देश में लोकसभा चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद बीजेपी के खिलाफ चुनाव आयोग में आचार संहिता का उल्लंघन की शिकायत की गई है. मामला 'विकसित भारत संपर्क' के बैनर तले केंद्र सरकार से जुड़ी उपलब्धियां गिनाने का है. कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने भी इस तरह के वॉट्सऐप मैसेज पर आपत्ति जताई है और इसे आदर्श आचार संहिता का 'घोर उल्लंघन' बताया है. चंडीगढ़ के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने इस शिकायत को ECI के पास ट्रांसफर कर दिया है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि इलेक्शन कमीशन ने चुनाव मैदान में उतरी पार्टियों और उम्मीदवारों को लेकर क्या नियम बनाए हैं? उल्लंघन करने पर क्या एक्शन लिया जा सकता है?
दरअसल, देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज गया है. 45 दिन में सात चरणों में 543 सीटों पर वोटिंग होगी. चुनाव की घोषणा के साथ आचार संहिता भी लागू हो गई है. चुनाव आयोग ने नियमों के संबंध में भी एक गाइडलाइन जारी कर दी है. इन नियमों के उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने कुछ नियम बनाए हैं. इन नियमों को ही आचार संहिता कहा जाता है.
1. क्या सरकार के पास फैसले लेने के अधिकार होते हैं?
आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद सारे अधिकार चुनाव आयोग और उससे जुड़े अधिकारियों के पास होते हैं. सरकार का कोई भी मंत्री, विधायक यहां तक कि मुख्यमंत्री भी चुनाव प्रक्रिया में शामिल किसी भी अधिकारी से नहीं मिल सकता. राज्य और केंद्र के अधिकारी-कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक चुनाव आयोग के कर्मचारी की तरह काम करते हैं. सरकार किसी भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी का ट्रांसफर या पोस्टिंग नहीं कर सकती. जरूरी होने पर चुनाव आयोग की अनुमति लेनी होगी. सरकारी विमान, गाड़ियों का इस्तेमाल किसी पार्टी या कैंडिडेट को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं किया जा सकता.
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2. क्या चुनाव प्रचार नहीं कर सकते?
मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा या किसी भी धार्मिक स्थल का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता है. प्रचार के लिए राजनीतिक पार्टियां कितने भी वाहन इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन पहले रिटर्निंग ऑफिसर की अनुमति लेनी होगी. किसी भी पार्टी या प्रत्याशी को रैली या जुलूस निकालने या चुनावी सभा करने से पहले पुलिस-प्रशासन की अनुमति लेनी होगी. रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक डीजे का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
3. क्या चुनावी सभा-रैली के लिए अनुमति जरूरी होती है?
राजनीतिक दलों को रैलियों और जुलूसों के लिए आयोग से पूर्व अनुमति लेना होता है. अगर रैली या जुलूस निकालना है तो सुबह 6 बजे से पहले और रात 10 बजे के बाद अनुमति नहीं दी जाएगी. राजनीतिक दलों को प्रचार वाहनों और सहयोगियों, जुलूसों और सार्वजनिक बैठकों समेत विभिन्न कैंपेन एक्टिविटी के लिए रिटर्निंग अधिकारियों से अनुमति लेनी होगी. उम्मीदवारों को नामांकन पत्र के साथ जमा किए गए शपथ पत्र में अपनी ई-मेल आईडी और सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी भी देनी होगी.

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4. क्या सरकारी योजनाएं लागू की जा सकती हैं?
