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धनगर समुदाय ने फिर उठाई ST स्टेटस की मांग, जालना में भूख हड़ताल पर बैठे एक्टिविस्ट

धनगर समुदाय मुख्य रूप से भेड़-बकरियों और मवेशियों के पालन से जुड़ा है. इस समुदाय के लोग परंपरागत रूप से खानाबदोश चरवाहे रहे हैं, जो मौसम और चरागाहों की उपलब्धता के आधार पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं. वर्तमान में VJNT के रूप में उन्हें कुछ आरक्षण और सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता है.

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धनगर (चरवाहा) समुदाय महाराष्ट्र में विमुक्त जाति और खानाबदोश जनजातियों (VJNT) की सूची में है. (File Photo: PTI)
धनगर (चरवाहा) समुदाय महाराष्ट्र में विमुक्त जाति और खानाबदोश जनजातियों (VJNT) की सूची में है. (File Photo: PTI)

महाराष्ट्र के जालना जिले में धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) कैटेगरी में शामिल करने की मांग को लेकर एक धनगर एक्टिविस्ट की अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शनिवार को चौथे दिन में प्रवेश कर गई. प्रदर्शनकारी दीपक बोरहड़े ने पत्रकारों से कहा कि जब तक राज्य सरकार उनकी सभी मांगों को स्वीकार नहीं करती, तब तक वह अनशन वापस नहीं लेंगे.

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, 'यदि सरकार 24 सितंबर तक कोई फैसला नहीं लेती, तो उसे इसके परिणाम भुगतने होंगे. यह हमारी अंतिम लड़ाई है.' बरसात के बावजूद बड़ी संख्या में धनगर समुदाय के लोग जालना कलेक्ट्रेट के सामने विरोध स्थल पर जमा हो रहे हैं. शुक्रवार रात को तेज हवाओं के कारण प्रदर्शन स्थल पर लगी छतरी गिर गई थी, लेकिन इसे तुरंत फिर से खड़ा कर दिया गया.

महाराष्ट्र की आबादी का 9% हैं धनगर

धनगर समुदाय, जो परंपरागत रूप से खानाबदोश चरवाहे और पशुपालक हैं, महाराष्ट्र की आबादी का लगभग 9 प्रतिशत हिस्सा हैं. वर्तमान में, उन्हें विमुक्त जाति और खानाबदोश जनजाति (Vimukta Jati and Nomadic Tribes) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. हालांकि, समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मांग कर रहा है.

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यह भी पढ़ें: महाराष्ट्र में आरक्षण के लिए धनगर जनजाति का आंदोलन, भेड़-बकरियों के साथ सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारी

धनगर समुदाय मुख्य रूप से भेड़-बकरियों और मवेशियों के पालन से जुड़ा है. इस समुदाय के लोग परंपरागत रूप से खानाबदोश चरवाहे रहे हैं, जो मौसम और चरागाहों की उपलब्धता के आधार पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं. वर्तमान में VJNT के रूप में उन्हें कुछ आरक्षण और सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता है. उनका तर्क है कि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति और जीवनशैली अनुसूचित जनजातियों के समान है, और एसटी दर्जा उन्हें शिक्षा, नौकरी और अन्य क्षेत्रों में बेहतर अवसर प्रदान करेगा.

धनगरों को एसटी दर्जा देने का विरोध

धनगरों को एसटी दर्जा देने की मांग पर कुछ अन्य समुदायों और संगठनों का विरोध है, जो मानते हैं कि इससे मौजूदा अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित लाभों पर असर पड़ सकता है. धनगर समुदाय की एसटी दर्जे की मांग को लेकर लंबे समय से चर्चा चल रही है, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों के बीच इस मुद्दे पर सहमति नहीं बन पाई है. केंद्र सरकार का कहना है कि यह मामला राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के दायरे में आता है, जबकि धनगर समुदाय का मानना है कि उनकी मांग को जानबूझकर टाला जा रहा है.

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