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धुरंधर का वो सीन, ज‍िस पर नहीं हो रही चर्चा, जब 'हमजा' से हुई रेप की कोशिश

धुरंधर की मैस्कुलिनिटी के बीच भूल गए हमजा यानी रणवीर का लगभग होने वाला बलात्कार सीन? जहां अपमान का घूंट पीकर हमजा अपने मकसद में और भी डूब जाता है. एक चर्चा ऐसे सीन पर जो आपको स्पाइलर लग सकती है.

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रणवीर सिंह का रेप अटेम्प्ट सीन (Photo: Screengrab)
रणवीर सिंह का रेप अटेम्प्ट सीन (Photo: Screengrab)

धुरंधर फिल्म की खूब चर्चा हो रही है. फिल्म में जबरदस्त एक्शन, पॉलिटिक्स, दबंग जासूसी, अक्षय खन्ना की एंट्री, सबकी तारीफ की जा रही है. लेकिन अजीब बात है कि फिल्म के सबसे डरावने और असरदार सीन के बारे में ही बात नहीं की जा रही है. ये वो सीन है जहां क्रूरता, मर्दानगी और कहानी के मकसद के बीच खड़ा है- हमजा अली मजहरी और उसके साथ लगभग होने वाला बलात्कार, जिसे रणवीर सिंह ने बड़ी ही हैरानी लेकिन नाजुकता के साथ निभाया है.

मर्दानगी भरी दुनिया में छुपी नजाकत

असहज और भीतर तक हिला देने वाला ये पल फिल्म में कहीं से भी फालतू नहीं लगता. बल्कि एक ऐसे प्रेशर पॉइंट की तरह उभरता है जो कहानी की मर्दानगी से लिपटी परतों में एक गहरी दरार डाल देता है. यही सीन साफ दिखा देता है कि निर्देशक आदित्य धर असल में किन भावनात्मक और नैतिक दांव पर खेल रहे हैं. और क्यों ये सीन एक गहरी बातचीत की मांग करता है, खासकर मुख्यधारा भारतीय सिनेमा में पुरुषों पर होने वाली यौन हिंसा जैसे कम छुए गए विषय पर.

कराची की खूनी गलियों, गैंगवार की सियासत और सत्ता के खूनी खेल के बीच फिल्म अचानक रुकती-सी महसूस होती है और एक नौजवान की उस दुनिया में एंट्री पर फोकस करती है जिसे वो मात देने आया है. हमजा, जो एक भारतीय जासूस बनकर बलोच लड़के का रूप लेता है, ल्यारी के खतरनाक अंडरवर्ल्ड को समझने की कोशिश में लगा है. एक ऐसी जगह जहां ताकत चलन है और अपमान हथियार. 

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फिल्म में ल्यारी सिर्फ एक इलाका नहीं, बल्कि ताकत की अग्नि-परीक्षा है. 'ल्यारी को चलाओ, तो कराची तुम्हारा, कराची को चलाओ, तो मुल्क तुम्हारा' जैसा कि जमील जमाली (राकेश बेदी) साफ कहता है. हमजा का मिशन है रहमान डकैत के गैंग में घुसपैठ, भरोसा जीतना और कहानी की दिशा बदलने लायक जगह पाना. लेकिन जैसे ही वो इस भूलभुलैया में उतरता है, भूलभुलैया भी उसे अपनी गिरफ्त में लेने लगती है.

रणवीर का वो सीन!

इसी खतरनाक दौर में फिल्म का सबसे सिहरन पैदा करने वाला मोड़ आता है, जिसे कई दर्शक स्पॉयलर मान सकते हैं. जैसे ही बाबू डकैत के लोग नए लड़के को पहचानते हैं, उनका जानलेवा रिवाज शुरू हो जाता है, ताने... धमकी में, धमकी... हिंसा में, और हिंसा... सबसे आदिम रूप लेकर, यौन हमले में बदल जाती है. उनमें से एक हमजा को जमीन पर दबोचकर बलात्कार की कोशिश करता है. न लालसा के लिए, न इच्छा के लिए, सिर्फ सत्ता दिखाने के लिए. 

पुलिस के अचानक पहुंचने से हमजा की जान तो बच जाती है, पर दहशत और मन पर पड़ा जख्म गहरा होता है. फिल्म भी इसे समझती है और आगे बढ़ते हुए इस पल की चुभन को कहानी की नसों में घोल देती है. लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती.

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आदित्य धर ने धुरंधर को बारीकी से एक मर्दों की दुनिया बनाकर पेश किया है, जहां सौदे, हिंसा और सत्ता का खेल सिर्फ पुरुषों के हाथ है. ऐसे वातावरण में ये हमला कहानी की व्याकरण को तोड़ देता है. एक ताकतवर, मिशन-सेंट्रिक हीरो अचानक पूरी तरह असहाय हो जाता है. कोई स्टाइलिश फाइट नहीं, कोई हीरोइज्म नहीं, सिर्फ शरीर की कच्ची, डरावनी कमजोरी.

मेनस्ट्रीम सिनेमा अपने हीरो को ऐसे नहीं दिखाता, खासकर रणवीर सिंह जैसे स्टार को, जिनकी बॉडी अक्सर हथियार बनकर सामने आती है. आदित्य यहां जानबूझकर ये जोखिम उठाते हैं, ये दिखाने के लिए कि दिखावटी मर्दानगी भी अपमान के आगे टूट सकती है. वो इस दर्द को रोमांटिक नहीं बनाते, न सेंसेशनल. ये सीन फिल्म के एक बड़े सवाल को तीखा कर देता है- एक आदमी कितना सह सकता है? और अपनी पहचान बचाने के लिए कितना दब सकता है?

हमजा की चुप्पी इस घटना के बाद रणवीर सिंह की सबसे परिपक्व अदाकारी में से एक है. न टूटना, न चिल्लाना, बस एक नई बनती भावनात्मक दीवार. वो न इसका जिक्र करता है, न मिशन को इससे थमने देता है. यही पल उसके मकसद को सबसे ज्यादा बदलता है.

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