'जुम्मे की नमाज नहीं पढ़ी तो...', मलेशिया में नए शरिया कानून पर विवाद, मचा हंगामा!

मलेशिया मुस्लिम बहुल देश है जहां नागरिक कानून के साथ-साथ शरिया कानून भी लागू होता है. अब मलेशिया के एक राज्य ने जुम्मे की नमाज मिस करने वालों को सजा की धमकी दी है. नए कानून पर काफी विवाद हो रहा है.

Advertisement
मलेशिया में नमाज को लेकर नया शरिया कानून लागू हुआ है (Representative Image: Reuters) मलेशिया में नमाज को लेकर नया शरिया कानून लागू हुआ है (Representative Image: Reuters)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 20 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 5:43 PM IST

मुस्लिम बहुल देश मलेशिया अपने कड़े इस्लामिक नियमों के लिए जाना जाता है. अब वहां के एक प्रांत तेरेंगानु (Terengganu) ने एक ऐसा फैसला लिया है जिसकी काफी आलोचना हो रही है. तेरेंगानु प्रांत ने बिना कोई वैध कारण बताए शुक्रवार की नमाज न पढ़ने वाले लोगों को दो साल तक की जेल की सजा देने की धमकी दी है. 

मलेशियाई प्रांत में लागू शरिया कानून के तहत, पहली बार अपराध करने वालों को दो साल तक की कैद और 3,000 रिंगिट (61,817 रुपये) का जुर्माना या दोनों हो सकता है. ये नियम इसी हफ्ते लागू भी कर दिए गए हैं. नए नियमों की घोषणा सोमवार को सत्तारूढ़ पैन-मलेशियाई इस्लामिक पार्टी (PSS) ने की.

Advertisement

इससे पहले के नियमों के तहत लगातार तीन शुक्रवार की नमाज न पढ़ने वालों को अधिकतम छह महीने की जेल या 1,000 रिंगिट (20,606 रुपये) तक का जुर्माना हो सकता था.

मस्जिदों के साइनबोर्ड पर लिखे जाएंगे नमाज पढ़ने के संदेश

द गार्जियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नमाजियों को मस्जिद के साइनबोर्ड के जरिए नए नियमों की याद दिलाई जाएगी. नियम लागू हो इसकी जिम्मेदारी जनता और धार्मिक गश्ती दल पर होगी और यह तेरेंगानु के इस्लामिक मामलों के विभाग की देखरेख में होगा.

प्रांत सरकार के इस फैसले की आलोचना हो रही है और आलोचक इसे चौंकाने वाला बता रहे हैं. एशिया ह्यूमन राइट्स एंड लेबर एडवोकेट्स (AHRLA) के निदेशक फिल रॉबर्टसन ने कहा, 'इस तरह के कानून इस्लाम को बदनाम करते हैं.'

उन्होंने कहा, 'धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता का अर्थ धर्म को न मानने या फिर धार्मिक कामों में हिस्सा न लेने की स्वतंत्रता भी है, इसलिए तेरेंगानु के अधिकारी इस कठोर कानून के जरिए मानवाधिकारों का खुलेआम दुरुपयोग कर रहे हैं.'

Advertisement

उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम को इस कानून के तहत दी जाने वाली सजा को वापस लेना चाहिए.

तेरेंगानु राज्य विधान सभा के मेंबर मुहम्मद खलील अब्दुल हादी ने स्थानीय अखबार बेरीता हरियन को बताया कि दो साल की सजा बेहद गंभीर मामलों में ही दी जाएगी. उन्होंने कहा, 'यह याद रखना जरूरी है क्योंकि शुक्रवार की नमाज न केवल एक धार्मिक प्रतीक है, बल्कि मुसलमानों के बीच आज्ञा पालन करने की अभिव्यक्ति भी है.'

नमाज न पढ़ने को लेकर पहली बार कब लागू हुआ था कानून

नमाज न पढ़ने को लेकर कानून पहली बार 2001 में लागू किया गया था और 2016 में इसमें संशोधन किया गया था, ताकि रमजान का सम्मान न करने और सार्वजनिक रूप से महिलाओं को परेशान करने जैसे अपराधों के लिए अधिक कठोर सजा दी जा सके. लेकिन अब इस कानून को बेहद सख्त बना दिया गया है.

मुस्लिम बहुल मलेशिया में दोहरी कानूनी व्यवस्था है, जहां इस्लाम आधिकारिक धर्म है, लेकिन यह नागरिक कानून के साथ-साथ चलता है. शरिया अदालतें मुसलमानों के निजी और पारिवारिक मामलों पर अधिकार रखती हैं. मलेशिया की 3.4 करोड़ आबादी में मुसलमानों का हिस्सा लगभग दो-तिहाई है.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement