4 साल तक 10-10 के सिक्के जोड़ता रहा पिता... बेटी का सपना पूरा करने स्कूटी शोरूम पहुंचा चायवाला

मिदनापुर के एक चायवाले पिता ने चार साल तक 10-10 रुपये के सिक्के बचाकर अपनी बेटी का सपना पूरा किया. बच्छू चौधरी जब सिक्कों से भरा ड्रम लेकर स्कूटी खरीदने पहुंचे, तो शोरूम के कर्मचारी हैरान रह गए. करीब ढाई घंटे में ₹1.10 लाख की गिनती के बाद बेटी की ड्रीम राइड हकीकत बन गई.

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बचाए 10-10 के सिक्के,बेटी की स्कूटी लेने पहुंचा चायवाला (Photo: ITG) बचाए 10-10 के सिक्के,बेटी की स्कूटी लेने पहुंचा चायवाला (Photo: ITG)

aajtak.in

  • मिदनापुर,
  • 11 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:28 AM IST

पश्चिम बंगाल में मिदनापुर के चंद्रकोणा इलाके से एक भावुक करने वाली कहानी सामने आई है, जिसने सोशल मीडिया पर लाखों दिलों को छू लिया है. मौला गांव में चाय दुकान चलाने वाले बच्छू चौधरी ने अपनी छोटी सी बेटी का सपना पूरा करने के लिए चार साल तक 10-10 रुपये के सिक्के बचाए. शनिवार को जब वे उन सिक्कों से भरा ड्रम लेकर स्कूटी खरीदने शोरूम पहुंचे, तो वहां मौजूद सभी लोग दंग रह गए.

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जानकारी के मुताबिक, बच्छू चौधरी की बेटी ने कुछ साल पहले उनसे स्कूटी  खरीदने की जिद की थी. आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वे तुरंत उसकी इच्छा पूरी नहीं कर सके. लेकिन उन्होंने ठान लिया कि एक दिन बेटी के चेहरे पर मुस्कान लाएंगे. उन्होंने अपनी चाय की दुकान पर एक खाली ड्रम रखा और उसमें हर दिन 10 रुपये के सिक्के डालने शुरू कर दिए.

चार साल की इस मेहनत का नतीजा शनिवार को सामने आया, जब बच्छू चौधरी चंद्रकोणा टाउन के गोसाई बाजार स्थित एक मोटरबाइक शोरूम में पहुंचे. उन्होंने कर्मचारियों से कहा कि वे किस्तों में स्कूटी खरीदना चाहते हैं. जब शोरूम स्टाफ ने हामी भरी, तो उन्होंने बताया कि वे सिक्कों से भुगतान करेंगे.

शोरूम कर्मचारी अरिंदम ने बताया, 'जब उन्होंने ड्रम लाया, तो हम सभी हैरान रह गए. ड्रम इतना भारी था कि आठ लोगों की मदद से उसे खोला गया और सिक्के फर्श पर फैलाकर गिने गए.' गिनती में सामने आया कि उस ड्रम में लगभग ₹69,000 के सिक्के और बाकी नोट थे. यानी कुल मिलाकर ₹1,10,000 रुपये थे.

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दो घंटे 25 मिनट तक चली इस गिनती के बाद बच्छू चौधरी ने आखिरकार अपनी बेटी के लिए स्कूटी खरीद ली. शोरूम के कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने ऐसा नजारा पहले कभी नहीं देखा था. बच्छू चौधरी ने कहा, 'मैं अमीर नहीं हूं, लेकिन अपनी बेटी के सपने को अधूरा नहीं छोड़ सकता था. चार साल की मेहनत रंग लाई.'

Input: शेख सहाजन अली
 

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