आचार संहिता के दौरान सरकारी पैसे का इस्तेमाल विज्ञापन या जनसंपर्क के लिए नहीं हो सकता. अगर पहले से ही ऐसे विज्ञापन चल रहे हों तो उन्हें हटा लिया जाता है. किसी भी तरह की नई योजना, निर्माण कार्य, उद्घाटन या शिलान्यास नहीं हो सकते. अगर पहले ही कोई काम शुरू हो गया है तो वो जारी रह सकता है. अगर किसी तरह की कोई प्राकृतिक आपदा या महामारी आई हो तो ऐसे वक्त में सरकार कोई उपाय करना चाहती है तो पहले चुनाव आयोग की अनुमति लेनी होगी. अगर सरकार कुछ भी करना चाहती है तो उसे पहले आयोग को बताना होगा और उसकी मंजूरी लेनी होगी.
5. क्या एक्शन लिया जा सकता है?
अगर कोई भी उम्मीदवार आचार संहिता का उल्लंघन करता है तो उसके प्रचार करने और लड़ने पर रोक लगाई जा सकती है. जरूरी होने पर उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक मुकदमा भी दर्ज किया जा सकता है. इतना ही नहीं, जेल जाने का प्रावधान भी है.
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6. क्या चुनाव खर्चे की कोई सीमा निर्धारित है?
चुनाव आयोग ने इलेक्शन कैंपेन में होने वाले खर्चे को लेकर बाकायदा रेट लिस्ट फिक्स किया है. इसी रेट लिस्ट पर उम्मीदवारों को चुनाव में होने वाले खर्च का विवरण आयोग को देना होगा. 194 चीजों और सेवाओं की कीमत निर्धारित की गई है. लोकसभा चुनावों में प्रचार खर्च की सीमा 95 लाख रुपए तय की गई है. विधानसभा चुनावों के लिए 40 लाख रुपए तय है. उम्मीदवारों को 10,000 रुपए से ज्यादा का लेन-देन बैंकों के जरिए करने का भी निर्देश रहता है. राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टियों को स्टार प्रचारकों की सूची जमा करनी होती है. उनके दौरे और सभाओं के खर्च को प्रचार अभियान के बजट में शामिल किया जाता है.
7. क्या खर्चे जोड़ने की कोई रेट लिस्ट होती है?
प्रत्येक उम्मीदवार को हर चीज की डायरी मेंटेन करनी होगी. खर्चों की रेट लिस्ट में लाउडस्पीकर से लेकर जेनरेटर, लाइट, कुर्सी, टेबल, पंखा, एसी से लेकर मजदूरों और प्रचार वाहन का किराया भी शामिल है. चाय, कॉफी, समोसा, रसगुल्ला, आइसक्रीम समेत प्रत्येक सामान के रेट तय किए गए हैं. ये खर्चा उम्मीदवार के खाते में जोड़ा जाता है. प्रचार सामग्री और सभा में काम आने वाले सामान की भी कीमत निर्धारित की गई है. आयोग की रेट लिस्ट के अनुसार ही उम्मीदवार के खर्चे का आकलन किया जाता है. जिला निर्वाचन अधिकारी की तरफ से प्रत्येक उम्मीदवार के खर्चे की मॉनिटरिंग की व्यवस्था की जाती है.
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8. सामान के क्या किराया रेट होते हैं?
एक प्लास्टिक की कुर्सी 5 रुपए, पाइप की कुर्सी 3 रुपए, वीआईपी कुर्सी 105 रुपए, लकड़ी की टेबल 53 रुपए, ट्यूबलाइट 10 रुपए, हैलोजन 500 वॉट 42 रुपए, 1000 वॉट के 74 रुपए, वीआईपी सोफा सेट का खर्चा 630 रुपए प्रत्येक दिन के हिसाब से जोड़ा जाता है. आरओ के पानी की केन 20 लीटर की 20 रुपए, कोल्ड ड्रिंक और आइसक्रीम प्रिंट रेट पर खर्चे में जोड़े जाएंगे. गन्ने का रस प्रति छोटा गिलास 10 रुपए, बर्फ सिल्ली 2 रुपए के हिसाब से जोड़ी जाएगी. खाने के 71 रुपए प्रति प्लेट कीमत निर्धारित की गई है. प्लास्टिक झंडा 2 रुपए, कपड़े के झंडे 11 रुपए, स्टीकर छोटा 5 रुपए, पोस्ट 11 रुपए, कट आउट वुडन, कपड़ा और प्लास्टिक के 53 रुपए प्रति फिट, होर्डिंग 53 रुपए, पंपलेट 525 रुपए प्रति हजार के हिसाब से खर्चा प्रत्याशी के खाते में जोड़ा जाएगा. ये रेट लिस्ट हाल में राजस्थान विधानसभा चुनाव में सामने आई थी. चुनाव आयोग की रेट लिस्ट में चाय 5 रुपए, कॉफी 13 रुपए, समोसा 12 रुपए, रसगुल्ला 210 प्रति किलो के हिसाब से खरीद सकता है.

