तिब्बत में चीन सरकार की ओर से किए जा रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन पर अमेरिका की पैनी नजर है. वाशिंगटन ने हाल में विदेश मंत्रालय में सहायक मंत्री रॉबर्ट डेस्ट्रो को तिब्बत के लिए विशेष समन्वयक (कोऑर्डिनेटर) नियुक्त किया है. डेस्ट्रो ने इंडिया टुडे के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में तिब्बत और शिनजियांग में मानवाधिकारों की स्थिति को लेकर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि ‘जबरन मजदूरी कैम्पों’ का कैंसर शिनजियांग से लेकर तिब्बत तक फैल चुका है.
तिब्बत के समन्वयक का चार्ज संभालने के बाद डेस्ट्रो का यह पहला इंटरव्यू है. अमेरिका ने ऐतिहासिक और अभूतपूर्व फैसले में तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख डॉ लोबसांग सांगे को विदेश मंत्रालय में आने का न्योता दिया. ये पहली बार हुआ कि वाशिंगटन डीसी स्थित हैरी एस ट्रूमैन बिल्डिंग में तिब्बती लीडरशिप का प्रवेश हुआ. ये एक किस्म से तिब्बत की निर्वासित सरकार को मान्यता देने जैसा है.
रॉबर्ट डेस्ट्रो ने इस अवसर पर कहा, डॉ सांगे के विदेश मंत्रालय में आने से हमें बहुत खुशी हुई. यह इस तथ्य को दर्शाता है कि हम तिब्बत को बहुत गंभीरता से लेते हैं. हम हिज होलीनेस दलाई लामा के साथ पूर्ण सहमत हैं कि एक तीसरा रास्ता है. हम चीनी सरकार को सेंट्रल तिब्बत एडमिनिस्ट्रेशन (सीटीए) और दलाई लामा के साथ और एंगेज होते देखना चाहते हैं.
अमेरिका की आधिकारिक स्थिति पर बोलते हुए, डेस्ट्रो ने दलाई लामा की ओर से प्रस्तावित 'तीसरे रास्ते' की वकालत की, जो तिब्बत के लिए पूर्ण "स्वायत्तता" के मुताबिक है.
डेस्ट्रो ने कहा, "हमने लगातार यह स्थिति ली है कि तिब्बत को चीन के भीतर स्वायत्त होना चाहिए और हमारा लक्ष्य यह देखना है कि चीन के भीतर तिब्बती लोगों की स्वायत्तता का चीन सम्मान करे, और वो सम्मान न सिर्फ संस्कृति बल्कि भाषा और धर्म का भी हो.”
तिब्बती लोगों के लिए प्रतिबद्ध
डेस्ट्रो ने साफ किया कि उनका जॉब उस (स्वायत्तता) पर काम करना है. उन्होंने कहा, मैं तिब्बत की वकालत करने वालों और तिब्बती लोगों के लिए प्रतिबद्ध हूं और मैं अपना बहुत सारा वक्त इस टॉपिक पर खर्च करूंगा. हम सब उम्मीद और प्रार्थना कर सकते हैं कि यह कैसे समाप्त होगा. तीसरा रास्ता जो हिज होलीनेस (दलाई लामा) ने सुझाया है, वो हमें लगता है कि यह बहुत अच्छा तरीका है.”
डेस्ट्रो ने जोर देकर कहा, “तिब्बत को स्वायत्तता देने के मुद्दे पर चीन से डील करना ‘मुश्किल’ रहा है लेकिन हम उनके (चीन) साथ करीबी से काम करने के लिए अपना बेहतर से बेहतर करेंगे जिससे कि देखा जा सके कि इसे (तिब्बत को स्वायत्तता) को कहां तक ले जा सकते हैं.”
जबरन मजदूरी कैंप की रिपोर्ट्स से चिंतित
तिब्बत के भीतर बनाए गए जबरन मजदूरी कैम्पों की रिपोर्ट्स को लेकर वाशिंगटन बहुत चिंतित है. डेस्ट्रो ने इन्हें ‘कैंसर’ की संज्ञा देते हुए कहा, "हमने सुना है जिसके बारे में आपने अभी बात की. अधिक से अधिक तिब्बतियों को मजदूरी कैम्पों में धकेला जा रहा है. हम इस बात की पुष्टि या खंडन करने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या हो रहा है, लेकिन ऐसी रिपोर्ट हैं."
डेस्ट्रो ने कहा, वो (रिपोर्ट्स) बहुत परेशान करने वाली हैं. शिनजियांग से लगातार ऐसी रिपोर्ट्स हैं. असल में जबरन मजदूरी का कैंसर शिनजियांग से तिब्बत तक फैल रहा है. हमने जहां भी जबरन मजदूरी जहां भी हुई है, वहां सख्त कार्रवाई की है और हम वैसी ही कार्रवाई करेंगे. अगर हमें पता चला कि उत्पादों को जबरन मजदूरी के जरिए बनाया जा रहा है. उन्हें देश में आने से रोका जा सकता है. हमने चीनी अधिकारियों पर वीजा और अन्य प्रतिबंध लगाए हैं.”
अमेरिकी अधिकारी ने कहा, “हम सभी कूटनीतिक औजारों और अन्य तरीकों का इस्तेमाल ये सुनिश्चित करने के लिए करेंगे कि हमारा अपना बाजार और हमारी अपनी श्रम शक्ति संरक्षित रहे, और साथ ही वो जबरन मजदूरी की प्रतिस्पर्धा से मुक्त रहे.”
