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दिल्ली MCD चुनाव: कम वोटिंग के क्या मायने, AAP या BJP... किसे हो सकता है नुकसान?

दिल्ली नगर निगम की 250 वार्डों में कुल 50.47 फीसदी मतदान हुआ, जो 2017 के मुकाबले लगभग 3 फीसदी कम है. जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं. इससे पहले दिल्ली के निकाय चुनाव में 2017 में 53.55 प्रतिशत, 2012 में 53.39 और 2007 में 43.24 प्रतिशत मतदान हुआ था.

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दिल्ली की जनता ने अपना फैसला ईवीएम में कैद कर दिया है
दिल्ली की जनता ने अपना फैसला ईवीएम में कैद कर दिया है

MCD के अखाड़े में चले सियासी दंगल पर दिल्ली की जनता ने रविवार को फैसला सुना दिया है. लोगों ने हर पार्टियों के वादों, गारंटी पर अपना फैसला ईवीएम में कैद कर दिया है. अब नतीजे 7 दिसंबर को आएंगे. 250 वार्डों में कुल 50.47 फीसदी मतदान हुआ, जो 2017 के मुकाबले लगभग 3% कम है. जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं. इससे पहले दिल्ली के निकाय चुनाव में 2017 में 53.55 प्रतिशत, 2012 में 53.39 और 2007 में 43.24 प्रतिशत मतदान हुआ था.

इस बार पॉश इलाकों में काफी कम वोटिंग होने की शिकायत आई है. आमतौर पर ऐसे इलाके बीजेपी माइंडेड माने जाते हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों में इन इलाकों के वोटरों ने आम आदमी पार्टी का भी अच्छा खासा समर्थन किया था. जिससे सवाल ये भी उठ रहा है कि जितना नुकसान बीजेपी को हो रहा है, उतना ही नुकसान आम आदमी पार्टी को भी हो रहा है? कम वोटिंग प्रतिशत से किसे फायदा होगा, वह इस बात पर निर्भर करेगा कि किसने अपने वोटरों को ज्यादा बेहतर तरीके से पोलिंग बूथ तक पहुंचाया. 

बीजेपी 15 सालों से दिल्ली नगर निगम की सत्ता पर काबिज है, इसलिए उसके कोर वोटरों में भी कामकाज को लेकर नाराजगी साफ नजर आई. कुल मिलाकर ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी को समर्थन देने वाले वोटर आम आदमी पार्टी को वोट करने में भी बहुत ज्यादा सहज नहीं थे और इसलिए उन्होंने वोट नहीं किया. दूसरी तरफ कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के 8 साल के शासन को लेकर के भी लोग बहुत उत्साहित नहीं थे, इसलिए बीजेपी के वोटरों को वह अपनी तरफ खींच नहीं सके. उधर, कमजोर पड़ी कांग्रेस की वजह से लोगों ने उसे भी सत्ता के विकल्प के तौर पर नहीं देखा. हालांकि कई सारी सीटों पर कांग्रेस ने अच्छी लड़ाई लड़ी है और वह दोनों पार्टियों का खेल कई सीटों पर बिगाड़ सकती है.

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टिकट बंटवारे से नाराज थे कार्यकर्ता

ऐसा नहीं है कि कम वोटिंग प्रतिशत का नुकसान आम आदमी पार्टी को नहीं उठाना पड़ सकता है. जानकार बताते हैं कि कई सारे इलाकों में आम आदमी पार्टी के वालंटियर और कार्यकर्ता इसलिए निष्क्रिय थे, क्योंकि टिकट का बंटवारा ठीक तरीके से नहीं किया गया था. ऐसी स्थिति में कई सारी सीटों पर तो बगावत हुई, लेकिन कई सारी सीटों पर नाराज कार्यकर्ता वोटरों के बीच चुनाव प्रचार में गए ही नहीं. यहां तक कि ऐसे कार्यकर्ताओं ने वोटिंग वाले दिन वोटरों को घर से बाहर निकालने में बहुत उत्साह भी नहीं दिखाया. कई सारी मुस्लिम बहुल सीटों पर चाहे वोटिंग आमतौर पर चुनावों में काफी ज्यादा होती है, वहां भी कई सारे धार्मिक मसलों को लेकर आम आदमी पार्टी से वोटर नाराज था और चूंकि कांग्रेस बहुत मजबूत नहीं थी, इसलिए उसने पोलिंग बूथों से दूरी बना ली.

वोटिंग लिस्ट से नाम रहे गायब

इसके अलावा कई सारी जगहों पर वोटरों के नाम वोटिंग लिस्ट से गायब रहे. कई सारे वार्ड में परिसीमन की वजह से वोटरों को दो या फिर 3 बूथों के चक्कर लगाने पड़े. तब जाकर उन्हें वोटिंग का मौका मिला. वहीं लगभग सभी पार्टियों के नेताओं ने अपने-अपने हजारों वोटरों के आखिरी समय में वोटर लिस्ट से नाम काटने की शिकायत दर्ज कराई. हालांकि इसकी वजह से किसी एक राजनीतिक पार्टी को नुकसान उठाना पड़ेगा, ऐसा नहीं लगता है. क्योंकि नाम काटने की शिकायत लगभग हर तबके से आई है.

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शादियों के सीजन से भी पड़ा प्रभाव?

बात सिर्फ राजनीतिक ही नहीं है. दिल्ली में इस वक्त शादियों का सीजन भी चल रहा है इस हफ्ते और आने वाले हफ्ते में जबरदस्त साया है. इसकी वजह से लोगों ने आम तौर पर वीकेंड वाले दिन को वोटिंग की बजाय शॉपिंग के लिए चुना. कई ऐसे लोग भी रहे, जो शादी-समारोह में शामिल होने के लिए या तो शॉपिंग पर चले गए या फिर दूसरे शहरों में थे.

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