक में बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने पिता को बच्चे के मेंटेनेंस देने, पासपोर्ट, स्कूल एडमिशन और बैंक अकाउंट से जुड़े दस्तावेजों पर सहमति देने का निर्देश दिया. कोर्ट ने बच्चे के बैंक अकाउंट की गार्जियनशिप मां को सौंपने और दस्तावेज मां के नाम अपडेट करने का भी आदेश दिया.

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SC ने तलाकशुदा मुस्लिम मां को बच्चे का गार्जियन बनाया, बैंक अकाउंट-आधार मां के नाम पर अपडेट करने का आदेश
SC ने तलाकशुदा मुस्लिम मां को बच्चे का गार्जियन बनाया, बैंक अकाउंट-आधार मां के नाम पर अपडेट करने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक मुस्लिम महिला की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला दिया. मह‍िला का आरोप है कि शौहर ने तीन साल पहले बीवी को तलाक-ए-हसन देकर घर से निकाल दिया था. ये तलाक तीन महीने के अंतराल पर दिया जाता है. तलाक के बाद बच्चा उसके पास है और वो ही उसकी देखभाल कर रही है. महिला ने बताया कि तलाक के बाद बच्चे के पासपोर्ट, स्कूल एडमिशन, मेंटेनेंस और अन्य जरूरी कामों के लिए अधिकारियों ने बच्चे के पिता की सहमति मांगी थी.

याच‍िका पर चीफ जस्टिस ने पिता को निर्देश दिया कि वो बच्चे के पासपोर्ट जारी करने, स्कूल एडमिशन और बैंक अकाउंट से जुड़े सभी दस्तावेजों पर साइन करें. कोर्ट ने कहा कि स्कूल ने बच्चे को एडमिशन देने पर सहमति जता दी है और अगर पिता का कोई कंसेंट लेटर चाहिए तो वो देगा. सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को भी आदेश दिया कि नाबालिग बच्चे का अकाउंट पिता की बजाय उसकी मां को गार्जियन बनाकर खोला जाए. बच्चे का आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज मां के नाम पर अपडेट करने का भी निर्देश दिया गया. 

बच्चे का मेंटेनेंस दे पिता- सुप्रीम कोर्ट 

कोर्ट ने पिता को बच्चे का मेंटेनेंस देने का भी आदेश दिया. महिला के वकील ने दलील दी कि अगर तलाक नहीं हुआ होता और बच्चा पिता के पास होता, तो भी उसे स्कूल, कपड़े, किताबें, दूध-चीनी जैसी चीजों के लिए पैसे देने पड़ते. महिला खुद के लिए कुछ नहीं मांग रही, वो सिर्फ बच्चे के लिए मांग रही. उन्होंने बताया कि पति दिल्ली कोर्ट में वकील है, लेकिन दावा कर रहा है कि उसकी कमाई बहुत कम है. 

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...तो दोबारा शादी क्यों की?

पति के वकील ने कहा कि भारत में लोग अलग-अलग तरीके से जीते हैं, 20 हजार रुपये महीना ज्यादातर लोगों से ज्यादा है और उसकी सैलरी फिक्स्ड है. इस पर महिला के वकील ने जवाब दिया कि उसने पहली पत्नी को तलाक देकर बच्चे को बाहर निकाला, फिर दूसरी शादी कर ली और दूसरा बच्चा भी है, फिर भी कहता है कि महीने में सिर्फ 20 हजार कमाता है और पहली संतान को कुछ नहीं दे सकता. ऐसा है तो दोबारा शादी क्यों की?

इस पर सीजेआई ने टिप्पणी की, 'तुम वकील हो' फिर कहा कि उसे सुप्रीम कोर्ट की लीगल सर्विसेज कमिटी में भेजो, वहां उसे पैनल में डालो और हर महीने कम से कम दो केस दो, जिससे 10 हजार रुपये कम से कम आएंगे. वो पैसे सीधे बच्चे के मेंटेनेंस के लिए जाएंगे. कोर्ट ने साफ कहा कि बच्चे का पिता से सपोर्ट पाने का हक है, बच्चे का पिता पर और देश पर हक है. 

CJI ने मांगी मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर सबमिशन

महिला के वकील ने पूछा कि पिछले 36 महीनों से एक पैसा नहीं दिया, क्या शरिया में भी मेंटेनेंस देने की कोई जिम्मेदारी नहीं है? सीजेआई ने कहा कि ये मुद्दे बाद में देखेंगे. सभी पक्षों और इंटरवीनर्स से कहा कि तलाक में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर छोटी लिखित सबमिशन दाखिल करें. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो मुस्लिम महिलाओं के तलाक में मेंटेनेंस और अधिकारों के बड़े मुद्दे पर गौर करेंगे. 

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