घुनी स्लम (इको पार्क के पास) में लगी भीषण आग के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उससे जुड़े लोगों ने मर्यादाओं की हर सीमा लांघ दी है. आग में अपने घर-बार और रोजी-रोटी खो चुके गरीब परिवारों को मदद देने के बजाय, BJP ने इस त्रासदी को राजनीतिक हथियार बना लिया. पीड़ितों को 'अवैध बांग्लादेशी' और 'रोहिंग्या' बताकर उनकी पहचान पर ही सवाल खड़े किए गए.
जब लोग अपनी आंखों के सामने अपने आशियाने जलते देख रहे थे, उस वक्त BJP के लिए ये आपदा भी एक राजनीतिक अवसर बन गई. मानवीय संवेदना दिखाने या राहत की बात करने के बजाय, पार्टी के कथित फेक न्यूज पेडलर अमित मालवीय ने आग की घटना को मतदाता सूची में हेरफेर से जोड़ते हुए एक निराधार थ्योरी फैलानी शुरू कर दी.
ये कोई पहली बार नहीं है. BJP शासित राज्यों में बंगालियों को निशाना बनाना, उन्हें बांग्लादेशी या रोहिंग्या बताना पहले से ही एक पैटर्न रहा है. अब उसी सिलसिले में पार्टी ने आग के पीड़ितों को भी विदेशी करार दे दिया. जिस पार्टी के नेता बंगाली भाषा तक को 'बांग्लादेशी' कह चुके हैं, वही पार्टी अब हर आपदा में चुनावी फायदा तलाशती नजर आ रही है.
जब किसी समाज की पीड़ा को एकजुटता का मौका बनाने के बजाय ध्रुवीकरण का औजार बना दिया जाए, तो ये राजनीतिक हताशा और मानवीय संवेदनहीनता को उजागर करता है. ये दिखाता है कि सत्ता की राजनीति किस हद तक इंसानी दुख का इस्तेमाल करने को तैयार है.
इस पूरे मामले पर AITC के प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती ने कहा, 'न्यू टाउन में इतने घर जलकर खाक हो गए, और जिन लोगों ने सब कुछ खो दिया, उन्हें रोहिंग्या कहना ही उस अमानवीय सोच को दिखाता है, जिसकी वजह से बंगाल के लोग इन्हें 'बोहिरागतो जमींदार' कहते हैं. अगर ये लोग सच में रोहिंग्या होते, तो न तो SIR प्रक्रिया के तहत एन्यूमरेशन फॉर्म जमा कर पाते और न ही 2002 तक के दस्तावेज दिखा पाते. उस बूथ में कितने लोगों के फॉर्म खारिज हुए, ये BJP बताए.'
अनिर्बन सिन्हा रॉय