सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच बढ़ती स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप को एक नई दिशा देने वाला यह दौरा काफी अहम माना जा रहा है. सऊदी अरब के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ, जनरल फ़ैय्याद बिन हामेद अल-रवैली पाकिस्तान पहुंचे और उन्होंने देश के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व, दोनों से लंबी बातचीत की.
सबसे पहले उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ़ से हुई. इस बातचीत में पाकिस्तान ने कहा कि वह सऊदी अरब के साथ रक्षा, सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को और गहरा करना चाहता है.
खास बात यह कि दोनों देश हाल ही में हुए 'रणनीतिक आपसी रक्षा समझौते' को आगे बढ़ाने के लिए गंभीर हैं. यह समझौता बताता है कि अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तो दोनों मिलकर उसका जवाब देंगे. यह मॉडल पार्टनरशिप को ऑफिशियली और मजबूत सुरक्षा इन्फ्रास्ट्रक्चर में बदलता है.
इसके बाद, जनरल फैय्याद ने सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर से रावलपिंडी में जनरल हेडक्वार्टर पर मुलाकात की. दोनों नेताओं ने खासतौर से लंबे समय से चले आ रहे दोनों देशों के सैन्य सहयोग को मजबूत करने पर बात की. उन्होंने रक्षात्मक सहयोग, सुरक्षा सहयोग और आतंकवाद के खिलाफ प्रयासों को और बढ़ाने की जरूरत पर ज़ोर दिया.
जनरल फ़ैय्याद का पाकिस्तान दौरा केवल एक ऑफिशियल दौरा नहीं, बल्कि स्ट्रैटेजिक तौर पर तैयार की गई एक बड़ी योजना का हिस्सा है, जो आने वाले समय में क्षेत्र की राजनीति और सुरक्षा को प्रभावित करेगा. यह दौरा इस बात का संकेत भी था कि क्षेत्र में रणनीतिक रिश्तों के नए आयाम तेज़ी से उभर रहे हैं.
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सोमवार को हुई उनकी अहम मुलाकातों से साफ दिखा कि रियाद और इस्लामाबाद, दोनों देश - वैश्विक अस्थिरता, सुरक्षा चुनौतियों और आर्थिक अनिश्चितताओं के इस दौर में अपने रिश्तों को नए ढंग से मजबूत करने में लगे हैं.
भारत इस घटनाक्रम पर पैनी नज़र बनाए हुए. हाल के कुछ सालों में रियाद अपने आर्थिक, सुरक्षा और एनर्जी के संबंधों को दिल्ली के साथ मज़बूत किया है. ऐसे में पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच बढ़ती रक्षा नजदीकियां, भले ही भारत-सऊदी के बीच संबंध को सीधे तौर पर प्रभावित न करे, लेकिन यह क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन में धीरे-धीरे बदलाव ला सकती है.
आइए फिर समझते हैं कि रियाद-इस्लामाबाद के पास आना भारत के लिए क्या मायने रखता है.
1. सऊदी–पाकिस्तान के बीच डिफेंस एलायंस मज़बूत होने से इस पूरे इलाके में पावर बैलेंस थोड़ा खिसक सकता है. रियाद की स्ट्रैटेजिक प्रायोरिटाइज भी बदल सकती हैं. अगर वह पाकिस्तान पर अधिक ध्यान देता है, तो भारत के साथ रक्षा के क्षेत्र में सहयोग की गति धीमी पड़ सकती है.
2. खुफिया और सुरक्षा समीकरण प्रभावित हो सकते हैं. सऊदी और पाकिस्तान अगर आतंकवाद-रोधी सहयोग बढ़ाते हैं, तो भारत को अपनी सुरक्षा रणनीति को फिर से तैयार करना पड़ सकता है.
3. खाड़ी क्षेत्र में भारत की सामरिक भूमिका चुनौती में आ सकती है. खाड़ी के देशों में भारत सुरक्षा की उपस्थिति लगातार बढ़ा रही है. अगर रियाद-इस्लामाबाद नज़दीक आते हैं तो खाड़ी के देशों में कॉम्पिटिशन बढ़ जाएगा.
4. OIC जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में भी पाकिस्तान की आवाज़ तेज़ हो सकती है. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान लाभ लेने की कोशिश कर सकता है.
5. खाड़ी के देशों में रहे रहे भारतीय प्रवासियों पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है. क्योंकि अगर क्षेत्रीय तनाव बढ़ता है तो खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीयों की सुरक्षा भी फर्क पड़ सकता है.
6. भारत-सऊदी आर्थिक सहयोग को और तेज़ करने की ज़रूरत है. अगर पाकिस्तान सऊदी अरब के साथ नजदीकियां बढ़ाता है तो भारत को भी गति बढ़ानी होगी. खासकर ऊर्जा, निवेश और व्यापार के क्षेत्र में.
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