दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर अब कोई भी पर्वतारोही यूं ही नहीं चढ़ पाएगा. नेपाल सरकार ने एक नया मसौदा कानून पेश किया है, जिसके तहत केवल वही पर्वतारोही एवरेस्ट पर चढ़ाई कर सकेंगे, जिन्होंने पहले कम से कम 7,000 मीटर से ऊंचा कोई पर्वत सफलतापूर्वक फतह किया हो.
क्या है प्रस्तावित नियम?
नेपाल की संसद के ऊपरी सदन में हाल ही में पेश किए गए 'इंटीग्रेटेड टूरिज्म बिल' के अनुसार एवरेस्ट (8,848.86 मीटर) पर चढ़ने के लिए अब पहले खुद को साबित करना अनिवार्य होगा. इस बिल में कई कड़े प्रावधान हैं.
- पर्वतारोही को 7000 मीटर से ऊपर की चढ़ाई का प्रमाण देना होगा.
- हर पर्वतारोही को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त मेडिकल संस्थान से चढ़ाई से एक महीने के भीतर जारी मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट देना अनिवार्य होगा.
- स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोगों को चढ़ाई की अनुमति नहीं दी जाएगी.
- वर्तमान 4000 डॉलर के रिफंडेबल कचरा जमा शुल्क को अब नॉन-रिफंडेबल कचरा शुल्क में बदला जाएगा.
- पर्वत पर मृत शवों की निकासी के लिए बीमा योजना का भी प्रावधान है, क्योंकि एक शव निकालने की लागत 20 हजार से 2 लाख डॉलर तक हो सकती है.
क्यों जरूरी है ये नियम
काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक 2024 में अब तक 400 से अधिक पर्वतारोहियों को एवरेस्ट पर चढ़ने की अनुमति मिल चुकी है और संख्या 500 तक पहुंचने की संभावना है. हालांकि इससे नेपाल की अर्थव्यवस्था को फायदा होता है, लेकिन इसका दूसरा पहलू ये है कि बढ़ती भीड़ के कारण ट्रैफिक जाम की समस्या भी बढ़ रही है. साथ ही मृतकों की संख्या में इजाफा हो रहा है. 2023 में 17 और 2024 में 8 मौतें हुईं. इसके अलावा ग्लेशियर का तेज़ी से पिघलना, एवरेस्ट का दुनिया का सबसे ऊंचा कचरा डंप बनने की छवि.
300 से ज्यादा लोग गंवा चुके हैं जान
बता दें कि 1953 में सर एडमंड हिलेरी और शेरपा तेनजिंग नोर्गे ने पहली बार माउंट एवरेस्ट फतह किया था. तब से अब तक लगभग 9,000 लोग इस पर्वत की चढ़ाई कर चुके हैं, लेकिन 300 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. अब नेपाल सरकार पर्वतारोहण क्षेत्र में सुरक्षा, जवाबदेही और पर्यावरणीय संतुलन लाना चाहती है. नया कानून इसी दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.
aajtak.in