अफगानिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और हिज़्ब-ए-इस्लामी पार्टी के प्रमुख गुलबुद्दीन हिकमतयार ने भारत को उन लोगों को शरण देने के खिलाफ चेतावनी दी है, जिनके संबंध पिछली अफगान सरकार से हैं. एक चैनल को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि अगर भारत ऐसा करता है तो तालिबान भी उसी रूप में जवाब देगा. हिकमतयार को ‘काबुल के कसाई’ के नाम से जाना जाता है. उन्हें तालिबान शासन में भी एक पावरफुल खिलाड़ी के रूप में देखा जा रहा है.
कश्मीर के मुद्दे पर दिया ये जवाब
गुलबुद्दीन हिकमतयार ने CNN-News18 को दिए इंटरव्यू में कहा कि अगर भारत के तालिबान के विरोधियों को शरण देने से किसी तरह की आशंका पैदा होती है तो उन्हें ऐसी शरण देने से बचना चाहिए. उन्होंने कहा कि "भारत, आने वाली अफगान सरकार के विपक्ष को राजनीतिक शरण देकर और उन्हें सरकार के खिलाफ गतिविधियां करने के लिए एक मंच देकर, तालिबान को भी इसी तरह का काम करने के लिए मजबूर करेगा." इसके साथ ही गुलबुद्दीन हिकमतयार ने कश्मीर के मुद्दे पर साफ कहा कि अफगानिस्तान और उसके नए शासकों को कश्मीर मुद्दे में हस्तक्षेप करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत के मुकाबले पाकिस्तान के खिलाफ अफगान धरती का इस्तेमाल करना आसान होगा.
ऐतिहासिक भूलों की भरपाई करे भारत
उन्होंने कहा कि "मैं इस बात पर भी जोर देना चाहूंगा कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल गैर-पड़ोसी देशों की तुलना में अपने पड़ोसियों के खिलाफ अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकता है. भारत को ऐसी आशंका नहीं रखनी चाहिए." गुलबुद्दीन हिकमतयार ने कहा कि "भारत को अफगानिस्तान के बारे में अपनी विफल नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए और दो कब्जाधारियों (सोवियत संघ और अमेरिका) के समर्थन की अपनी ऐतिहासिक भूलों की भरपाई करनी चाहिए."
बता दें पाकिस्तान समर्थित हिज्ब-ए-इस्लामी गुरिल्ला ग्रुप के हिकमतयार और उनकी सेना पर 1992 और 1996 के बीच काबुल की घेराबंदी के दौरान हजारों नागरिकों की हत्या करने का आरोप है. हालांकि, 72 वर्षीय हिकमतयार को 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी ने माफ कर दिया था. गुलबुद्दीन हिकमतयार, जून 1993 और जून 1996 से लगभग एक-एक वर्ष के अल्पकालिक कार्यकाल में दो बार अफगानिस्तान के प्रधानमंत्री भी रहे.
नई सरकार बनाने में अहम रोल में हिकमतयार
हिकमतयार अफगान राजनीति में तमाम खतरों के बावजूद अपना वजूद बचाए हुए हैं. शीत युद्ध के दौर में वह उन मुजाहिदीनों का हिस्सा थे, जिन्हें अमेरिका ने सोवियत संघ से लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया था. तब से वह पिछले तीन दशकों से तालिबान के दोस्त और दुश्मन दोनों रहे हैं. अल-कायदा को खुले रूप से समर्थन देने की वजह से 9/11 के बाद अमेरिका ने उन्हें 'वैश्विक आतंकवादी' के घोषित कर दिया था. जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में युद्ध शुरू किया, तो हिकमतयार ने आईएसआई में अपने संरक्षकों के आशीर्वाद से पाकिस्तान में शरण ली. 2017 में हिज़्ब-ए-इस्लामी के नेता हिकमतयार अशरफ़ गनी सरकार के साथ एक समझौता करने के बाद काबुल लौट आए. हिकमतयार ने साल 2019 में अशरफ गनी के खिलाफ राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था जिसमें उनकी हार हुई थी. वह वर्तमान में काबुल में नई सरकार बनाने के लिए तालिबान नेताओं, हामिद करजई और अन्य प्रमुखों के साथ चर्चा में भाग ले रहे हैं.
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