अमेरिकी सीनेट में हाल ही में एक ड्राफ्ट प्रस्ताव पेश किया गया. इसे रिपब्लिकन सीनेटर जोश हॉले ने पेश किया और 10 अन्य सीनेटर्स ने को-स्पॉन्सर किया. इस ड्राफ्ट का शीर्षक था- "तिब्बत में धार्मिक स्वतंत्रता को नष्ट करने के लिए जबरन मजदूरी और अन्य कठोर उपायों के चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से इस्तेमाल किए जाने की निंदा" था.
बिल ने अमेरिकी सरकार से 2002 के तिब्बतन पॉलिसी एंड सपोर्ट एक्ट (TPSA) का समर्थन करने के लिए कहा. साथ ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से चीन कम्युनिस्ट पार्टी के आधिपत्य वाले एजेंडे के खिलाफ खड़े होने की अपील की.
बीजिंग को ठहराना चाहिए जवाबदेह
सीनेटर हॉले ने विधेयक की शुरुआत पर टिप्पणी की, “बीजिंग तिब्बितयों को अपने धार्मिक विश्वास का पालन करने पर दंडित करने के लिए आधुनिक गुलामी का इस्तेमाल कर रहा है. यह ताजा मिसाल है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी अपनी मनमर्जी दूसरों पर थोपने के लिए किस हद तक जा सकती है. हमें बीजिंग को जवाबदेह ठहराना चाहिए और इसकी शुरुआत चीनी जबरन मजदूरी में अमेरिकी सहयोग की जटिलताओं को खत्म करने से की जानी चाहिए.”
पुनर्जन्म या दोबारा अवतार का मुद्दा बीजिंग और दलाई लामा कैम्प के बीच लंबे समय से बहस का मुददा रहा है. इस पर अमेरिका ने स्पष्ट किया है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का फैसला सिर्फ खुद ये धार्मिक नेता ही ले सकते हैं.
तिब्बती लोगों पर किसी भी फैसले को थोपने के गंभीर नतीजे सामने आने के खतरे पर आगाह करते हुए डेस्ट्रो ने कहा, "हम चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से दलाई लामा के ‘दोबारा अवतार’ में हस्तक्षेप के किसी भी प्रयास पर आपत्ति करेंगे."
तिब्बत पॉलिसी एक्ट-2002 के बाद से हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की ओर से सबसे ज्यादा व्यापक पॉलिसी बिल अब तिब्बतन पॉलिसी एंड सपोर्ट एक्ट (HR 4331), पास किया गया है. इसे सीनेट की ओर से पास किए जाना और राष्ट्रपति की ओर से हस्ताक्षर किए जाना अभी बाकी है.
तिब्बत के लिए पारदर्शिता से जुड़ी चिंता महत्वपूर्ण मुद्दा
यह अब होने की संभावना नहीं है क्योंकि अमेरिका 3 नवंबर को चुनाव देखने जा रहा है. लेकिन, बिल को आगे बढ़ाने के लिए विदेश मंत्रालय की कार्रवाई से जुड़े एक सवाल पर, डेस्ट्रो ने कहा, "हम यहां विदेश मंत्रालय लंबित विधेयक पर कोई पोजीशन नहीं लेते हैं. यह एक सवाल है जिसे हमें व्हाइट हाउस तक छोड़ना होगा. यह उनके ऊपर है. हम कोई पोजीशन तभी लेंगे जब हमें ऐसा करने की मंजूरी दी जाए. अभी यह निर्णय कांग्रेस को लेना है और हम शक्तियों के अलगाव का सम्मान करते हैं.”
अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा तिब्बत के लिए पहुंच और पारदर्शिता से जुड़ी चिंताएं हैं. सीपीसी की ओर से तिब्बत तक पहुंच न दिए जाने के खिलाफ वाशिंगटन ने कुछ कठोर कदम उठाए हैं.
डेस्ट्रो ने कहा, "हमने एक बहुत मजबूत स्थिति ली है कि सभी लोगों को तिब्बत तक पहुंच की अनुमति दी जानी चाहिए, अमेरिकियों को तिब्बत तक पहुंच की अनुमति दी जानी चाहिए, तिब्बतियों को स्वतंत्र रूप से आवाजाही की अनुमति होनी चाहिए. हम पहुंच के पक्ष में हैं और यही है जो कानून कहता है.”
अपनी समस्याओं पर काम करें चीन और भारत
अंत में, इस सवाल पर कि क्या भारत-चीन सीमा टकराव का समाधान तिब्बत प्रश्न को हल करना है, डेस्ट्रो ने कहा, “यह एक "द्विपक्षीय" मुद्दा था, लेकिन अमेरिका नई दिल्ली और बीजिंग के बीच समस्याओं को हल करने के लिए आवश्यक किसी भी मदद का विस्तार करेगा.”
उन्होंने कहा, “यह मेरी विशेषज्ञता से बाहर होगा. चीन और भारत को अपनी-अपनी समस्याओं पर काम करना होगा. जाहिर है, दोनों देशों की उस क्षेत्र में रुचि है. अमेरिका समाधान की दिशा में बढ़ने के लिए दोनों देशों के साथ काम करने को तैयार है.”
सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन के प्रमुख डॉ लोबसांग सांगे ने पूर्व में इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि भारत तिब्बत के साथ एक सीमा साझा करता है और सीधे चीन के साथ नहीं. एक स्वायत्त तिब्बत वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति सुनिश्चित करेगा.”
गीता मोहन