भारतीय खरीदारों के लिए घर खरीदना एक महत्वपूर्ण फैसला होता है, जो उनकी बचत, भविष्य की सुरक्षा और परिवार की विरासत से जुड़ा होता है. अक्सर लोग अपनी जीवन भर की सबसे बड़ी राशि घर खरीदने में निवेश करते हैं. ऐसे में अगर विज्ञापन में धोखाधड़ी हो, प्रोजेक्ट रजिस्टर्ड न हो, समझौता अस्पष्ट हो या ईएमआई की गणना गलत हो, तो इसका प्रभाव न केवल आर्थिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी पड़ता है.
रियल एस्टेट सेक्टर में घर खरीदारों के साथ होने वाले धोखाधड़ी और धोखे से बचाने के लिए रेरा (RERA) एक महत्वपूर्ण हथियार बनकर उभरा है. यह कानून सुनिश्चित करता है कि डेवलपर्स और एजेंट अपनी जिम्मेदारियों को निभाएं और ग्राहकों के साथ पारदर्शिता रखें.
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प्रॉपर्टी एक्सपर्ट प्रदीप मिश्रा का मानना है कि रेरा कानून ने रियल एस्टेट सेक्टर को व्यवस्थित कर दिया है और अब घर खरीदना पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षित हो गया है.' रेरा कानून का मुख्य उद्देश्य पारदर्शिता, जवाबदेही और उपभोक्ता की सुरक्षा है. नियम स्पष्ट कहते हैं कि किसी भी प्रोजेक्ट का विज्ञापन, मार्केटिंग या बुकिंग तब तक नहीं हो सकती जब तक वह रेरा में पंजीकृत न हो. यह व्यवस्था खरीदार को झूठे वादों, अनिश्चित समय-सीमा और छिपे हुए जोखिम से बचाती है. एजेंट का रजिस्टर्ड होना भी अनिवार्य है, ताकि खरीदार के साथ कोई धोखा होने पर जिम्मेदारी तय की जा सके.'
प्रदीप मिश्रा कहते हैं- 'आजकल रियल एस्टेट की सेल डिजिटल विज्ञापनों, सोशल मीडिया और शानदार ऑफरों के जरिए हो रही है. लेकिन एक समझदार खरीदार को इन चमकदार विज्ञापनों पर आंखें बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए.' जब भी आप कोई रियल एस्टेट का विज्ञापन देखें, तो सबसे पहले ये तीन बातें ज़रूर जांचें.
रेरा पंजीकरण नंबर: प्रोजेक्ट का रेरा (RERA) नंबर विज्ञापन में साफ़-साफ़ लिखा होना चाहिए. अगर ऐसा नहीं है, तो समझ लीजिए कि कुछ गड़बड़ है.
प्रोजेक्ट का सही नाम: विज्ञापन में प्रोजेक्ट का आधिकारिक नाम होना चाहिए, न कि कोई मिलता-जुलता नाम.
प्रमोटर और एजेंट का नाम: डेवलपर और एजेंट का नाम भी साफ तौर पर दिया गया हो, ताकि बाद में कोई दिक्कत होने पर उनकी जवाबदेही तय हो सके.
अगर ये जानकारी डिजिटल विज्ञापन में नहीं है या लैंडिंग पेज पर भी नहीं मिल रही है, तो समझ जाइए कि कहीं न कहीं धोखा हो सकता है. नियम सीधा है बिना रेरा आईडी और आधिकारिक दस्तावेज़ देखे, किसी भी ऑफर के लिए एडवांस पैसा न दें.
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पर्सनल फाइनेंस का सबसे बड़ा नियम यही है कि अपनी आमदनी के हिसाब से ही खर्च करें. जब बात घर की ईएमआई की आती है, तो यह आपकी मासिक कमाई के 30 से 35 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए. अगर आपकी आय फिक्स नहीं है, तो इसे 25 से 30 प्रतिशत तक ही रखें. इसके साथ ही, कम से कम 6 से 9 महीने के खर्चों और तीन ईएमआई के बराबर की रकम का एक इमरजेंसी फंड हमेशा तैयार रखें. होम लोन लेते समय, अलग-अलग बैंकों की ब्याज दरों, प्रोसेसिंग फीस और समय से पहले लोन चुकाने के नियमों की तुलना ज़रूर करें, क्योंकि एक छोटा सा अंतर भी आपको लंबे समय में लाखों की बचत करा सकता है.
प्रदीप मिश्रा कहते हैं- 'खुद रहने के लिए घर ले रहे हैं, तो रेडी-टू-मूव या अच्छी स्थिति वाली रीसेल प्रॉपर्टी में पजेशन का जोखिम कम होता है और किराया और ईएमआई का दोहरा बोझ नहीं झेलना पड़ता. अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट में शुरुआती लागत कम दिखाई देती है, लेकिन यदि प्रोजेक्ट अटक गया तो किराया और प्री-ईएमआई दोनों चुकाने पड़ सकते हैं. इसलिए ऐसे प्रोजेक्ट में तभी कदम बढ़ाएं, जब डेवलपर का ट्रैक रिकॉर्ड मजबूत हो और फंडिंग की स्थिति स्पष्ट हो.'
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