रणवीर सिंह की फिल्म 'धुरंधर' को रिलीज होने में अब 24 घंटे से भी कम समय बचा है. धांसू ट्रेलर और धमाकेदार गानों ने फिल्म के लिए माहौल बना दिया है. रणवीर के साथ अक्षय खन्ना, आर माधवन, संजय दत्त और अर्जुन रामपाल इसमें दमदार किरदार निभाते नजर आ रहे हैं. एक्शन की भरमार है और रणवीर सिंह एक धमाकेदार अवतार में नजर आ रहे हैं. मगर कई लोग अभी भी इस कन्फ्यूजन में हैं कि फिल्म देखी जाए या नहीं. और इसकी वजह है फिल्म में इंडिया-पाकिस्तान वाला एंगल.
भारत-पाक टेंशन पर बनी फिल्मों की बाढ़
पॉलिटिक्स और देश का जनरल मूड फिल्मों में जरूर उतरता है. पिछले एक दशक में दोनों देशों के रिश्तों में तनाव भी काफी बढ़ा है और इसका असर एंटरटेनमेंट कंटेंट पर भी दिखता है. पहले 'हिना', 'गदर', 'वीर जारा'और 'बजरंगी भाईजान' जैसी फिल्मों में भारत-पाक टेंशन एक अलग नजर से उतरती थी. फिल्मों में भले सरहद के दोनों पार का तैश और तेवर कैप्चर किया गया हो. मगर ये लाइन बनी रहती थी कि एलओसी के दोनों तरफ रहते तो इंसान ही हैं. इन्हें राजनीति ने एक दूसरे के लिए गुस्से और नफरत से भर रखा है.
मगर पिछले 10 सालों में ये टॉपिक सस्पेंस-थ्रिलर, जासूसी और एक्शन फिल्मों का हिस्सा ज्यादा रहा. भारत में पुलवामा, उरी, पठानकोट जैसे आतंकी हमलों से जनता में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा बढ़ा. यही गुस्सा फिल्मों में भी उतरने लगा. नतीजा ये हुआ कि 'उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक', 'भुज', 'शेरशाह', 'राजी' जैसी फिल्में बनीं. उंगलियों पर ही जोड़ा जाए तो 2004 से 2014 तक भारत-पाकिस्तान टेंशन वाला फॉर्मूला करीब 25 फिल्मों में इस्तेमाल हुआ था. लेकिन लॉकडाउन के बाद से तो इस लाइन पर बने कंटेंट की जैसे बाढ़ ही आ गई.
फिल्में तो फिल्में, 'द फैमिली मैन', 'स्पेशल ऑप्स', 'मुंबई डायरीज 26/11' और 'अवरोध जैसी' वेब सीरीज में भी इस आईडिया को खूब इस्तेमाल किया गया. लॉकडाउन के बाद से जोड़ें तो 15 से ज्यादा फिल्मों और वेब सीरीज में इसे आजमाया जा चुका है. ऐसे में 'धुरंधर' का ट्रेलर देखकर या प्लॉट सुनकर किसी को लग रहा हो कि 'फिर से वही इंडिया-पाकिस्तान!' तो समझा जा सकता है. लेकिन 'धुरंधर' में ये मुद्दा बहुत अलग तरीके से निकलकर पर्दे पर आ रहा है.
कैसे अलग है 'धुरंधर'?
कूटनीति की शब्दावली में भारत-पाकिस्तान मुद्दे को अब एक वॉर की तरह नहीं, बल्कि 'प्रॉक्सी-वॉर' की तरह देखा जाता है. यानी सीमा पर सीधा युद्ध नहीं चल रहा है, मगर घुसपैठ और आतंकवाद के कारण लगातार युद्ध जैसा माहौल जरूर बना हुआ है. भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल इस प्रॉक्सी-वॉर से डील करने के लिए 'डिफेंसिव ऑफेन्स' की थ्योरी दे चुके हैं. मतलब ये कि भारत में आतंकियों के घुसने और फिर उनसे डील करने की बजाय उन्हें सीधा उनके सोर्स पर ही खत्म कर दिया जाए.
पाकिस्तान पर भारत की सर्जिकल स्ट्राइक और एयर-स्ट्राइक जैसे ऑपरेशन इसी 'डिफेंसिव ऑफेन्स' का हिस्सा माने जाते हैं. मगर इस तरह की थ्योरीज अनाधिकारिक तौर पर चलती रही हैं कि भारत पहले से ही पाकिस्तान को जवाब देने के लिए पहले भी उसकी ही जमीन पर ऑपरेशन्स चलाता रहा है. ये मुद्दा इतना सेंसिटिव है कि इसपर ऑफिशियली बात हो ही नहीं सकती. मगर फिक्शनल किताबों और कॉन्सपिरेसी थ्योरीज में ये बातें खूब होती हैं.
इंडियन जनता ये सोचकर ही खुश होती है कि ऐसा कुछ हो रहा है. इस बारे में खुले में कोई जानकारी नहीं होती, इसलिए फिल्मों में भी इसे बहुत नहीं दिखाया गया है. 'एजेंट विनोद', 'फैंटम' और 'टाइगर 3' जैसी फिल्मों में भारत के स्पेशल एजेंट पाकिस्तान में जाकर ऑपरेशन करते नजर जरूर आए. लेकिन किसी फिल्म में ऐसा नहीं दिखाया गया कि भारत का कोई एजेंट पाकिस्तान में रहकर वहां के इंटरनल मामलों पर असर डाल रहा है. 'धुरंधर' पहली बार ये करने जा रही है.
'धुरंधर' में रणवीर का किरदार पाकिस्तान के कराची में नजर आ रहा है. आपको पहली बार पाकिस्तान का अंदरूनी गैंग वॉर पर्दे दिखेगा. पहली बार पाकिस्तान की सरकारों और उनके पाले हुए गैंगस्टर्स की कहानी फिल्म में नजर आ रही है. 'धुरंधर' पहली बार पाकिस्तान-बलोचिस्तान के पंगे और उसमें इंडिया के दखल को पर्दे पर दिखाने वाली है. यानी अभी तक बॉलीवुड फिल्मों में भारत-पाकिस्तान टेंशन का वो हिस्सा ज्यादा दिखता रहा जो खबरों में काफी हद तक नजर आता रहा है. वो हिस्सा, जो ऑफिशियल सरकारी वर्जन से काफी मैच करता है.
लेकिन पर्दे के पीछे जो कुछ होने की खुसफुसाहट अभी तक कॉन्सपिरेसी थ्योरीज में चलती रही है, 'धुरंधर' उसे तस्वीरों में उतारने जा रही है. फिल्म का हीरो रेगुलर बॉलीवुड स्पाई नहीं है, वो सही में जासूसी करने वाला है. पाकिस्तानी किरदारों में वही रेगुलर पाक आर्मी ऑफिसर और नेता नहीं हैं, बल्कि पाकिस्तानी गैंगस्टर हैं. अभी तक बॉलीवुड फिल्मों में जितना भारत-पाकिस्तान हुआ है, वो भारत के नजरिए, यहां के लेंस से हुआ है.
'धुरंधर' ने इस लेंस का फोकस पाकिस्तान की अंदरूनी सेटिंग की तरफ घुमाया है. और इसलिए इसे नॉर्मल बॉलीवुडिया 'भारत-पाक' पंगे वाली मसाला फिल्म नहीं कहा जा सकता. यही 'धुरंधर' की एक्साइटिंग बात है कि ये जाने-सुने प्लॉट को एक ने एंगल से लेकर आ रही है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि थिएटर्स में जनता से इसे कैसा रिस्पॉन्स मिलता है.