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फ्रीबीज वर्सेस डेवलपमेंट के बीच दिल्ली की राजनीति की मुश्किलें, जानें क्या कहते हैं जानकार

दिल्ली में मतदान से पहले फ्रीबीज और डेवलपमेंट पॉलिटिक्स को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि अमीर-गरीब के बीच की खाई इकोनॉमिक पॉलिसी की विफलताओं को दिखाता है, जिसको भरने के लिए सरकार को प्रत्यक्ष फाइनेंशियल बेनिफिट की पेशकश करनी पड़ती है. उनके मुताबिक, किसान निधि सम्मान और मुफ्त बिजली या पानी जैसी योजनाओं में काफी अंतर है.

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Former Delhi CM and AAP. (PTI Photo)
Former Delhi CM and AAP. (PTI Photo)

दिल्ली विधानसभा चुनाव के मतदान की तारीख जैसे-जैसे पास आ रही है. उसके साथ ही पूरे प्रदेश में फ्री बीज की और डेवलपमेंट के बैलेंस का मुद्दा गरमाता जा रहा है. सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) ने मुफ्त सुविधाओं और फ्री बीज योजनाओं की झड़ी लगा दी है जो उसकी राजनीतिक रणनीति का प्रमुख हिस्सा है, जिससे इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि क्या शॉर्ट-टर्म वेलफेयर वेनिफ्टिस लॉन्ग टर्म बुनियादी ढांचे के विकास से ज्यादा महत्वपूर्ण होने चाहिए. 

दिल्ली की फ्रीबीज और डेवलपमेंट पॉलिटिक्स पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक एनके सिंह कहते हैं कि अमीर-गरीब के बीच की खाई इकोनॉमिक पॉलिसी की विफलताओं को दिखाता है, जिसको  भरने के लिए सरकार को प्रत्यक्ष फाइनेंशियल लाभ की पेशकश करनी पड़ती है. चाहे ये दिल्ली में हो या कहीं और सभी पार्टियों ऐसी योजनाएं पेश करती हैं. उनके मुताबिक, किसान निधि सम्मान और मुफ्त बिजली या पानी जैसी योजनाओं में काफी अंतर है.

सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि वेलफेयर बेनिफिट स्कीम लागू करने वाले राज्य अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बनाए रखने में भी कामयाब रहे हैं. मुफ्त सुविधाओं के साथ-साथ कैपेक्स भी बढ़ रहा है. दिल्ली में केंद्र की तुलना में पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई है. इससे पता चलता है कि वेलफेयर बेनिफिट देने के बावजूद अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा रहा है.

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'महिला मतदाताओं की संख्या में वृद्धि'

उन्होंने कहा कि वेलफेयर बेनिफिट स्कीम देने वाले राज्यों में महिला मतदाताओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है. आप को दिल्ली में ऐसी योजनाओं से लगातार फायदा हुआ है, खासकर मुफ्त बिजली, पानी और मेडिकल केयर के जरिए आप को बहुत फायदा हुआ है. और ये आप आदमी पार्टी के लिए आगामी चुनावों में काफी महत्वपूर्ण होने वाली हैं. 

फ्रीबीच की लागत, जोखिम में बुनियादी ढांचे?

वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक गौतम लाहिड़ी ने राज्य के राजस्व पर फ्री बीज के प्रभाव पर चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल वित्तीय निहितार्थ पर विचार किए बिना फ्रीबीच की घोषणा करके मतदाताओं को लुभाने के लिए होड़ करने में लगे हुए हैं. इन योजनाओं से अक्सर बुनियादी ढ़ाचे के विकास में बाधा आती है. 
उन्होंने चुनाव आयोग से समान अवसर बनाने और लापरवाह वादों पर अंकुश लगाने के लिए स्टेक होल्डर्स के बीच बातचीत शुरू करने का आह्वान किया.

लाहिड़ी ने जवाबदेही की आवश्यकता पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को दोहराया और चेतावनी दी कि बिना सोचे-समझे फ्री बीज राज्य के वित्तीय स्वास्थ्य को कमजोर कर सकती है.

वेलफेयर वर्सेस फ्रीबीज-बैलेंस की जरूरत

वरिष्ठ पत्रकार अजय शुक्ला ने कल्याण योजनाओं और बीच योजनाओं के बीच में अंतर करने के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान भारत की कल्पना एक समाजवादी राज्य के रूप में करता है, जहां वंचितों के लिए कल्याणकारी योजनाएं जरूरी हैं. हालाँकि, कुछ भी पूरी तरह से फ्री नहीं होना चाहिए.

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उन्होंने तर्क दिया कि कल्याणकारी योजनाओं को निर्भरता को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए. लाभार्थियों से न्यूनतम कार्य या योगदान की आवश्यकता होनी चाहिए. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि मुफ्तखोरी अक्सर लोगों को आलसी और आदत बना देती है.

दिल्ली के मतदाताओं की पसंद

दिल्ली में फ्री बीज वर्सेस विकास पर बहस भारत भर के राज्यों के सामने आने वाली व्यापक राजनीतिक और आर्थिक दुविधाओं को सामने रखती है. जबकि कल्याणकारी योजनाओं पर आप के फोकस को पिछले चुनावों में समर्थन मिला है, आलोचकों का तर्क है कि ऐसे लाभों पर अत्यधिक निर्भरता लॉन्ग टर्म विकास को खतरे में डाल सकती है.

जैसे ही पार्टियां अपने घोषणापत्र को अंतिम रूप देंगी, दिल्ली में मतदाताओं की पसंद इस बात पर निर्भर करेगी कि वे कल्याणकारी लाभों के माध्यम से तत्काल राहत को प्राथमिकता देते हैं या बुनियादी ढांचे में उच्च निवेश के माध्यम से  तत्काल राहत को प्राथमिकता देते हैं.

इस बहस के नतीजे न केवल दिल्ली के भविष्य को आकार दे सकते हैं, बल्कि फ्री बीज और विकास के जटिल सवाल अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल भी कायम कर सकते हैं.

बता दें कि दिल्ली में 1998 से सत्ता से बाहर बीजेपी वापसी के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रही है. हालांकि, बीजेपी ने को दिल्ली की सत्ता पर काबिज अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी से कड़ी चुनौती मिल रही है, जिसने 2015 और 2020 के चुनावों में बीजेपी को करारी शिकस्त दी थी. इन दोनों चुनावों में बीजेपी तीन और आठ सीट पर सिमट कर रही गई थी, जबकि कांग्रेस दोनों चुनावों अपना खाता भी नहीं खोल पाई.

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