मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शेनबॉम के साथ हाल ही में बीच सड़क हुई छेड़खानी से पूरी दुनिया चौंक गई. इस घटना से मेक्सिको में हलचल मच गई और अब शेनबॉम की सरकार ने इस घटना के बाद बड़ा कदम उठाने की घोषणा की है. शेनबॉम की सरकार ने यौन उत्पीड़न के खिलाफ तुरंत कदम उठाने की घोषणा की है और कहा है कि ऐसे मामलों में दोषी को सख्त से सख्त सजा दी जाएगी.
महिलाओं के मामलों की सचिव सिटलाली हर्नांदेज ने राष्ट्रपति की ओर से एक नेशनल प्लान पेश किया है. इसके तहत पूरे देश में यौन उत्पीड़न के मामलों में कड़ी सजा सुनिश्चित करने, महिलाओं को घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित करने, सरकारी वकीलों और अधिकारियों को ऐसे मामलों से निपटने की ट्रेनिंग देने जैसे कदम शामिल हैं.
इस प्लान में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए कैंपेन भी चलाया जाएगा. यह कैंपेन सार्वजनिक स्थानों, ऑफिसों, स्कूलों और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में चलाया जाएगा ताकि महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोका जा सके.
हर्नांदेज ने कहा, 'हम सभी मेक्सिकन महिलाओं, लड़कियों और युवतियों से कहना चाहते हैं कि आप अकेली नहीं हैं. जब भी किसी तरह की हिंसा का सामना करें, रिपोर्ट करें. आज आपके पास एक ऐसी राष्ट्रपति हैं जो आपकी रक्षा करती हैं.'
मेक्सिको में यह प्लान उस घटना के बाद लाया गया है जिसमें नशे में चूर एक व्यक्ति ने राष्ट्रपति शेनबॉम को सड़क पर चलते हुए जबरदस्ती चूमने और उनके शरीर को छूने की कोशिश की. घटना का वीडियो तेजी से वायरल हुआ जिसने महिला सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी. वीडियो से मेक्सिको की महिलाओं में भारी आक्रोश पैदा हुआ.
वीडियो ने साफ कर दिया कि महिलाएं राष्ट्रपति भी बन जाएं, तब भी सुरक्षित नहीं हैं. इस घटना की चर्चा पूरे देश में हो रही है. लोग दोषियों के लिए कड़ी सजा की मांग कर रहे हैं.
देश की राष्ट्रीय सांख्यिकी एजेंसी के अनुसार, मेक्सिको में 15 साल या उससे अधिक उम्र की 10 में से 7 महिलाएं अपने जीवन में कम से कम एक बार किसी न किसी प्रकार की हिंसा (मानसिक या यौन) का शिकार हुई हैं. सिर्फ इस साल अब तक 25,000 यौन उत्पीड़न की शिकायतें दर्ज की गई हैं.
ऐसे कई मामलों में हिंसा की गंभीरता बढ़ जाती है. मेक्सिको में औसतन हर दिन 10 महिलाओं की हत्या होती है, और इस साल के पहले छह महीनों में ही 500 से अधिक महिलाएं सिर्फ इसलिए मार दी गईं क्योंकि वो लड़की थीं.
शेनबॉम की पार्टी मोरेना की सांसद रोसियो अब्रू ने ब्रिटिश अखबार द गार्डियन से बात करते हुए कहा, 'जो राष्ट्रपति के साथ हुआ, वही हमारे साथ भी होता आया है. राष्ट्रपति भी हम जैसी ही एक महिला हैं जिन्होंने उत्पीड़न, राजनीतिक हिंसा, शारीरिक और यौन हिंसा, आर्थिक हिंसा सब झेली है. महिलाओं के खिलाफ हिंसा की पूरी एक श्रृंखला है... और कोई भी इससे अछूता नहीं है.'
राष्ट्रपति की योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि यौन उत्पीड़न को देश के सभी 32 राज्यों में आपराधिक अपराध घोषित किया जाए, ताकि यह संघीय कानून की तरह हो जाए. अगर यह आपराधिक अपराध घोषित हो जाता है तो अपराधी को छह से दस साल की सजा मिल सकती है, खासकर नाबालिगों या कमजोर वर्गों के खिलाफ हिंसा के मामलों में.
एक अन्य सांसद मार्था लूसिया मिचेर ने कहा, 'हमें यह देखना होगा कि किन राज्यों ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने से जुड़े कानून बनाए हैं. संसद राज्य स्तरीय दंड संहिता की समीक्षा करेगी. यह अपराध न्यायाधीशों की बेटियों, बहनों, पत्नियों सबके खिलाफ होता है.'
मिचेर ने कहा कि 'कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है. अपराध को गंभीर श्रेणी में रखना जरूरी है. पुरुषों के साथ काम करना होगा. महिलाओं को सशक्त बनाना होगा. जागरूकता अभियान चलाने होंगे. पुलिस, सरकारी अधिकारियों और जजों को ट्रेनिंग देनी होगी और समुदाय के स्तर पर काम करना होगा.'
हालांकि, कुछ महिलाओं ने सरकार की इस योजना को लेकर संशय जताया है. 20 वर्षीय नर्सिंग छात्रा इटजयाना ब्रिटो ने कहा, 'हम बहुत सालों से लड़ रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस बदलाव नहीं आया. थोड़े बहुत सुधार हुए हैं लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.'
फेमिनिस्ट एक्टिविस्ट यह भी सवाल उठा रही हैं कि क्या केवल सख्त सजा से समस्या खत्म हो जाएगी. कानूनी विशेषज्ञ और ‘इंटरसेक्टा’ संस्था की निदेशक एस्टेफानिया वेला ने कहा, 'राष्ट्रपति का पूरा ध्यान आपराधिक कानूनों पर है. लेकिन असली बदलाव तभी होगा जब सामाजिक और शैक्षणिक पहलुओं पर भी काम किया जाए. कानून बदलना आसान है, पर जिंदगी में बदलाव लाना मुश्किल.'
एक्टिविस्ट ओरियाना लोपेज ने कहा, 'सोच यह है कि अगर कानून में सजा बढ़ा दी जाए तो अपराध कम होंगे, लेकिन इसके समर्थन में कोई सबूत नहीं है. कठोर सजा हमेशा दीर्घकालिक समाधान नहीं होती. हमें पुरुषों में सांस्कृतिक और मानसिक बदलाव लाने की जरूरत है. हमें अपने समाज के पुरुषों को ऐसा बनाना होगा जो टॉक्सिक न हों, हिंसक या अपमानजनक न हो बल्कि सम्मानजनक और समानता पर आधारित हो.'
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