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पति की बढ़ी हैसियत के आधार पर गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती महिला, SC ने कहा- नियम कल्याण के लिए, वसूली के लिए नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "महिलाओं को इस बात को लेकर सावधान रहने की जरूरत है कि उनके हाथों में सख्त प्रावधान उनके कल्याण के लिए लाभकारी कानून हैं, न कि उनके पतियों को दंडित करने, धमकाने, उन पर हावी होने या उनसे जबरन वसूली करने का साधन."

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गुजारा भत्ता पर SC की सख्त टिप्पणी! (प्रतीकात्मक तस्वीर/AI)
गुजारा भत्ता पर SC की सख्त टिप्पणी! (प्रतीकात्मक तस्वीर/AI)

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए शादी टूटने के बाद पति के द्वारा मिलने वाले गुजारे भत्ते पर टिप्पणी की है. अदालत ने वैवाहिक मामलों में गुजारा भत्ता दूसरे पक्ष की आर्थिक स्थिति की बराबरी वाला मांगने की प्रवृत्ति पर चिंता जाहिर की है. कोर्ट ने गुरुवार को कहा, "गुजारा भत्ता की डिमांड करते वक्त महिला अपने पूर्व पति से उसके मौजूदा जीवन स्तर के मुताबिक गुजारा भत्ता की उम्मीद नहीं कर सकती है."

अदालत ने कहा, "कानून के सख्त प्रावधान महिलाओं के कल्याण के लिए हैं, न कि उनके पतियों को 'दंडित करने, धमकाने, उन पर हावी होने या उनसे जबरन वसूली करने' के लिए बनाए गए हैं."

जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस पंकज मिथल ने कहा कि हिंदू विवाह को एक पवित्र संस्था माना जाता है, जो परिवार की नींव है, न कि एक 'कमर्शियल वेंचर'

'कानून पति को दंडित करने के लिए नहीं...'

सुनवाई कर रही बेंच ने पाया कि वैवाहिक विवादों से संबंधित ज्यादातर शिकायतों में रेप, आपराधिक धमकी और विवाहित महिला के साथ क्रूरता करने जैसी IPC धाराओं को एक साथ शामिल करने की सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर निंदा की है.

बेंच ने कहा, "महिलाओं को इस बात को लेकर सावधान रहने की जरूरत है कि उनके हाथों में सख्त प्रावधान उनके कल्याण के लिए लाभकारी कानून हैं, न कि उनके पतियों को दंडित करने, धमकाने, उन पर हावी होने या उनसे जबरन वसूली करने का साधन."

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कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की, जब बेंच ने एक अलग रह रहे जोड़े के बीच विवाह को इस आधार पर भंग कर दिया कि यह अब ठीक नहीं हो सकता. बेंच ने कहा, "आपराधिक कानून में प्रावधान महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ महिलाएं इनका इस्तेमाल ऐसे मकसद के लिए करती हैं, जिनके लिए वे कभी नहीं होतीं." 

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पति को कितना देना होगा गुजारा भत्ता?

मामले में पति को आदेश दिया गया कि वह अलग रह रही पत्नी को एक महीने के अंदर उसके सभी दावों के लिए पूर्ण और अंतिम निपटान के रूप में 12 करोड़ रुपये स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में दे.

हालांकि, बेंच ने उन मामलों पर टिप्पणी की, जहां पत्नी और उसके परिवार ने इन गंभीर अपराधों के लिए आपराधिक शिकायत को बातचीत के लिए एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया और पति और उसके परिवार को अपनी मांगों को पूरा करने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया. 

बेंच ने कहा कि पुलिस कभी-कभी चुनिंदा मामलों में कार्रवाई करने में जल्दबाजी करती है, पति और उसके रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लेती है, जिसमें बुजुर्ग और बिस्तर पर पड़े माता-पिता और दादा-दादी शामिल होते हैं. जबकि ट्रायल कोर्ट FIR में 'अपराध की गंभीरता' की वजह से आरोपी को जमानत देने से परहेज करते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें भोपाल की एक कोर्ट में लंबित हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1) के तहत दायर तलाक याचिका को पुणे की एक कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की गई थी.

पति ने संविधान के अनुच्छेद 142 (1) के तहत विवाह विच्छेद की मांग की थी.

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क्यों कामयाब नहीं हुई शादी?

कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष और उनके परिवार के सदस्य अपने वैवाहिक रिश्ते की अवधि के दौरान कई मुकदमों में उलझे रहे. बेंच ने कहा कि शादी वास्तव में आगे नहीं बढ़ पाई, क्योंकि अलग हुआ कपल लगातार साथ नहीं रहा.

गुजारा भत्ते के मुद्दे पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा, "पत्नी ने दावा किया है कि अलग हुए पति की कुल संपत्ति 5,000 करोड़ रुपये है, जिसमें अमेरिका और भारत में कई बिजनेस और संपत्तियां शामिल हैं और उसने अलग होने पर पहली पत्नी को करीब 500 करोड़ रुपये का भुगतान किया था.

सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति

सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे पक्ष के साथ संपत्ति के बराबर के रूप में भरण-पोषण या गुजारा भत्ता मांगने वाले पक्षों की तरीके पर गंभीर आपत्ति व्यक्त की. बेंच ने कहा, "अक्सर देखा जाता है कि भरण-पोषण या गुजारा भत्ता के लिए अपने आवेदन में पक्ष अपने जीवनसाथी की संपत्ति, स्थिति और आय को उजागर करते हैं और फिर एक ऐसी राशि मांगते हैं, जो उनके जीवनसाथी की संपत्ति के बराबर हो."

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बेंच ने आश्चर्य जताया कि क्या पत्नी संपत्ति के समानीकरण की मांग करने के लिए तैयार होगी, अगर किसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना की वजह से अलगाव के बाद वह कंगाल हो जाता है? बेंच ने कहा कि गुजारा भत्ता तय करना कई वजहों पर निर्भर करता है और कोई सीधा-सादा फॉर्मूला नहीं हो सकता.

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₹8 करोड़ पर सहमति

आपसी तलाक के आदेश द्वारा अपनी शादी को खत्म करने की मांग करने वाली संयुक्त याचिका में पति ने सभी दावों के अंतिम निपटान के लिए 8 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान करने पर सहमति जताई थी.

बेंच ने कहा, "पुणे की फैमिली कोर्ट ने स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 10 करोड़ रुपये का आकलन किया है, जिसके लिए याचिकाकर्ता हकदार हो सकती है. हम पुणे की फैमिली कोर्ट के निष्कर्ष को स्वीकार करते हैं. याचिकाकर्ता को 2 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि का भुगतान किया जाना चाहिए, जिससे वह एक और फ्लैट खरीद सके."

सुप्रीम कोर्ट ने अलग हुए पति के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर आपराधिक मामलों को भी रद्द कर दिया.

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