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एक तो लॉकडाउन उस पर पानी की किल्लत, बीकानेर में जंग जैसी हो गई है 24 घंटे की जिंदगी

बीकानेर के एक हजार वाले इस घर में 5 टयूबवेल थे. जिससे बड़ी मुश्किल से सभी का काम चल पाता था. लेकिन इस बार की गर्मियों में 4 ट्यूबवेल खराब हो गए हैं. अब एक मात्र ट्यूबवेल से पानी भरने के लिए घर की महिलाओं को कई बार चक्कर लगाना पड़ता है.

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बीकानेर में पानी की किल्लत (फोटो- आजतक)
बीकानेर में पानी की किल्लत (फोटो- आजतक)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • लॉकडाउन काल में पानी की किल्लत
  • 1 हजार घर वाले गांव में 5 ट्यूबवेल, 4 खराब
  • प्रचंड गर्मी की वजह से बीकानेर में सूखे की स्थिति

राजस्थान में एक तो कोरोना का संकट, ऊपर से चिलचिलाती धूप और गर्मी. महामारी की मार और प्रकृति के वार ने राजस्थान के बीकानेर में लोगों की मुश्किलें कई गुना बढ़ा दी है. बीकानेर के धीरदेसर चोटियान गांव में लॉकडाउन के दौरान पानी की जबर्दस्त किल्लत हो गई है. ये इलाका बीकानेर से 100 किलोमीटर दूर है. 

प्रचंड गर्मी की वजह से बीकानेर में सूखे की स्थिति है. जरूरी काम के लिए भी पानी काफी दूर से लाना पड़ता है. इलाके के वैसे किसान या पशुपालक जो जानवर रखते हैं उनके लिए स्थिति और भी खराब है. 

रेगिस्तान के जहाज ऊंट से पानी भरने निकले सीताराम कहते हैं कि सिर्फ दो तीन टंकी ही भर पाते है. पानी है नहीं कहां से लाएं. कोई खेत से लाता है. पर उधर से आता है तो बहुत महंगा पड़ता है. एक टंकी पानी कितने दिन चलेगा और महंगा पड़ता है. एक घर में 10 पशु है और घर वाले हैं.

बीकानेर के गांव में खराब पड़ा है ट्यूबवेल (फोटो-आजतक)

एक हजार वाले इस घर में 5 टयूबवेल थे. जिससे बड़ी मुश्किल से सभी का काम चल पाता था. लेकिन इस बार की गर्मियों में 4 ट्यूबवेल खराब हो गए हैं. अब एक मात्र ट्यूबवेल से पानी भरने के लिए घर की महिलाओं को कई बार चक्कर लगाना पड़ता है. 

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पानी भरने आई यशोदा ने कहा कि हमलोग प्यासे मर रहे हैं, बाल्टी लेकर कभी कहीं जाते हैं, भटकते फिरते हैं, दूर दराज इलाकों से लाकर पानी कैसे पिया जाए? यहां पानी की कमी से मरने जैसे हालात हो गए हैं. 

पानी लाने के लिए कई किलोमीटर चलना पड़ता है. (फोटो-आजतक)

ट्यूबवेल  की मरम्मत को लेकर गांव के सरपंच ने अधिकारियों को चिट्ठी लिखी, मिन्नतें की लेकिन कोई समाधान नहीं निकला. अधिकारी एक ही तर्क देते हैं कि लॉकडाउन में कुछ नहीं किया जा सकता है. 

पानी की कमी से परेशान खेती करने लोग अब खेतों में रहते हैं ताकि कम से कम पानी जरूरतभर मिल सके.  ग्रामीणों को अब प्रशासन के जगने का इंतजार है. 

 

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