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कोविड 19 के बाद भारत में MIS-C के 177 केस आए सामने

यूरोप के नेशनल हेल्थ मिशन ने कहा है कि जिस बच्चे में ऐसे लक्षण दिखाई दें, उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाएं. जांच में बीमारी पुख्ता होने पर तुरंत इलाज कराएं. बीमारी को ठीक करने के लिए इंट्रावीनस इम्यूनोग्लोबुलिन एंटीबॉ़डी और एस्पिरिन ही दो दवाएं हैं. साथ में कॉर्टिकोस्टेरॉयड्स दिए जाते हैं लेकिन बिना डॉक्टरी सलाह के नहीं.

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MIS-C संक्रमण के मामले बढ़े (फाइल फोटो)
MIS-C संक्रमण के मामले बढ़े (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • MIS-C संक्रमण के 177 मामले मिले
  • उत्तरी राज्यों और शहरी इलाकों में आए मामले

उत्तरी राज्यों और शहरी इलाकों में कोविड से ठीक होने के बाद बच्चों में मल्टी- सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम' (MIS-C) संक्रमण के 177 मामले मिले हैं. दिल्ली में दूसरी लहर के बाद मल्टी- सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम' (MIS-C) के 109 मामले सामने आए हैं. वहीं गुरुग्राम-फरीदाबाद में MISC के 68 मामले सामने आए हैं. यह बच्चे छह महीने से 15 साल की उम्र के बीच है. सबसे अधिक मामले पांच साल से 15 साल के बच्चों में देखे जा रहे हैं. एक स्टडी में जानकारी मिली है कि कोविड 19 की पहली लहर में भारत में मल्टी- सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम' (MIS-C) के 2,000 केस मिले हैं. 

इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर (Indian Academy of Pediatric Intensive Care) ने अपने डेटा का हवाला देते हुए कहा कि पिछले पांच दिनों में उत्तर भारत में बच्चों में मल्टी-ऑर्गन इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम के 100 से अधिक मामले सामने आए हैं. 

यह बीमारी खास तौर पर कोरोनावायरस से जूझ रहे बच्चों में होती है. इसके लक्षण भी बहुत कुछ कोविड-19 जैसे ही होते हैं. इस बीमारी में बच्चों के शरीर में बुखार रहता है. नसों और मांसपेशियों में सूजन आ जाती है. गंभीर स्थिति में अंग काम करना बंद कर देते हैं.

MIS-C बहुत कुछ कावासाकी बीमारी जैसी है. इन दोनों के लक्षण भी मिलते जुलते हैं. ज्यादा बुरी हालत होने पर बच्चे टॉक्सिक शॉक और मैक्रोफेज एक्टीवेशन सिंड्रोम से भी जूझते हैं. MIS-C का शुरुआती लक्षण होता है पेट में दर्द, डायरिया, उलटी, रक्तचाप में कमी. इसके अलावा आंखें लाल हो जाती हैं. गले और जबड़े के आसपास सूजन, दिल की मांसपेशियां ठीक से काम नहीं करतीं, फटे होंठ, त्वचा पर लाल रंग के चकते या सूखे के निशान, जोड़ों में दर्द, हाथ-पैर की उंगलियों में सूजन भी दिख सकती है.

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यूरोप के नेशनल हेल्थ मिशन ने कहा है कि जिस बच्चे में ऐसे लक्षण दिखाई दें, उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाएं. जांच में बीमारी पुख्ता होने पर तुरंत इलाज कराएं. बीमारी को ठीक करने के लिए इंट्रावीनस इम्यूनोग्लोबुलिन एंटीबॉ़डी और एस्पिरिन ही दो दवाएं हैं. साथ में कॉर्टिकोस्टेरॉयड्स दिए जाते हैं लेकिन बिना डॉक्टरी सलाह के नहीं.

क्योंकि इस बीमारी के दौरान बच्चों के बुखार को देख कर ऐसा लगता है कि उनकी नसों में खून नहीं आग बह रहा हो. इसलिए डॉक्टर एस्पिरिन दवा का हल्का डोज, एंटीप्लेटलेट ड्रग जैसी दवाएं भी देते हैं.

कावासाकी बीमारी में खून की नसें सूज जाती हैं. उनमें जलन होने लगती है. इसकी वजह से शरीर में कई प्रकार के खतरनाक लक्षण दिखाई देते हैं. अभी तक ये नहीं पता चल पाया है कि आखिर ऐसे हो क्यों रहा है. इस बीमारी का कोरोनावायरस से क्या संबंध है. लेकिन कोरोना पीड़ित बच्चों में ये बीमारी हो रही है. गुजरात से पहले दो महीने पहले केरल के एक बच्चे में भी मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम के लक्षण देखने को मिले थे. लेकिन उसे भी ड़ॉक्टरों ने सही समय पर ठीक कर दिया.
 

 

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