PM मोदी से मुलाकात के बाद PAK रवाना हुए चीनी विदेश मंत्री, मुनीर से करेंगे बातचीत!

चीन के विदेश मंत्री की भारत यात्रा के बीच, प्रधानमंत्री से मुलाकात हुई. अमेरिका के साथ टैरिफ युद्ध के बीच इस मुलाकात के कई कूटनीतिक मतलब निकाले जा रहे हैं. माना जा रहा है कि ट्रंप के टैरिफ युद्ध का तोड़ भारत, चीन और रूस का गठजोड़ है. हालांकि, भारत दौरे के ठीक बाद चीन के विदेश मंत्री पाकिस्तान की यात्रा पर गए हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच दिल्ली में हुई मुलाकात (Photo: PTI) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच दिल्ली में हुई मुलाकात (Photo: PTI)

आजतक ब्यूरो

  • नई दिल्ली,
  • 19 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 11:32 PM IST

चीन के विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा ने कूटनीतिक हलकों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद वोंग यी पाकिस्तान की यात्रा पर जाएंगे, जिससे चीन की रणनीतिक चाल को लेकर नई अटकलें शुरू हो गई हैं. अमेरिका और चीन के बीच चल रहे टैरिफ युद्ध के बीच भारत को अक्सर चीन-रूस गठजोड़ का तोड़ माना जाता है. हालांकि, चीन की चालाकी और रणनीतिक मंशा को देखते हुए भारत को सतर्क रहने की सलाह कई अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और डिफेंस एक्सपर्ट दे रहे हैं.

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प्रधानमंत्री मोदी इस महीने के अंत में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में हिस्सा लेने चीन जाएंगे. वहीं, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आ सकते हैं. ऐसे में चीन, रूस और भारत का गठजोड़ वैश्विक स्तर पर वर्ल्ड ऑर्डर बदलने की क्षमता रखता है.

चीन की रणनीतिक चाल

भारत दौरे के दौरान चीन ने ताइवान के मुद्दे पर अपना नैरेटिव पेश किया. चीनी विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि भारत ने ताइवान को चीन का हिस्सा मान लिया है, जबकि भारत अपने सांस्कृतिक और कारोबारी संबंधों पर कायम है.

विशेषज्ञों का मानना है कि वोंग यी का पाकिस्तान दौरा चीन की नई रणनीति का हिस्सा है, जिसमें पाकिस्तान को आश्वस्त किया जाएगा कि वह किसी भी तरह की भारतीय मदद से प्रभावित न हो. यह कदम अमेरिका के दबाव के बीच पाकिस्तान और चीन के घनिष्ठ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश माना जा रहा है.

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चीन पर भरोसा करना कठिन

भारत और चीन के रिश्तों में विश्वास की खाई गहरी है. 1954 में पंचशील समझौता हुआ, लेकिन 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया. इसके बाद डोकलाम विवाद (2017) और गलवान संघर्ष (2020) जैसे घटनाओं ने सतर्क रहने की आवश्यकता बढ़ा दी है.

यह भी पढ़ें: पाकिस्तान में जनता की सरकार है भी या नहीं? डिप्लोमेसी का नया चेहरा बन रहे आर्मी चीफ मुनीर

विशेषज्ञों का मानना है कि चीन से कभी भी रणनीतिक साझेदारी नहीं बन सकती, क्योंकि उसका प्राथमिक उद्देश्य हमेशा अपने आर्थिक और सैन्य हितों को बढ़ाना रहा है. पाकिस्तान के साथ उसके घनिष्ठ संबंध और सीमा विवाद के हल न होने के कारण भारत को सतर्कता बरतनी होगी.

प्रमुख चुनौतियां

भारत-चीन संबंधों में छह मुख्य स्पीड ब्रेकर हैं:

1. सीमा विवाद
2. सुरक्षा संबंधी चुनौतियां
3. व्यापारिक घाटा
4. राजनीतिक टकराव
5. क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा
6. बेल्ट एंड रोड परियोजना

विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि चीन केवल भारत को एक बाजार के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है, इसलिए भारत को कदम फूंक-फूंक कर उठाने होंगे.

पाकिस्तान का रणनीतिक खेल

मुनीर और उनकी सेना ने बार-बार भारत के खिलाफ हिंसक और डर पैदा करने वाले बयानों का इस्तेमाल किया. उन्होंने दावा किया कि अगर भारत सिंधु जल समझौते पर बांध बनाता है या इसे रद्द करता है, तो पाकिस्तान परमाणु हथियारों का उपयोग कर सकता है.

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हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यह बयान धमकी देने और आंतरिक राजनीतिक मजबूरी को छुपाने का तरीका है. पाकिस्तान के नेतृत्व ने अपनी नाकामियों और असफलताओं को छिपाने के लिए भारत विरोधी प्रचार तेज किया है.

भारत की तैयारी और जवाब

भारत ने पाकिस्तान की धमकियों का सख्त और स्पष्ट जवाब दिया है. भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंधूर के तहत अपनी तैयारियों को बढ़ा दिया है. भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी प्रकार के दुस्साहस का परिणाम भयंकर होगा.

सिंधु जल समझौते के संदर्भ में, भारत ने किसान और राष्ट्रहित को प्राथमिकता देते हुए समझौते के अन्यायपूर्ण पहलुओं को सुधारने का कदम उठाया है. भारत ने यह भी साफ कर दिया है कि खून और पानी दोनों एक साथ नहीं बहेंगे.

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