9. क्या खर्चे का ब्यौरा देना होता है?
चुनाव आयोग को प्रचार में खर्च की गई रकम का ब्यौरा देना अनिवार्य होता है. 2018 के विधानसभा चुनाव में जिन उम्मीदवारों ने चुनावी खर्चे का ब्यौरा नहीं दिया, उनके खिलाफ चुनाव आयोग की तरफ से बड़ा एक्शन लिया गया है. हाल ही में चुनाव आयोग ने राजस्थान के 46 नेताओं को अयोग्य घोषित किया है और उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई है.
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10. कैश पकड़ा गया तो हिसाब देना होगा?
जी हां, अगर आप कैश लेकर चल रहे हैं तो इसका पूरा रिकॉर्ड-हिसाब साथ रखना जरूरी होगा. ये कैश कहां से आया और कहां लेकर जा रहे हैं. किस काम के लिए कैश ले जाना पड़ रहा है. जांच टीम को इन सवालों के जवाब देने होंगे. अगर जांच टीम संतुष्ट नहीं होती है तो कैश को सीज किया जा सकता है. दरअसल, चुनाव में धनबल का प्रयोग रोकने के लिए चुनाव आयोग कैश लाने-ले जाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करता है. पार्टियों के स्टार प्रचारक और पार्टी पदाधिकारी अपने साथ एक लाख रुपये तक रख सकते हैं. प्रत्याशी भी इसी तरह अपने साथ कैश ले जा सकते हैं लेकिन उससे पूछताछ की जा सकती है. 10 लाख रुपये तक के कैश पर इनकम टैक्स पूछताछ करेगा. बैंकों से भी कहा गया है कि यदि कोई 10 लाख रुपये या इससे ज्यादा की रकम निकालता या जमा करता है तो इसकी सूचना जिला निर्वाचन अधिकारी को दी जाए.
11 विधानसभा चुनावों में 3500 करोड़ की नकदी पकड़ी
इलेक्शन कमीशन के मुताबिक, हाल ही में हुए 11 राज्यों के विधानसभा चुनावों में करीब 3500 करोड़ रुपये की नकदी पकड़ी गई है. इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. कैश पकड़े जाने पर कितने लोगों को जेल भेजा गया, इस सवाल पर CEC राजीव कुमार कहते हैं कि कई राज्यों में धनबल का जोर ज्यादा देखने को मिलता है. हम इस पर गंभीर हैं. अगर आप अन्य दक्षिण राज्यों में हाल के समय में हुए चुनावों पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि इस समस्या पर हमने काफी हद तक लगाम लगाई है. आप चिंता ना करें.
19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान
देश में 19 अप्रैल से लेकर 1 जून तक सात चरणों में आम चुनाव करवाए जाएंगे. 4 जून को रिजल्ट आएंगे. ये पूरी प्रक्रिया 6 जून से पहले पूरी कर ली जाएगी. इसके अलावा चार राज्यों ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. ओडिशा में चार चरणों में और अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और आंध्र प्रदेश में एक चरण में चुनाव कराए जाएंगे. अलग-अलग राज्यों की 26 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव भी होंगे.