केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि घुसपैठ, डेमोग्राफिक बदलाव और डेमोक्रेसी आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं. जब तक हर भारतीय, विशेष रूप से युवा इन विषयों को नहीं समझेंगे, तब तक देश, संस्कृति, भाषा और स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना मुश्किल है.
अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा कि भारत में 1951, 1971, 1991 और 2011 में जनगणना हुई, जिसमें धर्म पूछने की परंपरा रही. उन्होंने कहा कि 1951 में हिंदू आबादी 84% थी, जबकि मुस्लिम आबादी 9.8% थी. 1971 में हिंदू आबादी 82 प्रतिशत और मुस्लिम आबादी 11 प्रतिशत हो गई. 1991 में हिंदू आबादी 81 प्रतिशत और मुस्लिम आबादी 12.2 प्रतिशत हो गई. वहीं, 2011 में हिंदू आबादी 79 प्रतिशत और मुस्लिम आबादी 14.2 प्रतिशत हो गई. लिहाजा हिंदू आबादी में भारी कमी देखी गई है.
अमित शाह ने कहा कि मुस्लिम आबादी में 24.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, जबकि हिंदू आबादी में 4.5 प्रतिशत की कमी आई है. उन्होंने कहा कि यह कमी प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) के कारण नहीं, बल्कि घुसपैठ के कारण हुई है. जब भारत का विभाजन हुआ, तो धर्म के आधार पर हमारे दोनों ओर पाकिस्तान का गठन हुआ, जो बाद में बांग्लादेश और पाकिस्तान के रूप में विभाजित हो गया. उन्होंने कहा कि दोनों ओर से घुसपैठ के कारण जनसंख्या में इतना बड़ा परिवर्तन हुआ.
सीएए पर बोले अमित शाह...
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि सीएए किसी की नागरिकता नहीं छीनने का नहीं, बल्कि नागरिकता प्रदान करने का कार्यक्रम है. इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या किसी अन्य की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है. उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य केवल शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करना है. अमित शाह ने कहा कि 1951 से 2014 तक जो ऐतिहासिक गलतियां हुईं, उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने सुधारने का प्रयास किया.
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अमित शाह ने कहा कि अगर दुनिया के हर व्यक्ति को यहां आने की अनुमति दे दी जाए, तो यह देश धर्मशाला बनकर रह जाएगा और हमारा देश सुचारु रूप से नहीं चल पाएगा. लिहाजा प्रत्येक व्यक्ति को यहां आने की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती और विभाजन के परिप्रेक्ष्य में, जिनके साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश में अन्याय हुआ है, उनका यहां स्वागत है. उन्होंने कहा कि इस देश की मिट्टी पर जितना मेरा अधिकार है, उतना ही पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों और ईसाइयों का भी है. भारत का संविधान बहुत स्पष्ट है कि इस देश में प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म के अनुसार अपने ईश्वर की उपासना करने का अधिकार है, और इसमें किसी को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.