रणवीर सिंह की फिल्म 'धुरंधर' ने पहले ही दिन से थिएटर्स में जैसी भीड़ जुटाई है, वो मेकर्स के लिए तगड़ी कमाई का सौदा बनी है. हफ्ते के बीच में इस फिल्म के शोज ऐसे भर रहे हैं जैसे तमाम बॉलीवुड फिल्मों के लिए वीकेंड में नहीं भरे. 'धुरंधर' सिर्फ हिंदी में ही रिलीज हुई है. इसके लिए मेकर्स ने पैन-इंडिया का पॉपुलर फार्मूला नहीं इस्तेमाल किया. पर जनता में जिस तरह का क्रेज इसके लिए है, उससे एक सहज सवाल भी उठता है— क्या अगर 'धुरंधर' को कई भाषाओं में, पैन इंडिया रिलीज किया जाता तो फिल्म और भी बड़ा कमाल करती?
1. पैन इंडिया रिलीज था फिल्म का कंटेंट
'धुरंधर' एक दमदार स्पाई-थ्रिलर है. फिल्म में एक्शन थोड़ा है, लेकिन बेहतरीन है. पर कहानी की जान इसका ड्रामा है. डायरेक्टर आदित्य धर ने फिल्म को सेटअप करने में साढ़े तीन घंटे का वक्त लिया है. एडिटिंग, गानों, स्कोर और एक्टर्स के शानदार परफॉरमेंस के लिए 'धुरंधर' की जमकर तारीफ हो रही है.
आदित्य धर की फिल्मों में अपना एक स्टाइल होता है, जो 'धुरंधर' में भी नजर आता है. स्टाइलिश फिल्ममेकिंग को साउथ के दर्शक खूब पसंद करते हैं. स्टाइल भरा वायलेंस और ताबड़तोड़ एक्शन वैसे भी साउथ में खूब पॉपुलर रहा है. 'धुरंधर' का कंटेंट साउथ ऑडियंस के टेस्ट को खूब मैच करता है.
2. धीरे-धीरे साउथ में पॉपुलर हुए हैं रणवीर
रणवीर सिंह की 'सिंबा' और 'गली बॉय' जैसी फिल्मों को साउथ में सॉलिड रिस्पॉन्स मिला था. वहां ये फिल्में बड़ी रिलीज नहीं थीं, ना ही इन्हें लोकल लैंग्वेज में रिलीज किया गया था. मगर हिंदी में ही सबटाइटल के साथ रिलीज होने पर भी साउथ के अर्बन थिएटर्स में इन फिल्मों की परफॉरमेंस मजबूत थी. बेंगलुरू, हैदराबाद, कोच्चि और चेन्नई जैसे साउथ के बड़े शहरों में हिंदी फिल्मों को भी अच्छी ऑडियंस मिलती है. जो अभी भी यहां 'धुरंधर' को मिल रही है. अगर ये फिल्म वहां डबिंग में रिलीज होती तो इसकी रीच भी बड़ी होती.
3. सामने नहीं था कॉम्पिटीशन
5 दिसंबर को 'धुरंधर' रिलीज हुई. इस दिन तमिल, मलयालम और कन्नड़ इंडस्ट्री से कोई बड़ी फिल्म रिलीज नहीं हो रही थी. तेलुगू में नंदमुरी बाल कृष्ण उर्फ बालैय्या की 'अखंडा 2' रिलीज होनी थी जो बड़ी फिल्म थी. हालांकि, रिलीज से एक दिन पहले ये भी टल गई. यानी 'धुरंधर' अगर पैन-इंडिया रिलीज होती तो कम से कम एक हफ्ते तक इसकी टक्कर में कोई बड़ी फिल्म नहीं होती. बल्कि अभी भी मौका है कि 'धुरंधर' के मेकर्स कम से कम तमिल और तेलुगू डबिंग में फिल्म को रिलीज करने की कोशिश करें.
4. एक्स्ट्रा खर्च की चिंता
हो सकता है कि 'धुरंधर' को डबिंग के साथ पैन इंडिया रिलीज करना मेकर्स को एक फाइनेंशियल रिस्क लगा हो. क्योंकि डबिंग, रीजनल प्रमोशन, पब्लिसिटी और प्रिन्ट कॉस्ट पर लगभग 20 करोड़ तक का एक्स्ट्रा खर्च बढ़ जाता. मगर फिल्म के रीजनल सैटेलाइट राइट्स और और ओटीटी राइट्स से इतनी रिकवरी तो मेकर्स निकाल ही सकते थे.
ऐसे में बॉक्स ऑफिस से 'धुरंधर' के रीजनल वर्जन के कलेक्शन बोनस की तरह ही होते. लेकिन अगर फिल्म चल जाती, जिसका चांस कंटेंट के वजह से बहुत मजबूत था... तो 'धुरंधर' से दो बड़े फायदे होते. एक तो आदित्य धर का ब्रांड और रणवीर का चेहरा वहां मजबूत पहचान बनाता. दूसरे, कुछ ही महीने बाद आने वाले 'धुरंधर' के सीक्वल को बड़ा फायदा होता.
5. कल्चर का पंगा
'धुरंधर' की कहानी का सबसे दिलचस्प पॉइंट यही है कि मेकर्स ने फिल्म में पाकिस्तान के कराची को रीक्रिएट किया है. जनता को फिल्म से जोड़ने वाली चीजों में सबसे बड़ा रोल 'धुरंधर' की वर्ल्ड बिल्डिंग का है. और इस पाकिस्तानी वर्ल्ड को पर्दे पर लाने में वहां की बोलचाल वाली आम भाषा, पंजाबी के छौंके वाली गाढ़ी उर्दू ने बहुत काम किया है.
तमिल या तेलुगू में कराची या पाकिस्तान रीक्रिएट करने में, फिल्म का संसार ऑथेंटिक ना लगने का एक रिस्क तो था. पर दर्शकों में ये पचा लेने की ताकत तो होती ही है. जब 'साहो' की मुंबई-दुबई बेस्ड स्टोरी और तमाम साउथ फिल्मों की दिल्ली में सेट कहानियां भी दर्शक पचा चुके हैं, तो 'धुरंधर' का कन्विक्शन तो उन्हें बांधने में कामयाब हो ही जाता. आखिर लोगों ने 'जवान', 'पठान' और 'एनिमल' जैसी फिल्में तो तमिल-तेलुगू में देखी ही हैं.
'धुरंधर' का ये कन्विक्शन ही उसकी सबसे बड़ी पैन-इंडिया अपील है. फिल्म बिजनेस में ये अनकहा नियम है कि कहानी की सबसे बड़ी जज जनता है. अगर जनता राजी हो गई, तो फिल्म धमाका कर देगी. और 'धुरंधर' उस तरह की फिल्म है कि ये दर्शकों को, किसी भी भाषा में, साढ़े तीन घंटों तक सीटों पर बिठाए रख सकती है. अगर ये हिंदी के अलावा दूसरी भाषाओं में भी, पैन-इंडिया रिलीज होती, तो आज इसके भौकाल और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन का साइज और भी तगड़ा होता.