Who is Moqtada al-Sadr: इराक में हालात बिगड़ने लगे हैं. सोमवार को ताकतवर शिया मुस्लिम धर्मगुरु मुक्तदा अल-सदर ने राजनीति छोड़ने का ऐलान कर दिया. इसके बाद लोग सड़कों पर उतर आए. राजधानी बगदाद में धर्मगुरु समर्थक और ईरान समर्थित लोगों में झड़पें हुईं. इन हिंसक झड़पों में अब तक कइयों की मौत होने की बात कही जा रही है.
इराक में 10 महीनों से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है. वहां न तो कोई स्थायी प्रधानमंत्री है और न ही कोई मंत्रिमंडल. ऐसे में सोमवार को जैसे ही धर्मगुरु मुक्तदा अल-सदर ने राजनीति छोड़ने का ऐलान किया, तो हालात और बिगड़ गए.
न्यूज एजेंसी के मुताबिक, भीड़ ने राष्ट्रपति भवन और सरकारी इमारतों पर धावा बोल दिया है. बगदाद में ग्रीन जोन के पास धर्मगुरु समर्थक और ईरान समर्थकों ने एक-दूसरे पर पत्थरबाजी की. भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े. ग्रीन जोन वही है जहां सभी देशों के दूतावास और बड़े अधिकारी रहते हैं. अमेरिका ने हेलिकॉप्टर के जरिए अपने अधिकारियों को वहां से निकाला.
जिसके लिए जंग, वो कौन है?
इराक में जारी इस जंग के पीछे मुक्तदा अल-सदर का राजनीति छोड़ने का ऐलान है. इससे उनके समर्थक नाराज हो गए हैं और सड़कों पर उतर आए हैं.
मुक्तदा अल-सदर प्रोमिनेंट सदर परिवार से ताल्लुक रखते हैं. वो मूल रूप से लेबनान के जबाल अमेल के रहने वाले हैं. उनके पिता मोहम्मद सादेक अल-सदर सद्दाम हुसैन के धुर-विरोधियों में से एक रहे हैं.
मुक्तदा अल-सदर का जन्म 4 अगस्त 1974 को इराक में हुआ था. उनके पिता अयातुल्लाह मोहम्मद मोहम्मद सादेक अल-सदर शिया मौलवी थे. अल-सदर इराक के फिलोसोफर अयातुल्लाह मोहम्मद बकीर अल-सदर के दामाद हैं. उनके पिता की हत्या 1999 में सद्दाम हुसैन ने करवा दी थी. उनके दामाद बकीर अल-सदर को 1980 में इराकी सरकार ने फांसी पर चढ़ा दिया था.
कैसे इतने पावरफुल बने अल-सदर?
अल-सदर बेहद ताकतवर परिवार से आते हैं. उनके करीबियों का कहना है कि अल-सदर जल्दी ही नाराज हो जाते हैं. वो अपने पिता और ससुर से काफी प्रभावित हैं. 2003 में सद्दाम हुसैन की सरकार गिरने के बाद अल-सदर चर्चा में आए थे. उस समय उन्होंने कहा था कि वो इराक को 'इस्लामी लोकतंत्र' बनाना चाहते हैं.
अल-सदर ईरान के धुर-विरोधी हैं और अक्सर कहते हैं कि इराक की राजनीति में ईरान की दखलंदाजी नहीं होनी चाहिए. उनके समर्थकों में गरीब शिया मुसलमानों की संख्या कहीं ज्यादा है.
2003 में जब सद्दाम हुसैन का पतन हुआ, तो उन्होंने अपने हजारों समर्थकों को एकजुट किया और एक राजनीतिक आंदोलन शुरू किया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने अपनी सेना भी बनाई थी, जिसका नाम 'जैश अल-महदी' था. उनकी सेना अमेरिका और दूसरी विदेशी सेनाओं से संघर्ष भी करती रही है.
इराक में सालों तक गृहयुद्ध चलता रहा. इस दौरान कई अर्धसैनिक बलों को मान्यता दी गई. बाद में जब आतंकी संगठन ISIL की पूरी तरह हार हो गई, तो उन्होंने सभी मान्यता प्राप्त अर्धसैनिक बलों को भंग करने और सभी विदेशी फोर्सेस (ईरान भी) को इराक छोड़कर चले जाने को कहा.
अल-सदर पर कई लोगों की हत्या करवाने का आरोप भी लगा है. 2003 में ग्रैंड अयातुल्लाह मोहम्मद सईद अल-हकीम के घर पर बमबारी हुई थी, जिसका आरोप अल-सदर पर लगा. उसी साल अप्रैल में अयातुल्लाह अब्दुल-माजिद अल-खोई की एक मस्जिद में हत्या करवाने का आरोप भी अल-सदर पर लगा.
अब इराक में किस बात को लेकर बवाल?
अक्टूबर 2021 में इराक में आम चुनाव हुए थे. इस चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. अल-सदर के गुट ने 73 सीटें जीती थीं. लेकिन गठबंधन सरकार भी नहीं बन सकी. 10 महीनों से वहां राजनीतिक संकट बना हुआ है. जब तक नई सरकार बनेगी, तब तक राष्ट्रपति का चुनाव भी नहीं हो सकता.
जरूरी बहुमत नहीं मिलने से अल-सदर ने सरकार बनाने की बातचीत से खुद को बाहर कर लिया था. इराक में नई सरकार के गठन को लेकर एक महीने से गतिरोध चल रहा है. अल-सदर अब जल्द चुनाव कराने और संसद को भंग करने की मांग कर रहे हैं.
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