सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि कोरोना संक्रमण के काल में वो 'एक देश, एक राशन कार्ड' की अवधारणा पर काम करे, ताकि गरीबों और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को कम कीमतों पर अनाज मिल सके. केन्द्र सरकार की यह योजना इस साल जून में शुरू होने वाली है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लोगों को खाने-पीने की चीजें मिलने में आसानी हो इसलिए इस स्कीम को तुरंत लागू किया जाए.
वन नेशन, वन राशन कार्ड की व्यावहारिकता पर विचार करे केंद्र
जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने सोमवार को पारित अपने आदेश में कहा, 'हम केन्द्र सरकार को इस समय यह योजना लागू करने की व्यावहारिकता पर विचार करने और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय लेने का निर्देश देते हैं."
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इसी के साथ अदालत ने वकील रीपक कंसल की याचिका का निस्तारण कर दिया. इस याचिका में मांग की गई थी कि लॉकडाउन में फंसे मजदूरों, दूसरे राज्यों के नागरिकों के लाभ के लिए इस स्कीम को लागू किया जाए.एक राष्ट्र एक राशन कार्ड योजना अपनाने की मांग
याचिकाकर्ता रीपक कंसल ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों, लाभार्थियों, राज्यों के निवासियों और पर्यटकों के हितों की रक्षा करने और उन्हें कम कीमतों पर अनाज और सरकारी योजना का लाभ दिलाने के लिए अस्थाई रूप से एक राष्ट्र एक राशन कार्ड योजना अपनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था.
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पहचान पत्र के अभाव में भूखे न रहें लोग
रीपक कंसल ने अदालत से ये भी मांग की थी कि लॉकडाउन की वजह से जगह-जगह फंसे मजदूर जो किराए के मकानों में हैं या फिर ट्रांजिट कैंप में हैं वे स्थानीय पहचान पत्र या फिर किसी भी पहचान पत्र के अभाव में भूखे न रहें. कंसल ने दावा किया था कि राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश रियायती कीमत पर अनाज देने, दवा और दूसरी सुविधा मुहैया कराने में अपने नागरिकों और मतदाताओं को प्राथमिकता दे रहे हैं. राशन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और दूसरे पहचान पत्र के अभाव में मजदूर काफी परेशान हो रहे हैं.