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महाराष्ट्र निकाय चुनावों से पहले महायुति में खटपट! BJP-शिवसेना की रणनीति में NCP अलग-थलग क्यों?

महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर बीजेपी और शिवसेना की बैठक से अजित पवार की एनसीपी गायब दिख रही है. इसने सियासी चर्चाओं को हवा दी है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या महायुति में अजित पवार की पार्टी को दरकिनार किया जा रहा है?

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महाराष्ट्र निकाय चुनावों को लेकर महायुति की बैठक से अजित पवार की एनसीपी की गैरमौजूदगी ने सियासी चर्चाओं को हवा दी. (File Photo: PTI)
महाराष्ट्र निकाय चुनावों को लेकर महायुति की बैठक से अजित पवार की एनसीपी की गैरमौजूदगी ने सियासी चर्चाओं को हवा दी. (File Photo: PTI)

महाराष्ट्र में 29 महानगरपालिकाओं सहित स्थानीय निकाय चुनावों का बिगुल बज चुका है. मतदान 15 जनवरी को और मतगणना 16 जनवरी को होगी. इसे 'मिनी विधानसभा चुनाव' भी कहा जा रहा है. ये चुनाव सत्तारूढ़ 'महायुति' गठबंधन की एकता की परीक्षा  भी लेंगे. महायुति में शामिल भारतीय जनता पार्टी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने चुनावी रणनीति को अंतिम रूप देने की कवायद तेज कर दी है. 

इसी कड़ी में बीजेपी के मुंबई स्थित वसंत स्मृति कार्यालय में दोनों दलों के शीर्ष नेताओं की बैठक हुई, जहां मुंबई समेत राज्य की प्रमुख नगर पालिकाओं को लेकर मंथन किया गया. बैठक में मुंबई के साथ-साथ ठाणे, कल्याण-डोंबिवली, मीरा-भायंदर, पुणे, पिंपरी-चिंचवड़, कोल्हापुर, सोलापुर और संभाजीनगर नगर निगम चुनावों में एकजुट होकर लड़ने और सीट शेयरिंग पर चर्चा हुई. हालांकि इस अहम बैठक में उपमुख्यमंत्री अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की गैरमौजूदगी ने कई राजनीतिक सवाल खड़े कर दिए हैं. 

बीजेपी और शिंदे गुट की शिवसेना का फोकस खासतौर पर मुंबई पर रहा, जहां उनकी लड़ाई ठाकरे बंधुओं (उद्धव और राज ठाकरे) के गठबंधन से होगा. सूत्रों के मुताबिक, अजित पवार द्वारा मुंबई में अपनी पार्टी एनसीपी का नेतृत्व नवाब मलिक को सौंपे जाने को लेकर बीजेपी और शिवसेना असहज नजर आईं और यही कारण बताया जा रहा है कि बीएमसी चुनाव की रणनीतिक बैठकों से एनसीपी (अजित पवार गुट) को दूर रखा गया. मुंबई, ठाणे और एमएमआरडीए क्षेत्र में अजित पवार की पार्टी का भले ही कोई खास जनाधार नहीं है, लेकिन पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ जैसे इलाकों में एनसीपी की पकड़ काफी मजबूत है.

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NCP को उसी के घर में BJP-शिवसेना देंगे चुनौती?

इन्हीं क्षेत्रों में बीजेपी और शिंदे गुट मिलकर एनसीपी को चुनौती देने की तैयारी में हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर महायुति के भीतर बीजेपी और शिवसेना एकजुट होकर अजित पवार के खिलाफ उतरती हैं, तो विपक्ष और कमजोर होगा और चुनाव मुख्य रूप से सत्ता पक्ष के घटक दलों के बीच ही सीमित रह जाएगा. साथ ही, जरूरत पड़ने पर चुनाव बाद गठबंधन का विकल्प भी खुला रखेगा. पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ में बीजेपी का एनसीपी के खिलाफ लड़ना उसकी राजनीतिक मजबूरी भी है.  

दरअसल, इन इलाकों में ग्राउंड पर बीजेपी की लड़ाई वर्षों से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से रही है. बीजेपी अजित पवार की पार्टी के साथ गठबंधन कर भी ले, तो उसके  कार्यकर्ताओं के लिए इसे हजम करना मुश्किल होगा, क्योंकि एनसीपी कार्यकर्ताओं के साथ उनकी पुरानी प्रतिद्वंद्विता रही है. ऐसे में अजित पवार के साथ चुनावी तालमेल बीजेपी कार्यकर्ताओं के लिए असहज साबित हो सकता है. दूसरी ओर, अगर अजित पवार महायुति में रहते हैं, तो मुंबई और एमएमआरडीए रीजन में उनकी पार्टी के लिए बीजेपी और शिवसेना के जरिए सियासी जमीन तैयार करने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. यह ना एकनाथ शिंदे चाहते हैं और ना बीजेपी.

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अजित पवार की पार्टी की सियासी जमीन सिमटी?

देवेंद्र फडणवीस का 2022 में दिया बयान कि 'अजित पवार की एनसीपी के साथ प्रैक्टिकल एलायंस है और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ इमोशनल', राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के लिए हमेशा एक अलार्म की तरह रहेगा. कुल मिलाकर, बीएमसी सहित 29 नगर निगम चुनावों से पहले महायुति की मजबूती बढ़ने के साथ-साथ अजित पवार की एनसीपी के लिए सियासी जमीन सिमटती नजर आ रही है, और यही आने वाले चुनावों की सबसे बड़ी राजनीतिक कहानी बनती दिख रही है.

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