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RJD के गढ़ों में सेंध, रिजर्व सीटों पर कब्जा और मुस्लिम–यादव बेल्ट टूटी? क्या कहता है NDA की जीत का डेटा

बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने पारंपरिक गढ़ों के साथ-साथ यादव-मुस्लिम बहुल इलाकों में भी भारी सीटें जीतीं. कुल 63 सीटें बेहद कम वोट अंतर से तय हुईं, जिससे चुनाव में कड़ी टक्कर दिखी. एनडीए ने 38 जिलों में से 14 जिलों में सभी सीटें जीतीं और अनुसूचित जाति आरक्षित सीटों पर भी दबदबा बनाया. वहीं, महागठबंधन का प्रदर्शन कमजोर रहा और वह किसी भी सीट पर 50% वोट शेयर नहीं पा सका.

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बिहार में बीजेपी ने यादव-मुस्लिम के पारंपरिक गढ़ों में लगाई सेंध. (photo: ITG)
बिहार में बीजेपी ने यादव-मुस्लिम के पारंपरिक गढ़ों में लगाई सेंध. (photo: ITG)

बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की जीत एक राजनीतिक सुनामी की तरह दिखती है. हालांकि, कई सीटों पर मुकाबला बेहद कांटे का रहा. इस चुनाव में बीजेपी ने अपने गढ़ में मजबूती के साथ-साथ यादव-मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी भारी सीटें हासिल कीं.

इंडिया टुडे डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) द्वारा किए गए निर्वाचन क्षेत्र स्तर के आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि NDA की ये जीत कई जगहों पर करीबी मुकाबलों, क्षेत्रीय झुकाव और स्थानीय स्विंग के कारण हुई. एनडीए ने न केवल अपने पारंपरिक गढ़ों पर कब्जा जमाया, बल्कि यादव और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी भारी सीटें हासिल कीं.

63 सीटों पर कांटे की टक्कर

विश्लेषण में सामने आया है कि इस चुनाव की सबसे खास बात ये है कि इसमें कांटे की टक्कर वाले उम्मीदवारों की संख्या बहुत ज़्यादा है. कुल 63 सीटें, यानी विधानसभा की एक-चौथाई से भी ज़्यादा... 10,000 से भी कम वोटों के अंतर से तय हुईं, जिससे पता चलता है कि कुछ इलाकों में मुकाबला कितना कड़ा था. भोजपुर क्षेत्र के तीन निर्वाचन क्षेत्र- संदेश, अगियांव और रामगढ़ में जीत का अंतर 100 वोटों से भी कम था, जिससे ये हाल के वर्षों में सबसे कांटे के मुकाबलों में से एक बन गए.

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कई सीटों पर बदलते रहे समीकरण

कई सीटों पर मतगणना के दौरान लीड बार-बार बदली रही. यहां तक कि राघोपुर में, जहां आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की बढ़त भी कई बार आगे-पीछे हुई, लेकिन अंततः उनकी बढ़त स्थिर हो गई और उन्होंने जीत दर्ज कर ली.

दूसरी ओर 60 सीटें ऐसी थीं, जहां विजेताओं ने 30,000 से ज्यादा वोटों के अंतर से जबरदस्त जीत दर्ज की. इनमें से 59 सीटें एनडीए की झोली में गईं. इनमें कोसी-मिथिलांचल और पाटलिपुत्र जैसे इलाके शामिल हैं. यही वजह है कि चुनावी जीत का नक्शा पूरी तरह से केसरिया नजर आ रहा है.

कोसी और मिथिलांचल में NDA का दबदबा

अगर हाशिये से हटकर बड़े भूगोल पर नज़र डालें तो क्षेत्रवार विभाजन साफ़ दिखाई देता है. क्षेत्रवार जीत का विश्लेषण एनडीए की मजबूत उपस्थिति को दिखाता है, खासकर पूर्वी बिहार में एनडीए का दबदबा स्पष्ट है. जिला स्तर पर विश्लेषण से पता चलता है कि एनडीए ने बिहार के 38 जिलों में से 14 जिलों में सभी सीटों पर जीत हासिल की. जिसने पूरे क्षेत्र को अपने रंग में रंग दिया है.

यादव-मुस्लिम गढ़ों और SC सीटों में भी सेंध

यहां तक कि मुस्लिम-यादव बहुल क्षेत्रों में भी एनडीए ने आरजेडी के परंपरागत गढ़ों में सेंध लगाई और लगभग 80 प्रतिशत सीटें जीत लीं. इतना ही नहीं, एनडीए ने अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 90 प्रतिशत सीटें भी जीतीं, जिससे उसके प्रभुत्व या लोगों में स्वीकार्यता स्पष्ट दिखती है.

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NDA के वोट शेयर में उछाल

वोट शेयर का पैटर्न इस विभाजन को और भी स्पष्ट करता है. एनडीए ने 68 निर्वाचन क्षेत्रों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट-शेयर हासिल किया, जिससे कई इलाकों और सामाजिक समूहों में उसके व्यापक समर्थन का संकेत मिलता है.

इसके विपरीत महागठबंधन का समर्थन कुछ इलाकों पर केंद्रित रहा और कहीं-कहीं कम था. महागठबंधन किसी भी सीट पर 50% वोट शेयर पार नहीं कर पाया. हालांकि, कई सीटों पर कांटे के मुकाबले और स्थानीय लड़ाई हुई, लेकिन कुल मिलाकर जनादेश स्पष्ट और एकतरफा एनडीए के पक्ष में रहा. हर पैमाने पर एनडीए-महागठबंधन से आगे रहा और पूरे राज्य में उसके पक्ष में स्पष्ट लहर दिखी.

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