सबसे खूंखार शिकारी पक्षी माना जाने वाला बाल्ड ईगल इतना तेज होता है कि जमीन पर पड़ी छोटी से छोटी चीज को अगर टारगेट कर ले तो लेकर ही मानता है. इंसानों से 5 गुना से भी ज्यादा बढ़िया विजन वाला ये पक्षी 6 किलोग्राम तक वजन लेकर पूरी तेजी से उड़ान भर पाता है. ऐसे मजबूत पक्षी को अमेरिका ने अपना नेशनल बर्ड चुना. हालांकि कुछ सालों पहले ये बाज गायब होने लगा. यहां तक कि इसे यूनाइटेड स्टेट्स की एंडेंजर्ड स्पीशीज की श्रेणी में डालना पड़ा. फिर एकदम से इसका कमबैक हुआ. अब इस बाज की आबादी पहले से कई गुना ज्यादा हो चुकी है. लेकिन ये हुआ कैसे?
अमेरिकन ईगर फाउंडेशन के मुताबिक 1782 में जब इस बाज को राष्ट्रीय पक्षी चुना गया, तब अमेरिका में करीब 1 लाख पक्षी थे. लेकिन सदी खत्म होते-होते वे घटने लगे. लोग तब चिकन खाना पसंद करने लगे थे, और ईगल को उनका दुश्मन माना गया. फिर क्या था, इस पक्षी का शिकार होने लगा.
लोग इन्हें मारकर पंखों को हैट में सजा लेते. ये ट्रेंड इतना बढ़ा कि फैशन बन गया. बाजारों में बाल्ड ईगल के पंखों वाला हैट आने लगा. तब तक संख्या इतनी कम हो चुकी थी कि माइग्रेटरी बर्ड्स ट्रीटी एक्ट लाया गया, हालांकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ा.

इसी बीच मलेरिया के मच्छरों को खत्म करने के लिए डीडीटी केमिकल आया. ये एक तरह का कीटनाशक था, जो खेतों में छिड़का जाता था. फिर इसे नदियों, झीलों के आसपास भी डाला जाने लगा, जहां भी मच्छर पैदा होते हों. इससे मच्छर तो पता नहीं कितने खत्म हुए, लेकिन बाल्ड ईगल की बची-खुची आबादी भी तेजी से मरने लगी. जहरीले हो चुके पानी को पीने से बाजों के बच्चे मृत पैदा होने लगे.
हाल ये हुआ कि आखिर में केवल 417 बाजों के जोड़े बाकी रहे. फिर तो धड़ाधड़ कई एक्ट आए. बाजों को बचाने की बहुत सी कोशिशें होने लगीं.
यूएस फिश एंड वाइल्डफायर सर्विस ने एक खास तरीका निकाला, जिससे इस पक्षी को विलुप्त होने से बचाया जा सके. हैकिंग नाम की इस तकनीक में बाजों को वैज्ञानिकों की देखरेख में बड़ा करके उन्हें जंगलों में छोड़ा जाने लगा. आखिरकार उनकी संख्या बढ़ने लगी और ये पहला मौका है, जब विलुप्त होने की कगार पर पहुंची कोई स्पीशीज तेजी से बढ़ चुकी है.

विलुप्त होने पर वैज्ञानिकों की चिंता कोई दूर-दराज का डर नहीं है. बल्कि ये हमारे आसपास हो रहा है. यूएन कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी की रिसर्च कहती है कि रोज पूरी दुनिया से 150 से भी ज्यादा स्पीशीज खत्म हो रही हैं.
इनमें डोडो का जिक्र सबसे पहले आता है. स्वादिष्ट मांस के लालच में इतना शिकार हुआ कि 17वीं सदी में ये पूरी तरह से गायब हो गए. ब्रिटानिका वेबसाइट के मुताबिक आखिरी डोडो पक्षी साल 1681 में मॉरिशस में मार दिया गया, जिसके बाद सिर्फ म्यूजियम में इसके अवशेष दिखते हैं.
खत्म होने के बाद इस पक्षी की बात बार-बार होने लगी. ये एक तरह से उदाहरण बन गया कि कैसे इंसानी गतिविधियों के कारण मासूम जीव-जंतु मारे जाते हैं. अब इसी गिल्ट को दूर करने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग पर काम कर रही कंपनी इसे दोबारा जीवित करने पर जोर लगा रही है.

साल 2002 में ही डोडो से माइटोक्रॉन्ड्रियल DNA निकालकर सुरक्षित करने में सफलता मिल चुकी. ये वो DNA है, जो मां से बच्चे में ट्रांसफर होता है. इसे mtDNA कहा जा रहा है. जांच पर पाया गया कि इसका सबसे करीबी रिश्तेदार निकोबारी कबूतर है. अब इसी कबूतर की स्टडी की जाएगी ताकि डोडो को वापस लौटा लाने पर काम शुरू हो सके.
ये भी हो सकता है कि जीन तकनीक की मदद से कबूतर के जीन्स में बदलाव लाकर उन्हें ही डोडो पक्षी में बदल दिया जाए. ये भी हो सकता है कि वैज्ञानिक जीन एडिटिंग से नई तरह की कोशिकाएं बनाएं और उसे दूसरी चिड़िया के अंडों में डाल दें. जैसे कबूतर या मुर्गियों के विकसित हो रहे अंडों में. इससे शायद ऐसा हो सके कि नए जन्मा बच्चा आगे चलकर डोडो जैसे पक्षी को जन्म दे.
गायब हो चुकी स्पीशीज को दोबारा जिंदा करने की कोशिश को डी-एक्सटिंक्शन कहते हैं. नब्बे के दशक से इसकी बात हो रही है. माना जा रहा है कि जीन तकनीक के जरिए शायद ये हो सके. हालांकि एक्सपर्ट्स का एक तबका इसके विरोध में है. उनका कहना है कि गायब हो चुके जीवों के बाद से अब तक क्लाइमेट बहुत गर्म हो चुका. ऐसे में अगर ठंड में जीने वाली प्रजातियों को जबरन गर्मी के लिए अनुकूलित किया जाएगा तो कोई बड़ी आफत भी आ सकती है.