चौड़ी सड़कें, हवाई अड्डे, 46 बिलियन डॉलर निवेश... फिर भी क्यों पाकिस्तान में बलूचों को नहीं चाहिए 'चाइनीज डेवलेपमेंट'?

Baloch Protest Against CPEC : बलूचिस्तान में चीन के सीपीईसी प्रोजेक्ट को लगातार बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है. स्थानीय आबादी का विरोध प्रदर्शन और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी जैसे संगठनों के हमलों ने चीन के महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को बैकफुट पर धकेल दिया है.

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PAK में हमला, चीन को चोट PAK में हमला, चीन को चोट

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 21 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 12:52 PM IST

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित ग्वादर बंदरगाह पर बुधवार को आतंकी हमला हुआ. कुछ हथियारबंद लोग ग्वादर पोर्ट अथॉरिटी (जीपीए) के परिसर में घुसे और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. पाकिस्तानी अखबारों की रिपोर्ट्स का दावा है कि स्थानीय सुरक्षाकर्मियों ने जवाबी कार्रवाई में आठ हमलावरों को ढेर कर दिया. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है. 

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ग्वादर बंदरगाह चीन और पाकिस्तान के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) का सबसे अहम हिस्सा है. लेकिन बलूचिस्तान के लोग इसे अपने संसाधनों पर कब्जे के रूप में देखते हैं. यही वजह है कि लंबे समय इस इलाके में निर्माण कार्यों के शोर के बजाय खौफ और दहशत का सन्नाटा पसरा हुआ है. लेकिन वजहें कई और भी हैं. लंबे समय से आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान में अगर चीन निवेश कर रहा है और स्थानीय लोगों को रोजगार देने का वादा कर रहा है तो बलूच इसका इतना हिंसक विरोध क्यों कर रहे हैं? आइए जानते हैं,

बंदरगाह पर चीन ने झोंके 46 बिलियन डॉलर

साल 2015 में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) की घोषणा हुई थी. यानी करीब 2442 किमी लंबी सड़क जो चीन के शिंजियांग शहर को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ेगी. सीपीईसी के तहत चीन ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर रहा है और पानी की तरह पैसा बहा रहा है. इस पोर्ट पर चीन 46 बिलियन डॉलर खर्च कर चुका है. दरअसल चीन खाड़ी देशों से आने वाले तेल और गैस को बंदरगाह, रेलवे और सड़क के जरिए कम समय और कम खर्च में अपने देश तक पहुंचाना चाहता है.

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2015 में वादा किया गया था कि सीपीईसी के तहत ग्वादर पोर्ट को एक नया रूप दिया जाएगा. लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए चीन ने इस प्रोजेक्ट की फंडिंग रोक दी. भ्रष्टाचार उतना बड़ा मुद्दा नहीं है. स्थानीय बलूचों के विरोध प्रदर्शन और हमलों ने चीन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. इस विरोध के कई कारण हैं.

मछली पकड़ना हुआ मुश्किल

बलूचों का आरोप है कि सीपीईसी और ग्वादर में चल रहे दूसरे प्रोजेक्ट्स का उद्देश्य चीन के हितों को साधना है. इसमें स्थानीय लोगों को नजरअंदाज किया जा रहा है. चीन की तरफ से किए जा रहे निर्माण कार्यों ने स्थानीय लोगों के जीवन में कोई सुधार तो नहीं किया बल्कि कई लोगों की आजीविका भी उजाड़ दी. 

ग्वादर की एक बड़ी आबादी जीविका के लिए मछली पालन पर निर्भर है. लेकिन पाकिस्तान ने चीनी नावों को यहां मछली पकड़ने का लाइसेंस दे दिया है. चीन की बड़ी-बड़ी और अत्याधुनिक बोट्स के आगे स्थानीय लोग अपनी नाव नहीं उतार पाते. इसका सीधा असर उनकी कमाई पर पड़ रहा है. 

उजड़ गई कई लोगों की आजीविका

कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि अब स्थानीय लोगों को मछली पकड़ने के लिए टोकन लेना पड़ता है और उन्हें इसके लिए एक तय समय अलॉट किया जाता है. ईरान के साथ सीमा-पार से होने वाले व्यापार पर भी रोक लगा दी गई है जिससे लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. चीनी कंपनियों और पाकिस्तान के अन्य इलाकों को लाभ पहुंचाने के लिए तेल और गैस जैसे क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी बलूचों के लिए चिंता का विषय है.

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अपने ही घर में अल्पसंख्यक बनने का डर

बलूच आबादी चौड़ी सड़कों और हवाई अड्डों को विकास और बेहतर जीवन स्तर का पैमाना नहीं मान रही है क्योंकि द डिप्लोमैट का एक आर्टिकल बताता है कि ग्वादर पोर्ट शहर में करीब 1 लाख लोगों के पास पीने का पानी तक नहीं है. बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं और बिजली जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए पाकिस्तान सरकार के खिलाफ बलूचों का प्रदर्शन किसी से छिपा नहीं है. चीनी अधिकारियों और प्रोजेक्ट्स को सुरक्षा देने के लिए पाकिस्तान सरकार ने इस इलाके को छावनी में बदल दिया है. 

स्थानीय लोगों से अपने ही शहर में सिक्योरिटी चेकपॉइंट्स पर पूछताछ की जाती है. बलूचिस्तान के लोगों को डर सता रहा है कि सीपीईसी के पूरा होने के बाद चीन और पाकिस्तान के अन्य हिस्सों से बड़ी संख्या में लोग यहां आएंगे और आखिर में एक बड़े डेमोग्राफिक बदलाव के बाद वे अपने ही घर में अल्पसंख्यक बनकर रह जाएंगे.

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