जिनपिंग के अरमानों पर ट्रंप फेरने जा रहे पानी! चीन का खेल बिगाड़ देगा एक फैसला

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का चुनाव जीतना चीन की डगमगा रही अर्थव्यवस्था के लिए और ज्यादा नुकसानदायक साबित हो सकता है. जबकि इस समय चीन अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत स्थिति में लाने के लिए खूब मेहनत कर रहा है.

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फोटो- शी जिनपिंग फोटो- शी जिनपिंग

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 08 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 8:04 PM IST

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने से डगमगाती अर्थव्यवस्था से परेशान चीन की चिंता और बढ़ गई है. इस समय चीन अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर करने के लिए पूरा जोर लगा रहा है. ऐसे में ट्रंप का चुनाव जीतना चीन के मास्टर प्लान पर पानी फेर सकता है. चुनाव प्रचार के दौरान से ही ट्रंप चीन से आयात होने वाले सामान पर ज्यादा टैरिफ लगाने का वादा करते रहे हैं. ऐसे में पूरी उम्मीद है कि ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में चीन के सामान पर 60 फीसदी तक टैरिफ लगा सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो ट्रंप का यह फैसला आर्थिक लिहाज से चीन के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. 

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ट्रंप की जीत के बाद चीन में इसे लेकर अभी से डर दिखने लगा है. गुरुवार को चीनी सामान पर ट्रंप के टैरिफ बढ़ाने के संभावित फैसले को लेकर सवाल हुआ तो चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि ट्रेड वॉर से किसी का भला नहीं होने वाला है.

कोरोना के बाद से ही चीन की विकास दर धीमी हो गई है. ऐसे में चीन को अगर सुपरपावर बनना है तो उसे जल्द से जल्द इसे मजबूत बनाने की जरूरत होगी. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अर्थव्यवस्था को सुधारने की कोशिशें भी शुरू कर दी हैं. कोविड शुरू होने के बाद यानी पिछले चार सालों से चीन में प्रॉपर्टी से लेकर कई सेक्टर में मंदी का सामना कर रहे हैं. सरकार पर कर्ज बढ़ रहा है और इसके साथ ही देश में बेरोजगारी की दर बढ़ती जा रही है. 

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डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में चीनी सामान पर 25 फीसदी तक टैरिफ लगा दिया था. चीन के विश्लेषक बिल बिशप का कहना है कि ट्रंप अगर टैरिफ बढ़ाने की बात कर रहे हैं तो हमें इस पर यकीन करना चाहिए. वह ऐसा कर सकते हैं.

ट्रंप ने पहले कार्यकाल में जब टैरिफ बढ़ाया था तो उसका बड़ा असर चीन पर हुआ था. ऐसे में ट्रंप अब अपने वादे के अनुसार टैरिफ को 60 फीसदी तक बढ़ा देते हैं, वह भी उस समय जब चीन की अर्थव्यवस्था की गाड़ी डगमगा रही है तो यह सब चीन के लिए और ज्यादा चिंताजनक हो जाएगा. 

कोरोना के बाद से ही चीन की हालत खराब

चीन में कोरोना के समय कड़े प्रतिबंध लागू किए गए थे जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था की दर बिगड़ गई थी. करीब दो साल बाद चीन ने अपने कड़े प्रतिबंधों में ढील दी और अर्थव्यवस्था को सुधारने की ओर कदम उठाए. उसी समय से चीन अपनी इकोनॉमी को कोरोना से पहले वाली अर्थव्यवस्था बनाने की कोशिश में लगा हुआ है. चीन के लिए परेशान होने वाली बात यह भी है कि प्रयासों के बावजूद भी अर्थव्यवस्था से जुड़ी अच्छी खबर चीन को नहीं मिल रही है. ऐसे में ट्रंप का आना तो जलते अंगारों पर तेल फेंकने जैसा हो गया है.

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चीन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपना सालाना विकास लक्ष्य भी कम कर दिया है. आईएमएफ को उम्मीद है कि 2024 में चीनी अर्थव्यवस्था में 4.8 फीसदी की बढ़ोतरी होगी, जो चीन के "लगभग 5 फीसदी" लक्ष्य के निचले स्तर पर है. आईएमएफ का अनुमान है कि अगले साल तक चीन की सालाना वृद्धि दर और गिरकर 4.5 फीसदी हो जाएगी.

आसान नहीं चीन के लिए संकट से बाहर आना

2017 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि अब उनका देश तेज रफ्तार के विकास की जगह गुणवत्तापरक विकास पर जोर देना चाहता है. सस्ती चीजों को बेचने के लिए दुनिया भर में मशहूर चीन का प्लान अपनी अर्थव्यवस्था को एडवांस मैन्युफैक्चरिंग और ग्रीन इंडस्ट्रीज की ओर शिफ्ट करने का है. ऐसे में कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि चीन आसानी से खुद को संकट से बाहर नहीं निकाल सकता है.

चीन जो लंबे समय से कम लागत वाले सामानों के लिए दुनिया में जाना जाता रहा है, अब हाई टेक एक्सपोर्ट्स के साथ उसी सफलता को दोहराने की कोशिश कर रहा है. चीन पहले से ही सोलर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) और लिथियम आयन बैटरी बनाने में दुनिया में सबसे आगे है.

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) के अनुसार, विश्व में सोलर पैनल उत्पादन के मामले में चीन का हिस्सा करीब 80 फीसदी है. इसके साथ ही यह इलेक्ट्रिक व्हीकल और उन्हें पावर देने वाली बैटरियों का सबसे बड़ा निर्माता भी है.

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बेशक चीन ऐसी चीजों का बड़ा निर्यातक हो लेकिन मूडी एनालिटिक्स में रिसर्च डायरेक्टर कटरीना एल कहती हैं कि अभी परेशानी यह है कि इन चीजों को आयात कराने वाले यूरोप और अमेरिका समेत कई देश अब खरीद में कमी कर रहे हैं.

चीन की यही सबसे बड़ी चिंता भी हो सकती है. ऐसे में ट्रंप आकर अगर टैरिफ और बढ़ा देते हैं तो यह सवाल चीन को खुद से ही पूछना पड़ जाएगा कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जितने प्रयास वह कर रहा है, क्या इतने काफी रहेंगे.

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