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यूपी में NCERT की नई किताबों पर इतनी कंट्रोवर्सी क्यों? पूरा विवाद समझ‍िए

बीते तीन दिनों से हर तरफ उत्तर प्रदेश को लेकर एक ही चर्चा हो रही है. ये चर्चा है कि यूपी के छात्र अब मुगलों का इत‍िहास नहीं पढ़ पाएंगे. वजह ये बताई जा रही है कि योगी सरकार ने नए शैक्षणिक सत्र (2023-24) में एनसीईआरटी की 12वीं कक्षा की नई किताबें लागू करने का फैसला लिया है. इसमें गांधी-गोडसे, गोधरा, निराला की चर्चा भी हो रही, पूरा विवाद यहां समझ‍िए.

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Illustration by: Vani Gupta/India Today
Illustration by: Vani Gupta/India Today

एनसीईआरटी के रैशनेलाइजेशन के बाद छपी नई किताबें यूपी सरकार ने पढ़ाने के आदेश दिए हैं. इसके बाद पूरे देश में एनसीईआरटी की ओर से हुए नये बदलावों पर बहस छिड़ गई है. आइए जानते हैं क्या है ये पूरा विवाद और क्यों किताबों से कुछ टॉपिक्स हटाने को लेकर इतनी बहस हो रही है. किताबों से गांधी, गोडसे, मुगलों का इतिहास, निराला, फैज की कविताएं आदि हटने के पीछे इत‍िहासकार क्या वजहें मान रहे हैं.

यह पूरा विवाद क्या है

बीते तीन दिनों से हर तरफ उत्तर प्रदेश को लेकर एक ही चर्चा हो रही है. ये चर्चा है कि यूपी के छात्र अब मुगलों का इत‍िहास नहीं पढ़ पाएंगे. वजह ये बताई जा रही है कि योगी सरकार ने नए शैक्षणिक सत्र (2023-24) में एनसीईआरटी की 12वीं कक्षा की नई किताबें लागू करने का फैसला लिया है. मीडिया में ये बात आते ही हड़कंप मच गया. कई इत‍िहासकारों ने यह कहकर आलोचना की कि अगर हिस्ट्री से मुगल निकाल देंगे तो पढ़ाएंगे क्या? विवाद होने पर सरकार ने स्पष्ट किया कि हम अपनी तरफ से कोई बदलाव नहीं कर रहे. हम तो वही पढ़ाने को कह रहे हैं जो जो नये बदलाव के साथ एनसीईआरटी ने किताबों में दिया है.

क्यों यूपी से शुरू हुई ये बहस

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अब एनसीईआरटी पर बात आने पर सामने आया कि बीते साल जून 2022 में ही एनसीईआरटी ने मुगल इतिहास और शीत युद्ध जैसे टॉपिक वाले अध्याय हटा दिए थे. सीबीएसई बोर्ड ने इस बदलाव को अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया था. अब लेकिन यूपी बोर्ड में किताबें पहले ही छप चुकी थीं. इस वजह से पिछले साल इन्हें नहीं निकाला जा सका था. यूपी सरकार ने बस थोड़ा लेट 2023 में एनसीईआरटी के बदलाव वाली किताबें पढ़ाने को मंजूरी दी है.

एनसीईआरटी है क्या, क्यों सवालों के घेरे में

अब यूपी के बाद आलोचकों के निशाने पर एनसीईआरटी आ गया है. इस विवाद को गहराई से समझने के लिए पहले समझ‍िए कि एनसीईआरटी क्या है. दरअसल NCERT यानी National Council for Education Research and Training एक ऐसा निकाय है ज‍िसे आजादी के बाद साल 1961 में केंद्र सरकार द्वारा गठित किया गया. तमाम जिम्मेदारियों के साथ इसका महत्वपूर्ण काम रिसर्च के आधार पर समय समय पर श‍िक्षा में बदलाव करना है. काउंसिल समसामयिक खोजों और समाज में बदलाव के साथ तालमेल बिठाने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाई जाने वाली किताबों को नियमित रूप से अपडेट करता है. इसी प्रक्र‍िया में काउंसिल को कभी सराहना तो कभी आलोचना का श‍िकार होना पड़ता है.

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यह पहली बार नहीं है...  

ताजा मामले में काउंसिल ने सिलेबस अपडेट करने के लिए युक्त‍िकरण (Rationalization) किया. एक तरफ कोरोना के दौर में सिलेबस घटाया गया, दूसरी तरफ न्यू एजुकेशन पॉलिसी के तहत कुछ बदलाव करने थे. इस बारी भी विज्ञान, हिंदी, गण‍ित समेत अन्य विषयों में कुछ टॉपिक जोड़े गए तो कई टॉपिक हटा दिए गए. वैसे यह पहली बार नहीं है कि एनसीईआरटी की किताबों को अपडेट किया गया है, लेकिन इस बार भारत के मध्यकालीन और समकालीन सामाजिक-राजनीतिक इतिहास सहित सामाजिक विज्ञान के महत्वपूर्ण हिस्सों को हटाने पर आलोचना का श‍िकार होना पड़ रहा है. इससे पहले भी एनसीईआरटी पर तत्कालीन सरकारों के एजेंडे के अनुसार कुछ बदलाव का आरोप लगता रहा है.

इस लिंक से हर विषय के वो सभी टॉपिक देखें जो एनसीईआरटी ने हटाए हैं

किन तथ्यों को हटाने पर हो रहा ज्यादा बवाल

मुगल दरबार का इत‍िहास हटाया गया. इसमें छात्रों को मुगलों का इतिहास पढ़ाया जा रहा था. कक्षा 12 की क़िताब से 'किंग्स एंड क्रोनिकल्स: द मुग़ल कोर्ट' चैप्टर को हटाया गया है.

