भारतीय अधिकारियों ने तालिबान के नेताओं से की गुपचुप मुलाकात?

कतर के विशेष दूत के मुताबिक, भारतीय अधिकारियों ने दोहा में तालिबान के नेताओं से मुलाकात के लिए गोपनीय दौरा किया है. भारत लंबे समय से तालिबान के साथ सीधी बातचीत करने से बचता रहा है. हालांकि, अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान की अहम भूमिका को नजरअंदाज करना मुश्किल है.

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भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर

गीता मोहन

  • नई दिल्ली,
  • 22 जून 2021,
  • अपडेटेड 2:03 PM IST
  • भारतीय अधिकारियों ने किया कतर का दौरा
  • तालिबान नेताओं से हुई मुलाकात
  • कतर के दूत ने दी जानकारी

भारतीय अधिकारियों ने तालिबानी नेताओं से बातचीत के लिए दोहा का गुपचुप दौरा किया है. कतर के एक शीर्ष अधिकारी ने ये जानकारी दी है. ये पहली बार है जब तालिबान के साथ वार्ता में शामिल किसी अधिकारी ने भारत और तालिबान की गोपनीय बातचीत की पुष्टि की है. 

कतर के आतंकनिरोधी और संघर्ष समाधान में मध्यस्थता की भूमिका निभाने वाले विशेष दूत मुतलाक बिन मजीद अल कहतानी ने एक वर्चुअल इवेंट में बताया कि भारतीय अधिकारियों ने तालिबान से बातचीत के लिए खामोशी से दौरा किया है. उन्होंने कहा, हर देश का ये मानना नहीं है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान का ही वर्चस्व होगा लेकिन अफगानिस्तान के भविष्य में उसकी अहम भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

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विदेश मंत्री जयशंकर कर चुके हैं कतर का दौरा

ये बयान ऐसे वक्त में आया है, जब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर कतर के नेताओं से मुलाकात के लिए जून महीने में दोहा का दो बार दौरा कर चुके हैं. जयशंकर ने अपनी यात्रा के दौरान कतर के विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और अफगान वार्ता पर अमेरिका के विशेष दूत जाल्माय खालिजाद से मुलाकात की थी.

कतर के विशेष दूत मुल्ताक कहतानी से एक भारतीय पत्रकार ने जयशंकर के कतर दौरे और अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को लेकर सवाल किया था. मुल्ताक ने कहा, मैं अफगानिस्तान में सभी पक्षों तक पहुंचने और उनसे सीधी बात करने की वजह को समझता हूं. हमें ये बात ध्यान में रखनी होगी कि हम एक बहुत ही अहम चरण में है और अगर कोई भी मुलाकात होती है तो उसका एक ही मकसद होना चाहिए- सभी पक्षों को अपने मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने के लिए प्रेरित करना.

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उन्होंने कहा, अब इस मुद्दे के समाधान के लिए सुनहरा मौका है. अब कोई भी इस मुल्क को बलपूर्वक अपने नियंत्रण में करना चाहेगा तो उसे मान्यता नहीं मिलेगी. स्थिर अफगानिस्तान सबके हक में है. 

विदेश मंत्रालय की ओर से तालिबान से बातचीत की पुष्टि नहीं

हालांकि, तालिबान के साथ भारत की बातचीत को लेकर विदेश मंत्रालय की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. कहतानी के बयान पर भी विदेश मंत्रालय की ओर से कोई टिप्पणी नहीं की गई है. 

अफगान शांति वार्ता की प्रक्रिया के तहत क्या भारत और पाकिस्तान के बीच भी बातचीत की चर्चा हो रही है? इस सवाल के जवाब में कतर के विशेष दूत ने कहा, अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी भी देश को प्रॉक्सी के तौर पर इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. अफगानिस्तान की स्थिरता पाकिस्तान और भारत दोनों के हक में है. पाकिस्तान अफगानिस्तान का पड़ोसी देश है और भारत अफगानिस्तान को आर्थिक मदद पहुंचाता रहा है. हमारा मानना है कि भारत और पाकिस्तान, दोनों ही अफगानिस्तान में स्थिरता और शांति चाहते हैं. 

भारत तालिबान से वार्ता में आधिकारिक तौर पर शामिल नहीं रहा है, हालांकि, दोहा में आयोजित हुई अफगान शांति वार्ता समेत कई बैठकों में भारतीय प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया है.

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