वाराणसी में बाढ़ का कहर, गंगा और वरूणा का पानी बस्तियों में घुसा, 1978 के रिकॉर्ड को तोड़ सकती है तबाही!

वाराणसी में गंगा और वरूणा नदियों के बढ़ते जलस्तर से बाढ़ ने तबाही मचा दी है. केन, बेतवा और चंबल बांधों से छोड़े गए पानी के चलते हालात गंभीर हो गए हैं. बुनकरों के करघे डूब गए हैं, लोग घर छोड़कर पलायन कर रहे हैं. गरीब, मजदूर और बच्चों के सामने भोजन और सुरक्षा का संकट खड़ा हो गया है. वहीं, प्रशासन अलर्ट पर है.

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बुनकर बस्तियां डूबीं. (Photo: Roshan Jaiswal/ITG) बुनकर बस्तियां डूबीं. (Photo: Roshan Jaiswal/ITG)

रोशन जायसवाल

  • वाराणसी,
  • 01 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 7:39 PM IST

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में एक बार फिर गंगा की बाढ़ ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में हो रही भारी बारिश और पहाड़ों पर लगातार गिरते पानी के चलते केन, बेतवा और चंबल नदियों के बांधों से 10 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया है. यह जलस्तर अगले 2-3 दिनों में प्रयागराज होते हुए वाराणसी पहुंचेगा. फिर मिर्जापुर व बलिया की ओर बढ़ेगा. अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार वाराणसी में 1978 की भयावह बाढ़ का रिकॉर्ड भी टूट सकता है.

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दरअसल, गंगा का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है और वह चेतावनी बिंदु के करीब बह रही है. मात्र एक मीटर नीचे बह रही गंगा ने वरूणा नदी में पलट प्रवाह शुरू कर दिया है, जिससे उसका जलस्तर भी खतरे के निशान के पास पहुंच गया है. इसका प्रभाव यह हुआ कि वरूणा किनारे की दर्जनों बस्तियों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है और वरूणा कॉरिडोर सहित आसपास के इलाके जलमग्न हो चुके हैं.

यह भी पढ़ें: वाराणसी में बाढ़ का कहर, नमो घाट तक पहुंचा गंगा का पानी, सेल्फी और नाव पर रोक

इन इलाकों में गरीब, बुनकर और मजदूर वर्ग की आबादी अधिक है, जो बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. सरैया, ऊंचवा, शैलपुत्री, सलारपुर, सिधवा घाट, कोनिया, मीणा घाट जैसे इलाकों में सैकड़ों घर डूब चुके हैं. लोग खुद ही अपने घरों से पलायन करने और सामान निकालने को मजबूर हैं.

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ऊंचवा में रहने वाले रियाजुद्दीन ने बताया कि सरकारी मदद न मिलने के कारण लोग अपनी जान जोखिम में डालकर डूबे मकानों से सामान निकाल रहे हैं. सिधवा घाट के दिलीप सोनकर ने प्रशासन से नावों की मांग की है ताकि लोगों को सुरक्षित निकाला जा सके.

बुनकर हफीजुर्रहमान का हथकरघा पूरी तरह जलमग्न हो चुका है, जिससे उनका रोजगार बंद हो गया है. वहीं अब्दुल हक को दो बार पलायन करना पड़ा है और अब वे ऊंचाई वाले स्थान पर शरण लिए हुए हैं. वे बाढ़ राहत शिविरों में नहीं जाना चाहते क्योंकि वहां गंदगी और अव्यवस्था है.

वहीं, पूर्व पार्षद इमतीयाजुद्दीन ने बताया कि कमिश्नर के साथ मीटिंग में मकानों को खाली करने की अपील की गई है, क्योंकि बाढ़ का स्तर 1978 से भी ज्यादा हो सकता है और राहत शिविर भी डूबने की कगार पर हैं. स्थिति भयावह होती जा रही है और प्रशासन को तत्काल कार्रवाई करनी होगी.

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