गुजरात दंगों के बारे में एक पूरा पैराग्राफ हटाया गया है जिसमें कहा गया था कि कैसे रिहायशी इलाके धर्म, जाति और नस्ल के आधार पर बंटे होते हैं और कैसे साल 2002 के गुजरात दंगों के बाद वहां ये और बढ़ा. इस एक पैराग्राफ के साथ अब कक्षा 6 से लेकर 12 तक के सोशल स्टडीज के पाठ्यक्रम से गुजरात दंगों से जुड़ी जानकारी हटा दी गई है.

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गांधी से जुड़े तथ्य- जैसे गांधी उन लोगों द्वारा विशेष रूप से नापसंद थे जो चाहते थे कि हिंदू बदला लें या जो चाहते थे कि भारत हिंदुओं के लिए एक देश बने, ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान मुसलमानों के लिए था.

हिंदू-मुस्लिम एकता के गांधी के दृढ़ प्रयास ने हिंदू चरमपंथियों को इतना उकसाया कि उन्होंने गांधीजी की हत्या के कई प्रयास किए.

NCERT Deleted topics
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गांधीजी की मृत्यु का देश में साम्प्रदायिक स्थिति पर बड़ा प्रभाव पड़ा.भारत सरकार ने साम्प्रदायिक नफरत फैलाने वाले संगठनों पर नकेल कसी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया.

ये सारी बातें 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताब में पढ़ाई जा रही थी. लेकिन इस साल से नहीं पढ़ाई जाएंगी. साथ ही 12वीं की ही इतिहास की किताब में भी कुछ बदलाव किए गए हैं. इस किताब में महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे के बारे में कुछ जानकारियां हटाई गई हैं. इस किताब से हटाया गया कि गोडसे, पुणे के ब्राह्मण थे. वो एक चरमपंथी हिंदू अखबार का संपादक था, जिसने गांधीजी को 'मुसलमानों का तुष्टिकरण करने वाला' बताया था.

इसके अलावा कक्षा 7 की किताब से अफगानिस्तान के महमूद गजनी के आक्रमण और सोमनाथ मंदिर पर हमले की बात को बदला गया है. उनके नाम के सामने से 'सुल्तान' शब्द हटाया गया है और जहां लिखा था कि 'उन्होंने लगभग हर साल भारत पर हमला किया' उसे बदल कर उन्होंने (1000 से 1025 ईस्वी सन) के बीच भारत पर धार्मिक इरादों से 17 बार हमले किए.

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कक्षा 12 की किताब से आपातकाल और उसके असर के बारे में दिए हिस्से को कम कर पांच पन्नों तक कर दिया गया है, कक्षा 6 की किताब में वर्ण वाले सेक्शन को आधा कर दिया गया है और कक्षा 6 से लेकर 12 की किताब में सामाजिक आंदोलन के तीन चैप्टर हटाए गए हैं.

पाठ्यक्रम से फिराक गोरखपुरी गजल और ‘अंतरा भाग दो’ से सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की ‘गीत गाने दो मुझे’ कविता हटी है. इसके अलावा विष्णु खरे की एक काम और सत्य को भी हटाया गया.

NCERT Deleted topics
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इस विरोध के पीछे के तर्क क्या हैं

इस विरोध के पीछे इत‍िहासकार अलग-अलग तर्क दे रहे हैं. प्रख्यात इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब ने NCERT किताबों से मुगलों के चैप्टर हटाए जाने पर कहा कि ऐसा करने से 200 सालों के इतिहास की जानकारी शून्य हो जाएगी. उन्‍होंने कहा कि अगर मुगलों का इतिहास नहीं होगा तो ताज महल भी नहीं होगा. वहीं जेएनयू के इतिहास के प्रोफेसर प्रो हीरामन ने इसे सही ठहराया और कहा कि इतिहास में मुगल महिमामंडन के लायक नहीं थे. इसके अलावा यूपी सरकार में विपक्षी दल के नेता अख‍िलेश यादव ने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताएं हटने पर विरोध जताया. वहीं कांग्रेस ने इस पर सरकार की इत‍िहास बदलने की साजिश कहा.

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एनसीईआरटी का इस पर क्या पक्ष है

इस पूरे विवाद पर एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी ने इसे झूठ करार दिया. उन्होने कहा कि मुगल इतिहास को नहीं हटाया गया है. कोविड लहर के कारण बच्चों पर बहुत ज्यादा दबाव था, ऐसे में रैशनेलाइजेशन किया गया. इसके बाद एक्सपर्ट कमेटी ने कक्षा छह से 12 की किताबों का फिर से अध्ययन किया और सुझाव दिया कि अगर एक चैप्टर हटा दिया जाए तो बच्चों के ज्ञान पर भी असर नहीं पड़ेगा और गैरज़रूरी दबाव हट जाएगा. जो लोग डिबेट कर रहे हैं, इसकी जरूरत नहीं है. और जो नहीं जानते हैं वो किताब देख लें. उनके दिखेगा कि अभी भी हम 12वीं कक्षा में एक बढ़िया चैप्टर मुगल काल का पढ़ाया जा रहा है. हम मुगलों का वो चैप्टर पढ़ा रहे हैं जिससे उनकी नीतियों और कार्यों के बारे में पता चलेगा.


 

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