
सर्दियों में उत्तर भारत के एक्सप्रेसवे और हाईवे पर कोहरा सिर्फ मौसम नहीं, बल्कि एक गंभीर खतरा बन जाता है. विजिबिलिटी शून्य के करीब, तेज रफ्तार और पल भर की चूक. नतीजा कई गाड़ियों का एक-दूसरे से टकराव. सर्दियों के शुरूआत के साथ ही उत्तर भारत के कई शहरों को जोड़ने वाले एक्सप्रेसवे और हाईवे का मंजर खूनी हो जाता है.
हाल ही में उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा और हरियाणा के रेवाड़ी में कोहरे के चलते बड़ा हादसा हो गया. जहां नोएडा में 6 वाहन आपस में टकरा गए और रेवाड़ी में 4 बसों के बीच टक्कर हो गई. इस हादसे में कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए. इसके अलावा ग्रेटर नोएडा ईस्टर्न पेरीफेरल हाईवे पर कोहरे की वजह से करीब 12 वाहन एक के बाद एक आपस में टकरा गए.
घने कोहरे के कारण हुए इन भीषण सड़क हादसों ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि, कोहरे में हाईवे ड्राइविंग को लेकर हम सच में कितने तैयार हैं. दिनों-दिन सर्दी के साथ ही सड़क पर कोहरा और धुंध भी बढ़ता जा रहा है. ऐसे में ड्राइविंग से पहले कुछ जरूरी बातों को समझना बेहद ही जरूरी है, जिससे आप सुरक्षित यात्रा कर सके.

घने कोहरे में विजिबिलिटी कई बार 10 से 20 मीटर तक सिमट जाती है. आमतौर पर इंसानी आंख 100 मीटर से ज्यादा दूरी पर खतरे को पहचानने की आदी होती है, लेकिन कोहरे में यह क्षमता अचानक खत्म हो जाती है. यही कारण है कि तेज रफ्तार पर ब्रेक लगाने की दूरी और दिखाई देने की दूरी में बड़ा अंतर आ जाता है, जो हादसों की सबसे बड़ी वजह बनता है.
कोहरे में हाईवे पर तय स्पीड लिमिट भी असुरक्षित हो सकती है. विशेषज्ञों के मुताबिक, जब दृश्यता 50 मीटर से कम हो, तो 40-50 किमी प्रति घंटे से ज्यादा की रफ्तार खतरनाक मानी जाती है. आगे चल रहे वाहन से सामान्य दिनों की तुलना में कम से कम दोगुनी दूरी बनाए रखना जरूरी है, ताकि अचानक ब्रेक लगने पर प्रतिक्रिया का समय मिल सके.
कोहरे में सबसे बड़ा भ्रम हेडलाइट को लेकर होता है. तकनीकी रूप से पीली रोशनी यानी येलो लाइट की वेवलेंथ लंबी होती है, जो फॉग पार्टिकल्स से कम बिखरती है. इसी वजह से घने कोहरे में येलो हेडलाइट या फॉग लैंप ज्यादा प्रभावी माने जाते हैं. तेज सफेद या हाई बीम लाइट कोहरे से टकराकर रिफ्लेक्ट होती है और ड्राइवर को सामने की बजाय खुद की रोशनी ही दिखाई देने लगती है. इसलिए लो बीम और फॉग लैंप का इस्तेमाल सबसे सुरक्षित विकल्प है.
घने कोहरे में हाई बीम का उपयोग स्थिति को और खराब कर देता है. वहीं कई ड्राइवर हैजर्ड लाइट ऑन कर देते हैं, जिससे पीछे से आने वाले वाहन को यह समझ नहीं आता कि गाड़ी चल रही है या खड़ी है. हैजर्ड लाइट की जगह टेल लैंप और फॉग लैंप का सही इस्तेमाल ज्यादा सुरक्षित माना जाता है.

कोहरे में आगे देखने की बजाय सड़क की लेन मार्किंग और कैट्स आई रिफ्लेक्टर पर ध्यान देना ज्यादा कारगर होता है. ये रिफ्लेक्टिव मार्किंग कम दृश्यता में भी दिशा का संकेत देती हैं और वाहन को लेन से भटकने से बचाती हैं, खासकर एक्सप्रेसवे पर.
लंबे सफर से पहले विंडशील्ड, वाइपर और डीफॉगर की जांच जरूरी है. अंदर की नमी के कारण शीशे पर जमने वाली धुंध दृश्यता को और कम कर देती है. थकान या नींद की हालत में कोहरे में ड्राइविंग जोखिम को कई गुना बढ़ा देती है, इसलिए ऐसे हालात में सफर टालना ही समझदारी है.
एनसीआर एक्सप्रेसवे पर हुआ हालिया हादसा याद दिलाता है कि आधुनिक सड़कें और तेज गाड़ियां तब तक सुरक्षित नहीं, जब तक ड्राइवर समझदारी से फैसले न लें. घने कोहरे में सही रोशनी, नियंत्रित रफ्तार और तकनीकी समझ ही वह शील्ड है, जो एक रेगुलर ड्राइविंग को सुरक्षित घर वापसी में बदल सकता है. इसलिए समझदारी से सुरक्षित ड्राइविंग करें.