उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने जाति आधारित रैलियों, जाति के नाम पर होने वाले आंदोलनों और कार्यक्रमों पर पाबंदी लगा दी है. साथ ही, राज्य में एफआईआर, गिरफ़्तारी मेमो और चार्जशीट जैसे दस्तावेज़ों से जाति का उल्लेख करने पर रोक लगा दी गई है. योगी सरकार के इस फ़ैसले से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सहमत नहीं हैं. इस मुद्दे पर उनकी राय अलग है.
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव मुंबई में जब मुख्यमंत्री फडणवीस से पूछा गया कि महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का फ़ैसला लिए जाने के बाद राज्य में अलग-अलग जातियों के आंदोलन खड़े हो गए हैं. उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों और प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई है, आप इसे कैसे देखते हैं? इस पर फडणवीस ने कहा कि इस पर मेरी राय अलग है, जातीय आंदोलनों और रैलियों पर किसी तरह की पाबंदी नहीं लगानी चाहिए.
फडणवीस ने कहा कि मैं नहीं मानता कि इस तरह की कोई पाबंदी लगाने की ज़रूरत है. हमारे देश में अलग-अलग समाज अपनी-अपनी पहचान तलाशते हैं. एक पहचान की राजनीति होती है. उसे कितनी अहमियत मिलती है, वह अलग सवाल है. जब आप एक समाज के बारे में कोई फ़ैसला करते हैं तो दूसरा समाज सोचने लगता है कि क्या सरकार हमारे बारे में भी यही सोचती है.
मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र में जो अलग-अलग समाज की मांगें उठ रही हैं, वे आज की नहीं हैं, बल्कि 30 या 40 साल से माँगें हो रही हैं. इनमें से कुछ जगह पर संवैधानिक दिक्कतें हैं तो कुछ जगह कानूनी अड़चनें हैं. लेकिन, समाज की एक मानसिकता होती है, कुछ आवश्यकताएं होती हैं और उनकी मांगें होती हैं. ऐसे में मेरा मानना है कि उनका समाधान करना चाहिए. मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं कि मैं उन सभी माँगों को हल कर सकता हूं, क्योंकि संविधान व कानून के दायरे में रहकर काम करना होता है.
उन्होंने कहा कि हर समाज अपना भाव ज़ाहिर करता है, लेकिन सरकार को संतुलन बनाए रखना चाहिए. उन्हें यह बताना पड़ता है कि अगर हमें आपकी माँग को पूरा करने के लिए दूसरे समाज के हिस्से से कुछ लेना होगा. ऐसे में सरकार को देखना चाहिए कि किसी समाज की माँग को पूरा करने में दूसरे समाज के अधिकार का हनन न हो जाए. मुख्यमंत्री की यह राय आरक्षण के मुद्दे पर है.