प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने निलंबित IAS अधिकारी और वसई विरार नगर निगम (VVCMC) के पूर्व प्रमुख अनिलकुमार पवार की याचिका का विरोध किया है. यह विरोध बॉम्बे हाई कोर्ट में शुक्रवार को दायर किया गया है. ED ने याचिका को 'लागत सहित खारिज' करने की मांग की है. पवार की याचिका 13 अगस्त 2025 को उनकी गिरफ्तारी को "अवैध" घोषित करने और उन्हें रिहा करने की मांग करती है.
अनिलकुमार पवार की ओर से पेश हुए वकीलों ने तर्क दिया कि उनकी गिरफ्तारी का आदेश, 14 अगस्त को ED रिमांड का आदेश, और फिर 20 अगस्त को न्यायिक हिरासत में भेजने के आदेश, सभी "गैर-मानसिक अनुप्रयोग" को दर्शाते हैं.
उनका कहना था कि ये आदेश "रूटीन तरीके" से पारित किए गए हैं. पवार का तर्क है कि जब अवैध निर्माण हुआ, तब वह VVCMC में नियुक्त भी नहीं थे, इसलिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
'भ्रष्ट गठजोड़ था सक्रिय...'
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह और ED के अन्य वकीलों ने बॉम्बे हाई कोर्ट में निचले अदालत के रुख पर बात की. उन्होंने कहा कि VVCMC अधिकारियों, जूनियर इंजीनियरों, निजी आर्किटेक्टों और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का एक भ्रष्ट गठजोड़ बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण के लिए रिश्वत इकट्ठा करने के लिए काम कर रहा था. ये सब तुलींज पुलिस स्टेशन में दर्ज एक मामले से शुरू हुआ, जिसकी जांच बाद में ED ने शुरू की.
डिजिटल उपकरणों से मिले रिश्वत के सबूत
ED ने दावा किया कि तलाशी के दौरान जब्त किए गए डिजिटल उपकरणों के फॉरेंसिक जांच से पता चला है कि आर्किटेक्टों, सीए, संपर्ककर्ताओं (Liasoners) और VVCMC अधिकारियों का एक बड़ा गठजोड़ आपस में मिलकर काम कर रहा था. ED का आरोप है कि इन उपकरणों में फाइलवार/प्रोजेक्टवार रिश्वत की राशि के बारे में बातचीत पाई गई है. ED का दावा है कि आपराधिक आय को रियल एस्टेट और महंगी संपत्तियों में लगाया गया था.
अवैध धन को संपत्ति में लगाने का तरीका
ED का दावा है कि पवार ने आपराधिक आय (PoC) का प्राथमिक उपयोग रियल एस्टेट निवेश में किया. उन्होंने कथित तौर पर ₹3.375 करोड़ एक दूर के रिश्तेदार अमोल पाटिल के पास पार्क किए. इस कैश का उपयोग पाटिल ने पवार की तरफ से अलीबाग में एक फार्महाउस और अन्य संपत्तियां खरीदने के लिए किया. इसके अलावा, ₹90 लाख के सोने और हीरे के आभूषण, ₹10.69 लाख की साड़ियां, और ₹9.9 लाख के मोती भी नकद में खरीदे गए थे.
परिवार के नाम पर बनाई गई फर्जी कंपनियां
ED ने दावा किया कि पवार द्वारा परिवार की संस्थाओं के जरिए धन शोधन (Laundering) का एक जटिल तरीका स्थापित किया गया था. PoC को पवार की पत्नी, बेटियों और दूर के रिश्तेदारों के नाम पर बनाई गई फर्जी कंपनियों और फर्मों के जटिल जाल के माध्यम से चैनल किया गया था. ये संस्थाएं कथित तौर पर निर्माण और रियल एस्टेट के कारोबार में थीं, जिसका इस्तेमाल काले धन को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में डालने के लिए किया गया था. विशेष PMLA कोर्ट ने पहले ही पवार के असहयोग और सबूतों को नष्ट करने पर ध्यान दिया था.