तालिबान ने अफगानिस्तान के पंजशीर प्रांत को छोड़कर अन्य सभी पर कब्जा कर लिया है. सरकार के गठन को लेकर बातचीत चल रही है, जबकि कई लोग अब भी हार मानने को तैयार नहीं हैं. पंजशीर प्रांत में तालिबान के खिलाफ रणनीति बनाई जा रही है. रणनीति बनाने वालों में पंजशीर के शेर कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद के 32 वर्षीय बेटे भी शामिल हैं. अहमद शाह ने तालिबान और सोवियत संघ, दोनों से अकेले ही मोर्चा लिया था. उनकी इस विरासत को अब उनके बेटे आगे बढ़ा रहे हैं और तालिबान को पूरी तरह से उखाड़ फेंकने की उम्मीद कर रखी है.
अहमद मसूद ने अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह, जिन्होंने गनी के देश छोड़ने के बाद संविधान का हवाला देते हुए खुद को राष्ट्रपति घोषित किया हुआ है, के साथ मिलकर पंजशीर की सुरम्य घाटी से तालिबान विरोधी मोर्चा बनाया है. वहीं, एंटी तालिबान आंदोलन का केंद्र रहे अहमद मसूद के पिता को 2001 में 9/11 से ठीक पहले अलकायदा और तालिबान द्वारा साजिश रचकर मार दिया गया था. अहमद की उम्र उस समय सिर्फ 12 साल की थी, जब उनके पिता की हत्या की गई थी.
जुलाई, 1989 में मसूद का जन्म हुआ और तभी से उन्होंने अफगानिस्तान में पल-पल संघर्ष करते हुए देखा है. उन्होंने अपने पिता को लंबी लड़ाई लड़ते भी देखा, जिसकी वजह से वर्तमान हालात उनके लिए कुछ अजनबी जैसे नहीं हैं. ईरान से पढ़ाई पूरी करने के बाद अहमद मसूद ने ब्रिटिश आर्मी मिलिट्री एकेडमी, सैंडहर्स्ट से मिलिट्री का कोर्स भी किया. उन्होंने 2015 में वॉर स्टडीज में लंदन के किंग कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. इसके बाद 2016 में सिटी, लंदन विश्वविद्यालय से इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में मास्टर डिग्री प्राप्त की.
तालिबान से लड़ाई कोई नई बात नहीं
तालिबान के खिलाफ अहमद की लड़ाई कोई नई बात नहीं है. अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए साल 2019 में एक गठबंधन बनाया, जिसे अफगानिस्तान का राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा कहा जाता है, जिसे नॉर्दन अलायंस की तर्ज पर तैयार किया गया था. नॉर्दन अलायंस एक सैन्य मोर्चा था जिसे ईरान, भारत, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों का समर्थन प्राप्त था. 1996 और 2001 के बीच तालिबान को पूरे देश पर कब्जा करने से रोकने के लिए नॉर्थन एलायंस काफी महत्वपूर्ण रहा था.
अपने पिता के गढ़ से कर रहे नेतृत्व
अहमद, सालेह और उनके समर्थक पंजशीर से तालिबान के खिलाफ लड़ाई जारी रख रहे हैं. पंजशीर इकलौता ऐसा प्रांत है, जिस पर तालिबान का कब्जा नहीं हो सका है. यहां पर तालिबान विरोधी रैलियों के वीडियो सोशल मीडिया पर लगातार वायरल होते रहे हैं. यह प्रांत अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से 100 किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित है. पंजशीर प्रांत को सिर्फ तालिबान ने ही नहीं, बल्कि सोवियत संघ भी नहीं जीत सका. यह अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से एक है और 512 गांवों के साथ सात जिलों में विभाजित है. पंजशीर प्रांत की जनसंख्या लगभग 173,000 है. अफगानिस्तान के 34 सूबों में से यही वह सूबा है, जहां पहले भी तालिबान का कोई जोर नहीं चला. और इस बार भी तालिबान यहां से दूर ही है. और तो और 70 और 80 के दशक में जब सोवियत सैनिकों ने अफगानिस्तान पर धावा बोला था, तब भी उन्हें यहां के लड़ाकों से मुंह की खानी पड़ी थी और वो पंजशीर से पार नहीं पा सके थे.
बहुत सी खूबियों से लैस है पंजशीर
काबुल से 150 किमी दूर मौजूद ये इलाक़ा हिंदुकुश की पहाड़ियों के क़रीब है. यहां से पंशजीर नदी बहती है और ये पूरा का पूरा इलाका इसी नदी के इर्द-गिर्द आबाद है. पंजशीर से एक अहम हाई-वे है, जहां से हिंदुकुश तक पहुंचा जा सकता है. यहीं खवाक पास से उत्तरी मैदानों तक पहुंचा जा सकता है और यहीं अंजोमन पास से बादाखशन तक रास्ता जाता है. पंजशीर का ये इलाक़ा खनिज पदार्थों के मामले में काफी अमीर है. ये और बात है कि विकास और खनन की तकनीकों की कमी से आबादी अब भी गरीब ही है. मध्य काल में पंजशीर का इलाक़ा चांदी के खनन के लिए काफी मशहूर था. 1985 तक यहां से 190 कैरेट के क्रिस्टल तक निकाले जा चुके हैं. यहां के क्रिस्टल दूसरे इलाक़ों के क्रिस्टल के मुकाबले कहीं ज़्यादा बेहतर माने जाते हैं. यहां जमीन के नीचे बेशकीमती पत्थर पन्ना का भी विशाल भंडार है लेकिन पन्ना के इस विशाल भंडार का खनन तो दूर, अभी तक इसे छुआ भी नहीं गया है.
अभिषेक भल्ला