राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को झटका लगा है लेकिन पार्टी सपा और दूसरे क्षेत्रीय दलों से बेहतर नतीजे देने में कामयाब रही है.
चार राज्यों के नतीजों के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि इस चुनाव के नतीजे रहस्यात्मक और हैरान करने वाले रहे हैं.लोगों को भी ये नतीजे उनके गले के नीचे नहीं उतर रहे हैं. हालांकि, मायावती ने यह भी माना कि इन नतीजों से उनकी पार्टी में नई जान आई है.
बेशक यूपी के बाहर सीटों के लिहाज से बसपा और सिमट गई हो, उनकी उम्मीदों को झटका लगा हो लेकिन बसपा ने एक बार फिर यह दिखाया है कि इस हिंदी पट्टी में बीजेपी और कांग्रेस के बाद अगर कोई पार्टी अपना वोट बैंक रखती है तो वह बहुजन समाज पार्टी है.
1. देश के चार राज्यों में अभी हाल ही में हुए विधानसभा आमचुनाव के आए परिणाम एक पार्टी के पक्ष में एकतरफा होने से सभी लोगों का शंकित, अचंभित व चिन्तित होना स्वाभाविक, क्योंकि चुनाव के पूरे माहौल को देखते हुए ऐसा विचित्र परिणाम लोगों के गले के नीचे उतर पाना बहुत मुश्किल।
बसपा को इस बार छत्तीसगढ़ में 2.09 फीसदी, राजस्थान में 1.82 फीसदी, मध्य प्रदेश में 3.4 फीसदी और तेलंगाना में 1.38 फीसदी वोट मिले हैं. पार्टी को 2018 में 5.01 फीसदी वोट मिले थे हैं, इस बार मायावती मध्य प्रदेश में एक भी सीट नहीं जीती है जबकि 2018 में बसपा ने दो सीटें जीती थीं.
बता दें कि मायावती ने मध्य प्रदेश में 178 और छत्तीसगढ़ में 53 उम्मीदवार उतारे थे. उन्होंने यहां आठ रैलियां की थीं और उन्हें जीत की पूरी उम्मीद भी थी लेकिन उनकी पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. लेकिन पार्टी ने कांग्रेस का खेल जरूर बिगाड़ा है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मायावती ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से समझौता किया था लेकिन दोनों ही पार्टियों को कोई सीट नहीं मिली. यह एक तरीके का दलित और आदिवासी गठबंधन था. हिंदी बेल्ट में यह मायावती के लिए एक झटके के समान है.
चुनाव के नतीजे ने मायावती को निराश जरूर किया लेकिन नतीजे के भीतर एक सबक भी छिपा है कि मायावती कुछ हद तक अपने वोटों को बचाने में कामयाब रही हैं. इन चार राज्यों में बसपा के वोट बैंक पर अब नजर इंडिया गठबंधन की जरूर होगी क्योंकि बसपा एकलौती ऐसी पार्टी है जो तीनों राज्यों में कम से कम दर्जनभर सीटों पर बहुत अच्छा चुनाव लड़ती नजर आई.
10 दिसंबर को लखनऊ में बसपा की बैठक
हालांकि मायावती ने अब 10 दिसंबर को पार्टी की बड़ी बैठक लखनऊ में बुलाई है, जिसमें आगे की रणनीति पर वह समीक्षा करेगी और उसमें चर्चा यह जरूर होगी कि क्या अब वक्त आ गया है कि किसी गठबंधन का साथ लिया जाए या नहीं?
यह पहला चुनाव है जब मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाकर इन राज्यों की कमान भी दी थी लेकिन अपने पहले ही इम्तिहान में आकाश आनंद को झटका लगा. उन्हें न सिर्फ राजस्थान और मध्य प्रदेश में सीटों का नुकसान हुआ बल्कि वोट प्रतिशत भी गिरा. अगर कांग्रेस और दूसरे क्षेत्रीय दलों से वोटों और सीटों की गिरावट की तुलना करें तो बसपा का प्रदर्शन फिर भी बेहतर रहा है.
अगर इन राज्यों में बसपा का प्रदर्शन अच्छा होता तो आकाश आनंद को इसका क्रेडिट मिलता और यह भी दिखता कि अब विरासत धीरे-धीरे उनके भतीजे तक जा रही है. लेकिन आकाश आनंद को अभी और इंतजार करना पड़ सकता है.
बसपा के अलावा दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों मसलन सपा आरएलडी और चंद्रशेखर रावण की पार्टी अगर इन पार्टियों को भी देखें तो दूर-दूर तक इन पार्टियों को दूरबीन से देखने पर भी वोट प्रतिशत नहीं दिखाई देता. समाजवादी पार्टी को अब तक का सबसे कम वोट प्रतिशत मध्य प्रदेश में मिला है. बहरहाल सभी पार्टियों अब आत्ममंथन में जुट रही हैं और सबके लिए एक बाद विपक्षी गठबंधन ही एकमात्र रास्ता दिखाई देता है.