आजम खान और समाजवादी पार्टी तो जैसे एक-दूसरे के लिए पूरक ही बन गए हैं. एक ओर आजम खान पार्टी में अपनी अहमियत बरकरार रखने में कामयाब रहे हैं, तो दूसरी ओर पार्टी भी उनकी उपस्थिति का भरपूर लाभ उठाने से नहीं चूक रही है.
समाजवादी पार्टी के संस्थापकों में से एक आज़म ख़ान की पहचान पार्टी के मुस्लिम चेहरे के रूप में है. उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री और रामपुर से सात बार विधान सभा के सदस्य रह चुके 64 साल के आज़म ख़ान रामपुर से आते हैं. आजम खान का प्रभाव राज्य के पश्चिमी इलाक़े में ज़्यादा है.
2009 में हुए लोकसभा चुनाव के समय उनके और उस समय समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रहे अमर सिंह से मतभेदों के कारण उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. दोनों के बीच मतभेद का असली कारण था रामपुर संसदीय सीट का चुनाव. अमर सिंह तत्कालीन सांसद और फ़िल्म अभिनेत्री जया प्रदा को समाजवादी पार्टी का दोबारा उम्मीदवार बनाना चाह रहे थे लेकिन आज़म ख़ान उनका विरोध कर रहे थे.
पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह ने अमर सिंह की बात मानते हुए जया प्रदा को ही रामपुर संसदीय क्षेत्र से पार्टी का उम्मीदवार बनाया. इसके विरोध में आज़म ख़ान खुलेआम जया प्रदा के ख़िलाफ़ प्रचार कर रहे थे लेकिन आख़िरकार जया प्रदा ही वहां से जीतीं. पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया गया. लेकिन मुलायम सिंह और अमर सिंह के बीच उभरे मतभेद के कारण अमर सिंह को पार्टी छोड़ना पड़ा और उसके बाद आज़म ख़ान दोबारा समाजावादी पार्टी मे शामिल हुए.
आज़म ख़ान एक बार फिर रामपुर से चुनाव लड़ रहें हैं, लेकिन उनकी जीत ज़्यादा कठिन नहीं लगती, क्योंकि इस सीट से वो सात बार जीत चुके हैं. विरोधी पार्टियों का असल मक़सद ये है कि उन्हें अपने क्षेत्र में ज़्यादा से ज़्यादा समय देने के लिए मजबूर किया जाए ताकि वो मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कम से कम चुनाव प्रचार कर सकें.