दिल्ली में प्रदूषण का स्तर लगातार खतरनाक बना हुआ है. सरकारें बदलती रहीं लेकिन हवा अब भी जहरीली है. अब तो हालात ऐसे हैं कि सांस लेना भी मुश्किल हो गया है. एमसीडी से लेकर केंद्र तक तीनों जगह बीजेपी की सरकार होने के बावजूद दिल्लीवासी प्रदूषण की मार झेल रहे हैं.
दिल्ली में यह समस्या कोई नई नहीं है. पिछले कई सालों से शहर स्मॉग की चादर में लिपटा रहता है. कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अब भाजपा सभी सरकारों ने कोशिशें कीं, लेकिन हवा साफ नहीं हो सकी.
दिल्ली सरकार के कदम
सरकार ने कृत्रिम बारिश का ट्रायल किया, लेकिन इससे कोई बड़ा असर नहीं दिखा. दफ्तरों के समय में बदलाव किया गया है ताकि ट्रैफिक कम हो सके. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कारपूलिंग और वर्क फ्रॉम होम की अपील की है. ऊंची इमारतों पर वॉटर स्प्रिंकलर लगाए गए हैं और 367 मशीनें सड़कों पर तैनात हैं. औद्योगिक इकाइयों और कचरा जलाने वालों पर भी कार्रवाई हो रही है.
एमसीडी की कार्रवाइयां
एमसीडी ने बीते 10 महीनों में ₹12.1 करोड़ पर्यावरण मुआवजा वसूला है और 5,000 से अधिक नोटिस जारी किए हैं. 57,000 कर्मचारी सफाई में लगे हैं. 52 मशीनें रोज 3,400 किलोमीटर सड़कें साफ करती हैं. धूल कम करने के लिए वॉटर स्प्रिंकलर और एंटी-स्मॉग गन का उपयोग किया जा रहा है.
प्रदूषण से दिल्ली में मचा हाहाकार
फिर भी प्रदूषण कम नहीं हो रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था बेहतर नहीं होगी और औद्योगिक उत्सर्जन पर सख्त नियंत्रण नहीं रखा जाएगा, दिल्ली की हवा साफ नहीं हो सकती.