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'कोर्ट से भरोसा उठ गया...', केरल एक्ट्रेस यौन उत्पीड़न केस में फैसले पर पीड़िता का पहला पोस्ट

यह मामला वर्ष 2017 में एक मलयालम अभिनेत्री के अपहरण और यौन उत्पीड़न से जुड़ा है. करीब आठ साल नौ महीने तक चली कानूनी प्रक्रिया के बाद 8 दिसंबर 2025 को एर्नाकुलम की अदालत ने अभिनेता दिलीप को सभी आरोपों से बरी कर दिया था.

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केरल की एक्ट्रेस ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के बाद पहली बार पोस्ट किया। (Photo: India Today/Vikram)
केरल की एक्ट्रेस ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के बाद पहली बार पोस्ट किया। (Photo: India Today/Vikram)

केरल के चर्चित एक्ट्रेस के अपहरण और यौन उत्पीड़न मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले के करीब एक हफ्ते बाद पीड़िता ने पहली बार सार्वजनिक प्रतिक्रिया दी है. सोशल मीडिया पर साझा किए गए अपने लंबे बयान में पीड़िता ने ट्रायल कोर्ट की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने अदालत पर भरोसा खो दिया है. उन्होंने यह भी लिखा कि देश में हर नागरिक को कानून के सामने समान रूप से नहीं देखा जाता.

गौरतलब है कि यह मामला वर्ष 2017 में एक मलयालम अभिनेत्री के अपहरण और यौन उत्पीड़न से जुड़ा है. करीब आठ साल नौ महीने तक चली कानूनी प्रक्रिया के बाद 8 दिसंबर 2025 को एर्नाकुलम की अदालत ने अभिनेता दिलीप को सभी आरोपों से बरी कर दिया था, जबकि इस मामले में छह अन्य आरोपियों को दोषी ठहराया गया. अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि अभियोजन पक्ष दिलीप की आपराधिक साजिश में संलिप्तता साबित नहीं कर सका.

फैसले के कुछ ही दिनों बाद दिलीप को फिल्म कर्मचारियों के संगठन FEFKA की सदस्यता भी बहाल कर दी गई और उनकी फिल्म ‘भा भा बा’ की रिलीज 18 दिसंबर को तय है.

पीड़िता ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा कि 12 दिसंबर 2025 को, लगभग नौ साल बाद, उन्हें इस लंबे और दर्दनाक संघर्ष के अंत में एक छोटी सी रोशनी नजर आई, क्योंकि छह आरोपियों को सजा मिली. उन्होंने कहा कि यह पल उन लोगों को समर्पित है, जिन्होंने उनके दर्द को झूठ और इस केस को मनगढ़ंत कहानी बताया.

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अपने बयान में पीड़िता ने उन दावों को भी खारिज किया कि मुख्य आरोपी उनका निजी ड्राइवर था. उन्होंने स्पष्ट किया कि वह न तो उनका ड्राइवर था, न कर्मचारी और न ही कोई करीबी व्यक्ति, बल्कि एक ऐसा शख्स था जिससे उनकी मुलाकात केवल एक-दो बार फिल्म के सिलसिले में हुई थी.

पीड़िता ने आरोप लगाया कि वर्ष 2020 से ही उन्हें महसूस होने लगा था कि मामले की सुनवाई में कुछ ठीक नहीं चल रहा. उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष ने भी एक विशेष आरोपी को लेकर अदालत के रवैये में बदलाव नोटिस किया था. उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्होंने कई बार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और इस मामले को उसी जज से हटाने की मांग की, लेकिन हर बार उनकी अपील खारिज कर दी गई.

अपने पोस्ट में उन्होंने कहा, “मेरे मौलिक अधिकारों की रक्षा नहीं की गई. इस केस का सबसे अहम सबूत मेमोरी कार्ड को अदालत की कस्टडी में रहते हुए तीन बार अवैध रूप से एक्सेस किया गया.” उन्होंने बताया कि दो सरकारी वकीलों ने भी यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि अदालत का माहौल अभियोजन के प्रति शत्रुतापूर्ण हो गया है.

पीड़िता ने यह भी कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की थी और खुली अदालत में सुनवाई की अपील की थी, ताकि जनता और मीडिया सब कुछ देख सकें, लेकिन यह अनुरोध भी ठुकरा दिया गया. अपने बयान के अंत में पीड़िता ने उन सभी लोगों का धन्यवाद किया, जो इस लंबे संघर्ष में उनके साथ खड़े रहे, और कहा कि यह फैसला उन्हें यह एहसास कराता है कि मानवीय सोच और पूर्वाग्रह किस तरह न्याय को प्रभावित कर सकते हैं.

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